सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

शनिवार, जून 28, 2014

टाटा डोकोमो और त्याग

(फैंटेसी कहानी)
ओह मेरे प्रिय टाटा डोकोमो, मुझे माफ़ करना. आज वक़्त आ गया है कि तुमसे अपने दिल की बात कह दूं.
ऐसा नहीं कि तुमने मेरी सेवा नहीं की या अब करना बंद कर दी. मैं ये भी नहीं भूल सकता कि जब मैं घर से बाहर था तब सिर्फ तुम ही थे जो मुझे मेरी मम्मी और पापा से जोड़े रखता था. मैं ये भी नहीं भूलूंगा कि जब मेरा सिलेक्शन का कॉल आया तब तुम्हारे जरिये ही ये खुशखबरी सुनी. मैं जब स्नातकोतर उपाधि में प्रथम श्रेणी में पास हुआ तो तुम्हारे जरिये ही मुझे ये खबरें मिलीं. प्रतियोगिता परीक्षा पास करने की सूचना भी तुमने ही मेरे कानो में पहुचाई, तब तो फ़ोन भी मटक मटक कर नाच रहा था. वो तमाम खुशियों के पल तुम्हारे जरिये ही सुनने को मिले जिन्हें में कभी भूल नहीं सकता. प्रिय टाटा डोकोमो वो तुम ही तो थे जिसने मुझे हर पल "उसकी" खूबसूरत आवाज से जोड़े रखा. उसके पास भी तुम थे और मेरे पास भी. तुमने ही तो मुझे एक स्पेशल रिचार्ज से पूरे महीने "उससे" मुफ्त दिन-रात बातें करने का मौका दिया. उफ़! कैसे भूल सकता हूँ उन दिनों को.

मैं तो तुमसे ये शिकायत भी नहीं कर सकता कि तुम्हारी वजह से ही मेरा दिल चोरी हो गया और तुम्हारी ही वजह से मेरे दिल पर "उसने" हुकूमत कर ली और मैं कुछ न कर सका. पर जो मेरे साथ नींद, चैन, प्यार, दिल की लूट हुयी उसका भी जीवन में एक आनंद था. उस लूट ने ही तो कंगाल होने पर मुझे मेहनत करने के लिए प्रेरित किया. आज उसी लूट का ही तो नतीजा है जिस जगह में पंहुचा हूँ. पर इसका पूरा श्रेय मैं उस लूट को नहीं दे सकता, इसका कुछ श्रेय तुम्हें भी जाता है.

पर, टाटा डोकोमो तुम बहुत निर्दयी भी हो. मैं उस दर्द को कैसे भूल जाऊं जब तुम तेजी से सुबह सुबह ही चीखने लगे, इतना तो तय था खबर मनहूस ही होगी तभी तो फ़ोन भी पहले से ही कांपने लगा था. मैं सुनने को मजबूर था, जैसे ही तुम्हे अपने दिल से हटाकर कान पर लगाया तो सच मानो टाटा डोकोमो दुःख का पहाड़ टूट पड़ा. काश उस दिन तुम छुट्टी पर चले जाते. या "उसे" कह देते कि मैं अभी पहुँच से बाहर हूँ तो शायद वो मनहूस खबर तो नहीं सुनता. पर तुम्हें भी क्या दोष दूं, तुम तो अपना काम नि:स्वार्थ भाव से कर रहे थे. 

जानते हो टाटा डोकोमो उस दिन हुआ क्या? "उस" बेचारी को भी क्या दोष हूँ मैं, वो तो समाज के ठेकेदारों से हारी है. समाज से बाहर शादी करने को मना कर दिया तो उसने वही मुझसे कह दिया. बस! लेकिन यहाँ सब कुछ ख़तम नहीं हो जाता. काश! मैं इंसान न होकर तुम्हारी तरह ही एक माध्यम होता. जैसे तुम आईडिया, एयरटेल, बीएसएनएल अन्य माधयमों से चाहने भर से तुरंत और बिना इजाजत जुड़ जाते हो, काश समाज भी बिना इजाजत और मुक्त स्वभाव से किसी से भी जुड़ सकता तो दुनिया बेहद खूबसूरत होती. 

खैर, गड़े मुर्दे क्या उखाड़ना. जब जब तुम मेरे दिल के करीब होते हो तो सिर्फ तुम ही दिल के करीब नहीं होते. पुरानी यादें भी करीब होती हैं. इसलिए मैंने एक कठोर और असहनीय निर्णय लिया है. जैसे राम ने लक्ष्मण के साथ रहकर सीता जी की देखभाल की, वैसे ही तुमने मेरे साथ रहकर हमेशा उसकी खैर-खबर बनाए रखी. लेकिन, एक वक़्त राम ने ही न चाहते हुए भी लक्ष्मण को मजबूरी और वचन में बंधने के कारण त्याग दिया था. वैसे ही आज मैं भी तुम्हें त्यागने के लिए मजबूर हूँ. ताकि पुरानी यादें ताजा न हों. 

मुझे माफ़ कर देना टाटा डोकोमो. और हो सके तो मुझे संवेदनहीन मालिक न कहना.


तुम्हारा-  समाज से लड़ता "संघर्ष"


सोमवार, जून 23, 2014

जिम्मेदारी को तो समझाना ही होगा


कदम कदम "हगाये" जा, खुशी के गीत गाये जा,

ये गन्दगी है देश की, तू देश में फैलाये जा.








