सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

बुधवार, अप्रैल 30, 2014

और बंदरिया रूठ गयी...

कहानी (3 फरवरी 2008)
प्रस्तुति- बृजेन्द्र कुमार वर्मा

कल ( 2 फरवरी ) एक बन्दर की गर्लफ्रेंड (बंदरिया) नाराज हो गई। बात बस इतनी सी थी कि बंदरिया को कहीं से पता चल गया कि श्रीराम सेना के कुछ कार्यकर्ताओं ने मेंगलोरू के एक पब में लड़कियों को पीटा। मतलब सचमुच बुरी तरह पीटा। भगवान् जाने कहाँ से पता चल गया? बन्दर ने लाख समझाने की कोशिश की वो नहीं मानी।
"जानू मैंने कुछ नहीं किया।", बन्दर ने सफाई दी।
"तुम रोज श्रीराम का नाम लेते हो , मुझे पता चला है कि जो पब में महिलाओं को पीट रहे थे, वो भी श्रीराम का नाम ले रहे थे।"
"लेकिन मैं  वहाँ नहीं था।"
"मैं सब समझती हूँ, मुझे बनाने की कोशिश मत करो... तुम.......तू........
बेचारा बन्दर साल भर से वेलेंटाइन का इंतजार कर रहा था और एन वक्त पर बंदरिया रूठ गई। जल्दी नहीं मानी तो वेलेंटाइन...
उसने अपनी बंदरिया को समझाने की कोशिश की।

"देखो जानू अब इस देश में एक ही धर्म के कई समुदाय पल चुके हैं। कोई भगवान् का नाम सिर्फ़ इसलिए लेता है कि वो अपना प्रचार कर सके, तो कोई इसलिए कि उसे सुख समृद्धि मिल सके। जिनके बारे में तुमने सुना वो लोग अपना प्रचार करने वालों में से हो सकते हैं शायद
बंदरिया ने तर्क दिया, "श्रीराम को मानने वाले कभी कन्याओं पर हाथ नहीं उठाते। अरे श्रीराम के भक्तों ने तो सीता मैया के लिए अपनी जान तक दे दी थी। अब ये कौन से श्रीराम के भक्त हैं, जिन्होंने धर्म की इज्जत के लिए कन्याओं पर हाथ उठाया

बन्दर अचंभित होकर बोला, " तुम कुछ नहीं समझती हो.....!
बन्दर परेशान था। बंदरिया नहीं मानी तो साल भर की मेहनत पर पानी फिर जायेगा

बंदरिया ने फिर बरराना शुरू किया,
"जब देखो नेताओं की तरह गुलाटी मारते रहते हो। जाओ पूछो इन समाज के ठेकेदारों से कि जिस धर्म की रक्षा तुम करते हो उसमे कहा लिखा हैं की कुवारी लड़कियों पर हाथ उठाया जाए। अरे जब श्रीराम का नाम लेते हो तो उनकी तरह महिला की इज्जत करना भी सीखो. "

बंदरिया खतरनाक नाराज थी. गुस्से में उसके मूंह का रंग नीला हो गया था, क्यूंकि सामान्यतः लाल तो रहता ही है.
" अरे जानू हमें इससे क्या लेना देना।"
"अरे अगर देश का हर आदमी ये कहने लगे की हमें क्या लेना देना तो हम देश के भविष्य को कैसे तय कर सकेंगे।"
बंदर खिसियाके बोला, "तुम्हें इतनी चिंता है तो तुम कर लो, जब भी इस देश को किसी ने सही राह दिखने की कोशिश की है उसे किसी किसी तरह से फंसा दिया जाता है और जो टेढ़े चलते हैं उन्हें कोई नहीं रोकता। "

अब वो बन्दर आजकल उन श्रीराम सेना के कार्यकर्ताओं को ढूंढ रहा है, जिसकी वजह से उसकी बंदरिया नाराज हो गयी और उसके वेलेंटाइन की वाट लग गयी.

