सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

मंगलवार, नवंबर 28, 2017

रोता रहा छोटू

मोसम ठंडा था तो दीना अपने बच्चे को स्वेटर पहना कर तैयार कर रहा था. छोटू के सर पर टोपा भी लगा दिया. दीना जानता था की ट्रेन में सफ़र करते समय ठंडी हवा लगेगी इसलिए पहले से ही तैयारी कर रहा था.

घर से निकल लिया. छोटू बहुत खुश था. घर से बहार जाकर तो हर बच्चा खुश ही रहता है. आज तो नये कपडे भी पहने हैं पापा कहीं ले जा रहा हैं. ये तो पता नहीं कहाँ ले जा रहे हैं. पर हाँ कहीं जा रहे हैं. 

छोटू को बोलना नहीं आता. अभी छोटा है. स्टेशन पर पहुँच कर टिकट ले लिया और प्लेटफार्म पर ट्रेन का इन्तजार . छोटू खुश है. खेलने को जो मिल रहा है. 

आस पास के राहगीर भी छोटू की अटखेलियों से मुस्कुरा रहे थे. जो छोटू से बात करना चाहता उनसे वो बात नहीं करता और तुरंत पापा से लिपट जाता. बहरहाल इन्तेजार ख़त्म हो गया. ट्रेन आ गयी. 

दीना छोटू के साथ ट्रेन के जनरल डब्बे में चढ़ गया. ट्रेन चल दी. दीं को एकल सीट मिली तो वहीँ बैठ गया. छोटू पापा की गोद में था. ट्रेन चलती रही. लोगो चढ़ते और उतरते रहे.

अचानक सब कुछ बदल गया. छोटू का रोने लगा. ट्रेन खाली हो गयी. छोटू पापा को जगाने लगा. पापा जग नहीं रहे थे. कुछ बोल भी नहीं रहे थे. छोटू घबराने लगा.. ट्रेन के डिब्बे में कोई नहीं था. छोटू रोने लगा. रोने से शरीन में गर्मी भी आई.. स्वेटर पहना था. सर पर टोपी गर्मी से नाक बहने लगी... रोना बंद नहीं किया... कुछ लोग प्लेटफोर्म से गुजर रहे थे. उन्होंने देखना डब्बा खाली है और उसमें एक बच्चा रो रहा है.. एक आदमी सीट पर बैठा है. लोगों ने पता किया और हैरान रह गये. दीना की मौत हो चुकी थी. किसी को कुछ नहीं पता कैसे दीना मर गया. लोगो ने पता लगाने की कोशिश की क्या नाम है इसका कुछ नहीं पता. बच्चे को चुपाने की कोशिश की लेकिन छोटू अनजान से कुछ नहीं बोलता था... जाके पापा से चिपक गया. एक दो लोगो को दया आ गयी, जो गरीब थे.. क्योंकि अमीरों को दया आने के लिए टाइम नहीं था.. वो सीधे तन तनाते चले जा रहे थे.... और वैसे भी अमीरों का जेनेरल डब्बे से क्या लेना देना.

छोटू का बुरा हाल था.. कुछ गरीब लोगों ने बच्चे को पानी पिलाया. सर से टोपा हटाया ताकि उसकी घबराहट कम हो सके. छोटू से बहुत पूछने की कोशिश की कि कुछ तो सूचना मिल जाय... बहरहाल नहीं मिल सकी. गोदी से उतर कर वापस पापा से चिपक गया. बार बार हिलाकर पापा को उठाने की कोशिश कर रहा था. लेकिन पापा नहीं उठे. 

अब क्या करेगा छोटू. वो भूखा है. घंटो से सिर्फ रोये जा रहा है. उसे सिर्फ पापा चाहिए कोई और नहीं. पेंट में ही पिसाब हो गया. आंसू गालों पर सूख गये. गाल रूखे हो गये. नाक बह रही है. रो रो कर अब तो डकारें भी आने लगी. और पापा हैं की उठने का नाम नहीं ले रहे. घर वाला भी कोई नहीं जिसकी गोदी में चला जाय. पापा के पास घंटो से खड़ा है. 

आखिर दीना उठ क्यों नहीं रहा था. जब लोगों का भरोसा उठ सकता है. इतिहास से पर्दा उठ सकता है.. यहाँ तक की इंसानियत तक उठ सकती है तो दीना क्यों नहीं उठ सकता. वो भी तब जब बेटा रो रोकर जगा रहा हो... आसुओं से स्वेटर तक भीग गया. कमाल तो ये है की भगवान् का मन तक नहीं पसीजा. कहाँ चला जाता है भगवान् जब लोग अपने फायदे के लिए लोगों का कत्लेआम कर देते हैं. भ्रष्टाचार करते हैं. छोटू की स्थिति देखकर लग रहा था, कि कोई भगवान् नहीं होते.