कितनी अजीब बात है, जब कोई हमारी बहन को घूर कर देखता है तो हमारा खून खोल जाता है, पर शौचालय के लिए जब वो बहन जाती है और तब उसे कोई शौच करते देखे तो कोई दिक्कत नहीं होती.
दोस्तों बड़ा दुःख होता है जब सरकार द्वारा शौचालय बनाने के लिए खाते में रुपया पहुँचाया जाता है और लोग उस पैसे को चाट कर जाते हैं... और फिर रोना रोते हैं की हम गरीब कहाँ से पैसे जुटाएं.
और फिर क्या होता है, हर सुबह की तरह बैठे मिलते हैं या तो नदी नालों के अगल बगल में या पटरी पर.

ये गलत आदत है. आप सिर्फ अपना ही नुक्सान नहीं कर रहे, बल्कि गन्दी फैलाकर पर्यावरण को भी दूषित कर रहे हैं.

आप रोज रोज एक ही जगह मलत्याग करने जाओगे और वह सफाई नहीं होगी तो मल सड़ते सड़ते जहर बन जायेगा और पर्यावरण में कणों के रूप में खुलकर आपके गाँव-मुहल्लों को ही बीमार करेगा.
मैं विज्ञान का छात्र तो नहीं हूँ, पर आर्ट साइड में भी इतना तो सीखा ही है की क्या गंदगी है और क्या सफाई.


मैं इस बात को नहीं नकारता कि नेता पैसा खा जाते हैं, लेकिन जितना भी मिलता है उतना तो शौचालय की दीवार बनाई जा सकती है, एक गड्ढा तो बनाया ही जा सकता है.


ये भी सच नहीं है की लोग जागरूक नहीं हैं, अगर जागरूक नहीं होते तो शौचालय का पैसा पाने के लिए इतनी भाग दौड़, खाता खुलवाना आदि नहीं कर पाते. ये काफी जागरूक हैं. बस काम करने को राजी नहीं हैं. वोट देकर पूरी जिम्मेदारी सरकार पर सौप देना चाहते हैं.

कृपया शौचालय बनवाइए और बीमारियों को कम कीजिये, क्योंकि अमीर तो अपने घर में दरवाजा, खिड़की बंद कर लेगा, A.C में बैठेगा. उसके बीमार होने के चांस बहुत कम होते हैं. बीमारी के 99 % संभावनाएं निर्धन और गरीब, मजदूर लोगों की ही होती है. और आप लोग ही अपने आस पास गंदगी फैलाते हो.
एक कहावत है- अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना. ये लोग वही कर रहे हैं. इन्हें पता नहीं, की अपने सड़ते मल मूत्र से एक दिन वही बीमार पद जायेंगे, और जब बीमारी हवा की तरह फैलने लगेगी तो दोष सरकार पर डाल देंगे, कि सर्कार प्रशासन ने कुछ नहीं किया.
अरे पहले जो आपने "किया" है उस पर तो चर्चा करो, फिर जो सरकार ने नहीं किया उस पर चर्चा करना.

मुझे समझने की कोशिश कीजियेगा, मैं आप पर आरोप नहीं, आपकी कमी बता रहा हूँ ताकि उसका जल्द सुधार हो और आप स्वयं की बीमारी से पार पा सकें :-)

आपका छोटा भाई.

गुरुवार, जून 05, 2014

छात्र शिक्षा भी है पौधरोपण

उत्तर प्रदेश में छात्रों का भविष्य अधर में डालने की तैयारी चल रही है या सरकार स्थिति से अनजान है, इस पर मुझे कुछ नहीं कहना.
लेकिन हाँ, मैं इस बात पर चर्चा जरूर करना चाहूँगा कि एक शिक्षक माली की तरह होता है जो बच्चों को शिक्षित कर उनके और देश के भविष्य का निर्माण करता है.
उत्तर प्रदेश में जिन्होंने बीटीसी की परीक्षा पत्राचार से पास की और यूपी टीईटी परीक्षा पास नहीं की उन्हें स्थायी शिक्षक (permanent job) बनाया जा रहा है. और जिन्होंने बी.एड/बीटीसी रेगुलर (नियमित) पढ़कर पास की और इसके साथ यूपी टीईटी परीक्षा भी पास की है, उन्हें यही समाजवादी पार्टी की यूपी सरकार नियमित करने में ढील दे रही है.
बात ये नहीं की सरकार ढील दे रही है. बात है उत्तर प्रदेश के भविष्य के निर्माण की. बात है देश के भविष्य की. बात है छात्रो के करियर की.

क्या ये सही है जो "माली" योग्य नहीं है फिर भी उसे बागवाँ सौंप दिया जाए.... क्या कोई किसान मिस्त्री से खेती करवाता है?? नहीं करवाता क्यूंकि सभी जानते हैं मिस्त्री घर की दीवार तो बना सकता है, किसानी नहीं कर सकता. बिलकुल इसी तरह से एक अयोग्य शिक्षक आने वाली पीढ़ी को सिर्फ भर्ष्टाचार के तरीके, असामाजिकता, गैर जिम्मेदारी आदि ही सिखा सकता है, मेहनत करना नहीं, क्यूंकि उसने खुद मेहनत नहीं की तो और को क्या सिखा पायेगा. 

मेरा मानना है योग्यताधारी और पात्र अभ्यर्थियों को ही शिक्षक बनने का मौका मिलना चाहिए.
क्यूंकि एक माली ही समझता है की किस पौधे को कब और कितना पानी देना है ताकि वो फले-फूले, न की सूख जाए :-)
31-05-2014, amar ujala, Lucknow.
4-06-2014, amar ujala, lucknow