यही सच निकला

http://teesrakadam.blogspot.in/2012/01/tet.html 
एक खबर लिखी थी... जिसमें एक आशंका जाहिर की थी मैंने, वो सच हो गयी.
मैंने लिखा था (पिक्चर में लाल घेरे में आप देख सकते हैं) की समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद टेट (T.E.T.) भर्ती प्रक्रिया टीईटी के आधार पर निरस्त भी हो सकती है. समाजवादी सरकार बनने के बाद ऐसा ही हुआ. सरकार ने भर्ती प्रक्रिया निरस्त कर दी. और दोबारा विज्ञापन निकाला. और चयन प्रक्रिया टीईटी मेरिट न होकर शैक्षिक मेरिट राखी गयी.
हालाँकि टीईटी छात्र कोर्ट की शरण में गये. हाई कोर्ट में केस जीते और सुप्रीम कोर्ट में भी.
अब देखते हैं भर्ती प्रक्रिया टीईटी के आधार पर कैसे नहीं होती??

फोटो वाली खबर पढने के लिए यहाँ क्लिक करें- 

अप्रत्यक्ष

Courtesy- Internet

Courtesy- Internet
अगर आप गरीबों की प्रत्यक्ष मदद नहीं कर सकते तो सही सरकार (जो नेता मध्यवर्गीय परिवार से हैं) का चयन करके , अप्रत्यक्ष रूप से उनकी मदद कर दें...

हम कितनी आसानी से कह देते हैं कि हमारा काम तो वोट देना है और बाकी का काम सरकार का है, लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि सबसे महत्वपूर्ण काम तो हम ही कर रहे हैं, हम जनता उस किसान के समान होते हैं जो बीज बो कर फसल उगने का इतेजार करने लगता है. बिलकुल "हम" जनता भी ऐसे ही होते हैं, वोट दिया और सब सरकार की प्रतिक्रिया पर छोड़ दें. और जब सरकार अपेक्षा पर खरी नहीं उतरती तो खुद को दोषी न ठहराकर सरकार को दोषी ठहराते हैं.

अब क्या लिखा जाए?

सम्बंधित खबरें- http://teesrakadam.blogspot.in/2013/11/blog-post.html

7 nov 2013 amar ujala lucknow pg-11

7 nov 2013 amar ujala lucknow

क्या ये अयोग्य मीडिया का उदाहरण नहीं?

जब वोट देकर नरेन्द्र मोदी साहब कांफ्रेंसिंग कर रहे थे तब वे हाथ में कमल का फूल दिखा भाजपा का प्रचार कर आचार संहिता का उल्लंघन कर रहे थे.
दिक्कत इस बात से नहीं.

वहां मौजूद एक भी पत्रकार ने इस पर सवाल नहीं पूछा कि आप ये कमल का फूल क्यों दिखा रहे हैं???

क्या ये अयोग्य मीडिया का उदाहरण नहीं??? क्या ये चाटुकारिता से आये पत्रकार नहीं??

मंगलवार, अप्रैल 29, 2014

नोएडा में झुग्गी झोपड़ियों में आग लगी.


जब वोट पड़ गये तो नोएडा में झुग्गी झोपड़ियों में आग लगा दी...
अब पांच साल में लोग भी भूल जायेगे और वहां बन जायेगा एक काम्प्लेक्स.
गरीब जाएँ भाड़ में.
सच, समाज जैसा है, सरकार भी उसे 100 % वैसी ही मिलेगी.

शनिवार, अप्रैल 12, 2014

इलाइची


एक कहानी-

एक लड़की और एक लड़का live in relationship में ख़ुशी से रहते थे. लड़का हर महीने कुछ न कुछ उसे गिफ्ट देता था. जब भी चाय पीते तो उसमे इलाइची जरूर डालते. ऐसे ही 3 साल बीत गये.

एक बार लड़के ने कहा आज बगैर इलाइची की चाय पीने का मन है, लड़की ने विरोध किया चाय तो इलाइची की ही बनेगी. दोनों अपनी अपनी बात पर अड़ गये. लड़ाई हो गयी. और बात इतनी बढ़ गयी की लड़की ने लड़के पर मुकद्दमा दर्ज करा दिया कि-

लड़के ने उसके साथ 3 साल तक यौन शोषण किया. पुलिस ने लड़के को पकड़ लिया और उसे फांसी की सजा हो गयी.

moral of the story- live in relationship में रहने से पहले तय कर लें की इलाइची की चाय आजीवन पी जायेगी या उसमे फेर-बदल संभव है...