सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

सोमवार, अप्रैल 18, 2011

ले गया कॉल लेटर एक भ्रष्टाचारी




रचित- 25 दिसम्बर 2009

जुराब धो के टांग दी थी गेट पर
माँगा संता क्लोज़ से
ऐसे संस्थान में
नोकरी दो
जहाँ राजनीति न करता हो कोई
पेन ड्राइव भी
चोरी न होती हो
भ्रष्टाचार भी न हो कतई
मुझे मिला वो गिफ्ट
25 दिसम्बर को
लेकिन यहाँ भी राजनीति
की गई मेरे खिलाफ
और चोरी कर
ले गया कॉल लेटर
एक भ्रष्टाचारी !

शनिवार, अप्रैल 16, 2011

क्या सिर्फ नाम की ही हैं बेटियां ?


जब से महिलाओं की राज्य साक्षरता दर के आंकड़े सामने आये हैं उत्तराखंड सरकार की सोच का आइना साफ़ हो गया है पुरुष और महिला के बीच के भारी अंतर से केन्द्र सरकार ने चिंता जताई है
नई जनगणना से मिले आंकड़ों ने राज्य सरकार के आँखें खोल दी हैं प्रदेश में तीन चौथाई जिलों में महिला साक्षरता दर काफी नीचे चली गई है प्रदेश में महिला साक्षरता महज 70.70 प्रतिशत है जबकि पुरुष साक्षरता 88.33 प्रतिशत है महिला-पुरुष के बीच ये आंकड़ा काफी गंम्भीर है। अब सुध लेते हुए सिर्फ ये ऐलान किया गया है कि विद्यालयी शिक्षा विभाग मुफ्त में कक्षा ९ की बालिकाओं को यूनीफोर्म और किताबें मुहैया कराएगा। ये इसलिए किया जा रहा है ताकि जो लड़कियां विभिन्न कारणों से 8वीं के बाद स्कूल में नहीं जा पातीं उन्हें मुफ्त युनिफोर्म और कोताबों से लुभाया जायेगा। हालाँकि सिर्फ इस योजना के लागू कर देने से ही कुछ हो जाने वाला नहीं है। यहाँ एक काम और करना होगा वो ये कि इस तरह की गरीब बालिकाओं के पालकों को भी उनकी पढाई के लिए प्रेरित करना होगा, ताकि योजना को पूर्ण सफल बनाया जा सके। पालकों को ये अहसास कराना होगा कि उन्हें बालिकाओं को स्कूल भेजने में कोई आर्थिक नुक्सान नहीं होगा उनके कुल खर्चे की एक कीमत सरकार अदा कर रही है। 1000 रूपए सरकार अपनी ओर से प्रत्येक बालिका पर खर्च करेगी जो बालिका 9 वीं में प्रवेश लेगी।
यहाँ स्थिति ये है कि इतना गेप तो राष्ट्रीय आंकड़ों में भी नहीं है. राष्ट्रीय महिला-पुरुष साक्षरता गैप का आंकड़ा राष्ट्रीय दर से भी दो ढाई हाँ की स्थिति पर नजर डालें तो चलेगा कि बालिकाओं के लिए चलने वाले विभिन्न योजनाओं के बावजूद सरकार बच्चों को स्कूल में नहीं रोक पा रही है. सर्व शिक्षा अभियान, कस्तूरबा गाँधी आवासीय बालिका विद्यालय जैसी योजनायें भी धरी की धरी हैं। बालिकाएं 8 वीं तक तो पढ़ती, लेकिन उसके बाद उन बालिकाओं को आगे बढ़ने का मोका नहीं मिल पाता। राज्य में आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि ८वीन के बाद बालिकाओं कि ड्रॉप दर ज्यादा है. यही कारण है कि जन्गादाना में महिला-पुरुष कि साक्षरता दर में काफी अंतर है। सरकार ये कोशिश कर रही है कि बालिकाओं को ज्यादा से ज्यादा स्कूल में आने के लिए जागरूक किया।
इसके साथ ही उनके माता-पिता को भी शिक्षा के प्रति लड़कियों को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाये। बड़ी होती लड़कियों के आगे स्कूल न भेजने का एक और कारन है। पहाड़ों में रह रहे आम लोगों का मानना है कि वे अपनी बड़ी होती बेटियों को स्कूल इसलिए नहीं भेजते क्योंकि उन्हें खतरा है कि कहीं उनकी बेटियों के साथ कोई गलत घटना न घाट जाए।
पहाड़ों में रहने वाले पालकों का शहर में रहने वाले पालकों के कारण से ज्यादा प्रमुख है। क्योंकि गावों में घर से स्कूल दूर होता है और यहाँ का रास्ता सुनसान होने के कारन बालिकाओं के लिए अपेक्षित शुर्क्षित नहीं रहता। पलको कि इस तरह कि सोच को हम नकार नहीं सकते। इस कारण को चादर बनाकर प्रशासन अपनी लापरवाही पर डाल देता। योजनायें और जागरूकता ढोल-पोल चलती रहती हैं और लड़कियों कि संख्या बड़ी कक्षाओं में घटती रहती है।
इतना ही नहीं गावों में रह रहे पालकों से बातचीत में ये भी पता चला है की उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वो अपने बेटों को पढाई के लिए तरजीह देते हैं। ऐसे में बालिकाएं रह जाती हैं। अब तक क्यों नहीं सोचा गया जब यहाँ की सरकार को ये पता था कि पालकों कि आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है तो क्या बालिकाओं के लिए आर्थिक पहल पहले से शुरू नहीं कि जा सकती थी।
अब जब कई बालिकाओं का भविष्य लडखडा चुका है तो सुध ली जा रही है। इन बालिकाओं के लिए आर्थिक पहल पहले से शुरू की जा सकती थी। खेर देर से ही सही लेकिन शुरुआत तो की। बालिकाओं के लिए 1000 रुपए प्रति बालिका पर खर्च करने का मन बनाया। ड्रॉप आउट के बारे में क्या सरकार को पहले नहीं पता था। अब ये लुभावना ऑफर देकर क्या राज्य सरकार आने वाले चुनावों के लिए सियासी खेल खेल रही है। ये देखना होगा।

गुरुवार, अप्रैल 14, 2011

संघर्ष अभी बाकी है...