क्या किसी ने जहर दे दिया. या कोई दुःख था दीना को जिससे उसकी मौत हो गयी..अब छोटू का क्या होगा... क्या होता है उनका जिनका कोई नहीं होता. 

बात देश की नहीं, समाज की नहीं, धर्म सम्प्रदाय की नहीं, बात है ऐसे बच्चे की. छोटू जैसे बच्चों का भी अधिकार है जीना. उनका भी अधिकार है कि उनके पास माता पिता का साया हो. जब भी ऐसी तसवीरें देखने को मिलती है.. तो दिल से आवाज आती है या तो कुछ करो या डूब मरो. कोई बोलने लगता है, कोई लिखने लगता है. 

क्या कोई है जो छोटू को गोद लेकर उसे चुपा सके. उसका रोना बंद कर सके. उसे प्यार से खाना खिला सके.

मेरी तो शायद हैसियत भी नहीं की इस कहानी का अंत लिख सकूं. इसलिए यही पर इस कहानी का अंत कर रहा हूँ.





फेसबुक पर देखी एक फोटो (लिंक नीचे है) से प्रेरित कहानी
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=419648848426032&set=a.169812440076342.1073741828.100011427624375&type=3&theater

बुधवार, नवंबर 15, 2017

दुर्भाग्य, हमारा या देश का ?

क्या आपने खुले आम धांधली या भ्रष्टाचार होते हुए देखा है???
नहीं ?
तो पढ़िए 

ये दुर्भाग्य हमारा है या देश का. एक छोटा सा उदाहरण देखिये.

दोस्तों मेरी पत्नी ने IIT Mandi में फॉर्म भरा. पोस्ट है (अब कहना चाहिए "पोस्ट थी") Library Trainee.

इसकी लिखित परीक्षा होनी है 15 नवम्बर को और call letter (फोटो में) आ रहा है आज शाम यानि 14 नवम्बर को. 

मैंने इस देरी का कारण जानना चाहा. 

1. लैटर स्पीड पोस्ट से आया जो 6 नवम्बर को बुक हुआ. इसका consignment no है- EE766680210IN . आप स्वयं https://www.indiapost.gov.in/VAS/Pages/TrackConsignment.aspx
इस लिंक से पता कर सकते हैं.

2. लैटर पर तारिख है 2 नवम्बर (फोटो देखिये). अब सवाल ये है कि 2 तारिख का लैटर 4 दिन तक अपने पास क्यों रखा गया??

3. लैटर 2 या 3 नवम्बर को क्यों नहीं भेजा गया??

4 इण्डिया पोस्ट वाले भी गजब हैं. एक तरफ कहते हैं, 4 दिन में स्पीड पोस्ट पहुँच जायेगा... और इनका हाल देख लो.

अब मैं आपको पूरी कहानी समझाता हूँ.

जब कोई पोस्ट पर रिश्वत या धांधली या अप्रोच या भ्रष्टाचार से भरना हो तो ऐसे संस्थान या विभाग ऐसे ही करते हैं.... लैटर पर कुछ और तारिख लिख देते हैं.... ताकि अभ्यर्थी को लगे कि बहुत मेहनत की जा रही है... और बहुत पहले ही लैटर भेजे जा रहे हैं... फिर उसे फाइलों में दबा दिया जाता है... फिर call letter तब भेजे जाते हैं... जब अभ्यर्थी के लिए वहाँ पहुँचाना संभव नहीं हो पता जहाँ परीक्षा होनी है. ..ऊपर से लिख दिया जाता है की विलम्ब के लिए संस्थान जिम्मेदार नहीं होगा. चूंकि हर कोई जनता है की इंडिया पोस्ट का कोई भरोसा नहीं कब पहुंचे. ऐसे में इसका भी लाभ ले लिया जाता है.

इस तरह कुछेक पहुँच जाते हैं.... और बहुत से नहीं पहुँच पाते (जैसे मेरी पत्नी नहीं पहुँच सकती)  और भीड़ स्वतः ही हट जाती है.. जो बचे कुचे होते हैं परीक्षा में उन्हें इंटरव्यू में रगड़ देते हैं....
अंततः चयन उसका हो जाता है जिसके लिए पूरी प्रक्रिया की गयी.

अब बात आती है, चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाने की. तो भैया आप एक भी सवाल नहीं उठा सकते क्योंकि... चयन पूरे नियम और कानून के तहत हुआ होता है. 

