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मंगलवार, सितंबर 23, 2008

रोज गंगा पूजा, चढावे में गंदगी





ऋषिकेश। जब हम धर्म की बात करते हैं तो उसे समाज से जोड़कर चलते हैं लेकिन जब धरम को समाज से जोड़ा जाता है तो यह ध्यान रखा जाता है समाज से जोड़ते समय धर्म की परिभाषा की अवहेलना न हो। धर्म क्या है? धर्म वो है जो हमे नेतिकता में बांधता है , हमें संस्कार प्रदान करता है, हमारे कर्म की सीमा निर्धारित करता है ताकि हम ग़लत रस्ते पर न जाए। परन्तु जब इस धर्म पर खुला प्रहार हो तो ?
इसी विषय से सम्बंधित एक प्रकरण हमारे सामने है। देहरादून जिले के एक प्रमुख शहर ऋषिकेश में त्रिवेणी नामक एक घाट है। "पवित्र" घाट। हर शाम को यहाँ गंगा समिति के पंडितों द्वारा गंगा मैया की पूजा की जाती है। यह आस्था है, धर्म का एक रूप है। परन्तु कमल की बात देखिये उसी घाट पर पूरे ऋषिकेश का मल-मूत्र नाले के माध्यम से इन्ही 'गंगा' मैया में विषर्जित कर दिया जरा है। ये कैसा धर्म या कैसे आस्था है, की एक तरफ गंगा की घी के दीयों , फूल-मालाओं, अगरबत्तियों से पूजा की जाए , प्रसाद के रूप में गंगा जल पी लिया जाए और दूसरी तरफ उसी गंगा में अपना मल-मूत्र या शारीरिक गंदगी छोड़ दी जाए।
जब कोई "समझदार" व्यक्ति गंगा में पैसे फैकता है तो उसे कोई नही टोकता, जबकि यह राष्ट्रीय हनी है जिसे प्रत्येक अर्थशास्त्री भी स्वीकार करते हैं। अगर पानी में फैकने की बजाये राष्ट्रीय हित में एक-एक रुपया दिया जाने लगे तो भी सरकार के पास करोडो रूपये पहुच सकते हैं क्योंकि आज भी लगभग ७० % जनसँख्या धार्मिक आस्था से जुड़ी है। जुस्से सरकार भी वही पैसा अधिकतम सामाजिक लाभ में व्यय कर सकने में समर्थ हो सकती है। परन्तु यदि वही गंगा मैं गिरा पैसे कोई गरीब बीनने (उठाने) लगे तो धर्म के ठेकेदार उसे मारते हैं, पीटते हैं और घाट से फिकवा देते हैं। अगर वो गरीब भिखारी उस को ले ले और पेट भर ले तो शायद गंगा मैया नाराज न होकर खुश ही होंगी की उनके आशीर्वाद से एक और गरीब का पैर भर गया। बात त्रिवेणी घाट की हो रही थी। वही त्रिवेणी घाट हहाँ शाम के समय होता है एक तरफ गंगा मैया की पूजा, दूसरी तरफ गंगा मैया को दिया जाने वाला ऋषिकेश का गंद और तीसरी तरफ घाट में ही फलता-फूलता लड़के- लड़कियों का "चक्कर"। घाट का माहौल देखा जाए तो मुझे कहीं आस्था नजर नही आती। अब देखिये न, घाट के दोनों छोर को छोड़कर शौचालय बीच में बनाया। वो भी माता मन्दिर के बिल्कुल बगल में। जब वहां के आस्तिकों के इस संदर्भ में पूंछा गया तो उनका एक ही सामान्य जवाब मिला, "बल यु सौचालय मंदिरे का बग्ल्या नी होंद छेंदु , यु हमारी आस्था पैर वार छ "। शायद ये धर्म का नया ट्रेंड हो जहाँ लड़के-लडकियां इश्क मट्टका करे , गंगा मैया की पूजा भी हो और उसी गंगा में बहाया जाए शहर का मल-मूत्र।
मैं मानता हूँ की कोई और नदी ऋषिकेश के पास नही जिसमे यह नाला बहाया जा सके परन्तु , जब करोडो रूपये सरकार विकास के लिए व्यय कर सकती है, तो सरकार गंगा की पवित्रता व गरिमा बरकरार रखने के लिए भी खर्च कर सकती है। यदि ऐसा नहीं हो सकता तो घाट में गंगा पूजा के नाम पैर हो रहे देखावे को बंद कर देना चाहिए। में अंधविश्वास को नही फैलाना चाहता, बस परम्परा की बात करता हूँ । ताकि हमारा एक रास्ता हो और उस रस्ते पर चलकर विकास की उत्कृष्टता को छू सके।

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