आज देश भर में बाबा साहेब डॉ भीम राव आंबेडकर जी की 120 वी जयंती मनाई जा रही है। कोटद्वार (उत्तराखंड ) में भी जयंती की धूम देखी गई। सुबह से ही पूरे शहर में विभिन्न स्थानों पर आयोजन किये गये। इस दोरान लोगों में जोश कका माहौल रहा। दलितों के मसीहा कि जयंती पर दलितों का जोश सातवें आसमान पर था। जेसे-जेसे शाम होती गई सडकों पर लोगों का हुजूम बढ़ता चला गया।
यहाँ के कोडिया से बाबा साहेब की रैली का आयोजन किया। इसमे विभिन्न दलित संगठनो ने अपनी विशेष भोमिका निभाई। जुलूश कोडिया से शुरू होक्कर मैं रोड से चलते हुए झंडा चोक तक पहुची और फिर यहाँ से अलग-अलग कालोनियों से होते हुए वापस कोडिया में स्थगित की गई। भव्य रैली थी, अगर कोटद्वार को ध्यान में रखा जाये तो ये सचमुच एक भव्य रैली थी।
इस रैली को सफल बनने का सबसे अधिक श्रेय जाता है दलित साहित्य अकादमी के रह्य सचिव प्रमोद कुमार चौधरी को। मेरी और से उन्हें उनकी मेहनत के लिए बधाई।
यहाँ मैंने भी एक बात महसूस की कि अभी भी बाबा साहेब का वो सपना पूरा नहीं हो पाया , जिसका कि उन्होंने कल्पना कि थी। उन्होंने कहा था कि संगठित बनो, लेकिन मैंने यही देखा कि बाबा कि जयंती एक छोटे से शहर में अलग-अलग मनाई जा रही थी, मात्र 100 मीटर की दूरी पर।
दूसरी बात , बाबा साहेब ने कहा था कि शंघर्ष करो, लेकिन इसके बावजूद भी दलित वर्ग अपेक्षित संघर्ष नहीं कर रहा है। यही कारण है कि कुछ दलित आज भी जानवरों से बदतर जिंदगी बसर करने को मजबूर हैं। दलितों के उद्धार के लिए पार्टियाँ तो बहुत बनी, लेकिन उद्धार होता कही नहीं दिखाई दे रहा है। बहुजन समाज पार्टी से कुछ उम्मीद बंधी, लेकिन अब वो भी टूटती नजर आ रही है।
बाबा साहेब ने एक महत्वपूर्ण बात और कही थी- शिक्षित बनो। ये थोडा बहुत सफल होता जरूर दिख रहा है। कई दलित आईएएस और पीसीएस बन रहे हैं।
मुख्य धरा से उन्हें भी जोड़ना होगा
यहाँ हमें एक बात और याद रखनी होगी कि वो जो आज भी बड़ी जातियों के द्वारा परेशान किया जा रहे हैं, उन्हें भी किसी न किसी तरह से मुख्य धरा कि तरफ जोड़ना होगा ताकि वो हमारा भाई या बहन पिछड़ने न पाए। ये जिम्मेदारी भी हमें ही लेनी होगी। किसी सरकार या किसी और समुदाय प् हमें बिलकुल भरोसा नहीं करना चाहिए। क्योंकि आज जो भी हैं, जहा भी हैं, बाबा साहेब जी के संघर्ष से हैं और उनके आशीर्वाद से हमारे वर्ग ने जो संघर्ष किया है उससे हैं। मित्रों आज स्थिति ये है कि लोग हमारी ऊँचाइयों से डराने लगे हैं। "वो" लोग अब हमारी उन्नति से घबराने लगे हैं। ये हमारे लिए शुभ संकेत है। बस एक काम और मिलकर करना है कि अपने ही वर्ग के और कमजोर लोगों को अपने साथ ले के चलना है, हम उन्हें अकेले ऊँची जातियों के मानसिक जुल्म सहने के लिया नहीं छोड़ सकते।
बिना दलितों के सत्ता में आना मुश्किल
हम थोडा सा मजबूत हुए हैं। इसका नदाजा एक बात से ही लगया जा सकता है इ बी जे पी हो या कांग्रेस या कोई भी पार्टी अब बिना दलितों के वोट से सत्ता में नहीं आ सकती। दलित भाइयों अपनी शक्ति को पहचानो और अपने अधिकारों को जानो।
बस इसके लिए सबसे जरूरी है कि बाबा साहेब की बातों पर चलना होगा- १ शिक्षित बनो, २ संगढ़ित हो ३ संघर्ष करो।
समझो, जानो, पहचानो और आगे बढ़ाते चलो और निःशक्तों को साथ लेते चलो।
अभी संघर्ष बाकी है...