फिर चाहे आप RTI डालो या high court जाओ या supreme court आप इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाते.
कुछ किस्मत को दोष देते हैं... कुछ मेरे जैसे लिखते हैं.
लेकिन होता कुछ नहीं.

जितना बड़ा संस्थान, उतनी बड़ी धांधली वो भी उच्च कोटि की. वो भी खुलेआम. कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता इनका.. क्योंकि जो बिगाड़ सकते हैं.... उन्हें "हिस्सा" पहुंचा दिया जाता है.
ऐसे में कोई कार्यवाही नहीं. 
(कार्यवाही तभी होती है जब व्यक्तिगत नुक्सान हो सकने की सम्भावना हो या "हिस्सा" न पहुंचा हो. कभी कभी देश भक्त भी भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करते और कार्यवाही कर देते हैं.)
खैर 

तुन तुना बजाते रहिये... राधे श्याम गाते रहिये...




मंगलवार, अगस्त 15, 2017

गाय माता है या जानवर??


14 अगस्त 2017, पायनियर अख़बार
पायनियर में आप खुद देखिये पेज 4 पर भाजपा की मंत्री रीता बहुगुणा जी, गाय की सेवा में एक वाहन की शुरुआत कर रही हैं,
वही अगले ही पेज 5 पर खबर है कि आवारा जानवरों (जिसमें गाय शामिल है) से राजधानी बदहाल है.

प्रश्न- सवाल ये है कि गाय माता है या जानवर??

विचार- माँ कभी भी जानवर नहीं हो सकती लेकिन हर मादा जानवर माँ हो सकती है.

दुःख-
दुःख इस बात का है, कि करोडो रूपए गाय के नाम पर विभिन्न तरीके से सरकार से ले लिए जाते हैं, ताकि गाय सुरक्षित हो सके, और कुछ भी गाय पर खर्च नहीं किया जाता, और खबरें क्या आती हैं, "आवारा जानवरों" से राजधानी (लखनऊ) बेहाल है



सोमवार, जुलाई 10, 2017

चीन यूं ही नहीं गुर्राता भारत पर...

7 july 2017

चीन यूं ही नहीं गुर्राता भारत पर.. कुछ तो कारण है इस गुर्राहट के.
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पढ़िए आज की घटना.-
हुआ ये कि मुझे नया फ़ोन लेना था....(अभी भी लिया नहीं... लेना है)
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तो मैं लखनऊ के सबसे बड़े मोबाइल बाज़ार में गया (श्रीराम टावर)
यहाँ मैंने एसर फ़ोन (ताइवान) पूछा नहीं मिला.
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फिर पनासोनिक (जापानी) फ़ोन माँगा तो कहने लगे सर.... ये तो बेकार हैं... आप ये लीजिये.....(लेनोवो, जियोनी...). मैंने साफ़ कह दिया मुझे एक भी चानिज फ़ोन नहीं चाहिए.
वो इस पर थोडा सा मुस्करा दिए...
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फिर मैंने micromax yu yureka black माँगा तो उनकी हंसी छूट पड़ी. और फिर कहा....ये सिर्फ ऑनलाइन ही बिक रहा है.
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हद है.
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एसर बहुत कम बिकता है.
पनासोनिक की डिमांड नहीं.
एप्प्ल मैं ले नहीं पाउँगा फिलहाल.
micromax नाम लेते ही भारतीय विक्रेताओं की हंसी छूट जाती है. "हा हा हा ... क्या सर आप भी कौन सा फ़ोन ले रहे हैं ....
जो कॉपी करता है...."
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अब बचा क्या.....
लेनोवो (चाइनीज) अच्छा है.
जिओनी (चाइनीज) अच्छा है.
mi (चाइनीज) इतना गजब है कि हमेशा out of stock रहता है.
ओप्पो (चाइनीज) आज कल बहुत मांग है.
विवो (चाइनीज) बहुत पसंद किया जा रहा है.
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....क्या यार.
चीन आपको ज्यादा कमीशन दे रहा है तो क्या बाकी फ़ोन खराब हो गये...???
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और micromax पर हंसने की क्या बात है?????
असल में चीन ऐसा जहर घोल रहा है कि आप अपने देश की बनी सामग्री पर हंसो... और आप हंस रहे हो.
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जो टक्कर micromax ने मोबाइल की दुनिया को दी है..... वो शायद ही किसी और भारतीय कंपनी नहीं दे पाई हो...
और एक हम हैं जो उसकी प्रशंसा करने की बजाये... उसकी खिल्ली उड़ाते हैं.
.....
और अंत में-
चीन में ऐसी कोई दुकान नहीं होगी, जिसमें चीन का मोबाइल न बिकता हो.. लेकिन हमारे देश में कई दुकाने हैं जहाँ भारतीय कंपनी का मोबाइल नहीं मिलता....

सोमवार, जून 19, 2017

समाज में कोई भी पुत्री की चाह नहीं रखेगा

4 फ़रवरी 2016
बृजेन्द्र कुमार वर्मा।


देश बडे़ उतार चढ़ाव से गुजर रहा है। हर विषय पर राजनीतिक पहलु उस विषय को और अधिक संवेदनशील बना देते हैं। एक वक्त था जहां आप किसी धर्म की कमी पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी कर जागरूकता ला सकते थे, आज धर्म पर बोलने मात्र से या फिर नकल करने मात्र से केस दर्ज हो जाता है। हाल ही में एक और संवेदनशील चर्चा हो रही है। भ्रूण लिंग की जांच की जाए या न की जाए। सोचने वाली बात है कि जो देश विकसित सिर्फ जनसंख्या वृद्धि और लिंगानुपात की बढ़ती दर की वजह से नहीं हो पा रहा हो, वहां भ्रूण लिंग की जांच कराने का पक्ष रखना विद्रोह पूर्ण है। 

आज देश में लड़कियों से छेड़छाड़, बालात्कार जैसी घटनाएं तेजी से जन्म ले रही हैं। इसे समझने की कोशिश करें तो आसानी से पता चल जाएगा कि आखिर इसका कारण लिंगानुपात है। 1000 पुरूष पर 933 महिलाएं। ऐसे में बाकी पुरुष जिन्हें महिलाएं उपलब्ध नहीं हैं, वे असामाजिक कार्यों में लिप्त हो जाते हैं और इस तरह की घटनाएं होने लगती है। अगर भ्रूण लिंग जांच को इजाजत मिल जाए तो निडर हो लोग जांच करा अपने अनुसार बच्चों की चाहत पूरी की जा सकेगी, जो प्रकृति के साथ बड़ा खिलवाड़ होगा। 

सरकार हर हालत में प्रति हजार पुरुष पर महिलाओं को बराबर लाना चाहती है ताकि हर पुरुष की शादी एक महिला से हो सके ओर छेड़छाड़ या बालात्कार जैसी घटनाओं पर लगाम लगा सके। लेकिन जांच को इजाजत मिल जाने से लिंगानुपात बराबर लाना और अधिक कठिन हो जाएगा। इतना ही नहीं भ्रूण लिंग जांच का धंधा खुलेआम चलना शुरू हो जाएगा।

सोचने वाली बात है जब इस भ्रूण जांच करने के लिखाफ कठोर दण्ड देने का प्रावधान है, उसके बावजूद यह कार्य धड़ल्ले से फल फूल रहा है तो जांच को लागू कर देने के बाद क्या स्थिति होगी। 

पुत्र की चाह रखने वाले इस समाज में कोई भी पुत्री की चाह नहीं रखेगा। पुत्री सीधे तौर पर दहेज से जुड़ी होती है। और पुत्र सीधे तौर पर वंश से। ऐसे में, एक तरफ लोगों की मानसिकता को बदलना कठिन हो रहा है और दूसरी ओर भ्रूण जांच को इजाजत मिलने से इस मानसिकता को बदल पाना असंभव हो जाएगा। 

देश में जरूरी ये नहीं कि लोगों छूट दी जाए, जरूरी ये है कि लिंगानुपात दूर किया जा सके। अंत में यही कहना सही होगा कि भ्रूण की जांच तभी ठीक है जब तक देश में लिंगानुपात बराबर हो। 

मीडिया आखिर करे तो करे क्या ?

22 sep 2015
बृजेंद्र कुमार वर्मा.


डेंगू का कहर इन दिनों जोरों पर है. हर जगह लोगों में एक दर पैदा हो गया है. स्थिति ये है, कि सरकार को स्वयं कहना पड़ रहा है कि डरने की जरूरत नहीं, डेंगू का इलाज है. अगर डेंगू कि खबरों कि बात करें तो मीडिया इन दिनों भारी दवाब से गुजर रहा है. बात ये नहीं कि मीडिया डेंगू के मरीजों की बढ़ती संख्या को दिखा रहा है या अस्पतालों की खस्ता हालत को बयाँ कर रहा है और डेंगू के डर को फैला रहा है या उसकी रोकथाम में अपने भूमिका दर्ज करा रहा है. बात ये भी है, कि आखिर जो भी खबरें मीडिया में प्रकाशित या प्रसारित की जा रही हैं, उनका असर लोगों पर क्या पड़ रहा है?

एक ओर, एक पाठक, एक ही अख़बार पढ़कर डेंगू की भयावय स्थिति को जानता है और वहीं दूसरी ओर, उसी अखबार में सरकारी विज्ञापन, ये सन्देश देता दिखाई देता है कि डेंगू से डरने की जरूरत नहीं, दहशत में आने की जरूरत नहीं है. अब ऐसे में पाठक समझ ही नहीं पाता कि आखिर अखबार कहना या बताना क्या चाहता है? कई बार पाठक द्वारा ये तय करना मुश्किल हो जाता है कि आखिर भारत में प्रकशित हो रहे अखबारों का मूल उद्देश्य क्या है? क्या उनका मूल उद्देश्य सूचनाओं को प्रेषित करना है या विज्ञापन प्रकाशन के चलते धन कमाना?

पिछले कुछ दिनों से अखबारों में डेंगू की स्थिति पर अच्छा कवरेज हुआ है. हर दिन डेंगू के बढ़ते मरीजों के अलावा, अस्पतालों के हाल तक बयाँ किये जा रहे हैं. आलम ये है कि लोग डेंगू से जुडी ख़बरों को पढ़कर डरने लगे हैं. क्यूंकि आये दिन डेंगू के बुखार से लोग मर रहे हैं. सरकारी चिकित्सालयों में मरीजों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ने से सबको सही तरह से इलाज़ नहीं मिल पा रहा है. खबरें ये भी आयीं हैं कि छोटे-छोटे बच्चे डेंगू कि चपेट में आये, बुखार हुआ और डेंगू का पता लगते ही 48 घंटों में ही उनकी मौत हो गयी. इस तरह की खबरों को पढ़कर शायद ही कोई पाठक होगा जो सहमा नहीं होगा या कहें, दहशत में नहीं आया होगा. एक तो सरकार डेंगू के मरीजों को सही समय पर वांछित उपचार और आराम नहीं दे पा रही है, क्यूंकि डेंगू के मरीजों की संख्या इतनी ज्यादा है कि डेंगू के सकारात्मक या नकारात्मक होने की रिपोर्ट सही समय पर नहीं मिल पा रही है, और जब तक रिपोर्ट आती है तब तक मरीज की हालत और बिगड़ जाती है. हाल ही में खबर मिली कि डेंगू के टेस्ट की फीस भी बारह सौ से पंद्रह सौ तक पहुँच गई है. निजी अस्पतालों की तो बल्ले बल्ले हो रही है आजकल.

स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, मरीजों को सरकारी अस्पतालों में बिस्तर तक नसीब नहीं हो पा रहा है, किसी का उपचार फर्श पर लिटाकर किया जा रहा है तो किसी को जमीन पर लेटने के लिए जगह तक नसीब नहीं. हर पाठक इन परिस्थितियों से वाकिफ हो रहा है. अब बात आती है, कि इस तरह की ख़बरों का पाठकों या कहें जनता पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, तो बड़े आसानी से इसका जवाब मिल जाएगा कि लोग अब दहशत में आने लगे हैं. डेंगू जिस कदर लोगों को उनके परिजनों से हमेशा हमेशा के लिए दूर कर रहा है, इस तरह की खबरों से हर कोई हैरान-परेशान हो चुका है. अब पाठक अखबार में डेंगू की स्थिति जानने के लिए अख़बार नहीं पढ़ रहा, अब पाठक सिर्फ रोकथाम और सार्थक उपचार को खोज रहा है.


अभी तो हमने सिर्फ एक पक्ष की बात की है. दूसरा पक्ष भी हमें देखना होगा. मीडिया में चाहे खबरों का कुछ भी असर हुआ हो लेकिन, विज्ञापनों के जरिये लोगों तक ऐसी जानकारी पहुंचाई जा रही है, जिससे वे सहमे नहीं और विवेक से काम लें. सरकार द्वारा जारी किये जा रहे विज्ञापनों में डेंगू सम्बन्धी रोकथाम और उपचार के बारे में बताया गया है. अगर एक और खबरों से पाठक भय में भी आया है तो विज्ञापन से मन थोडा बहुत तो हल्का हुआ है.. इसका एक लाभ ये हुआ कि लोगों तक पहुंचकर विज्ञापन ने उन्हें सांत्वना दी है और दूसरी तरफ अखबार को भी विज्ञापन प्रकाशित करने से आर्थिक लाभ पहुंचा. सरकार भी पुरजोर प्रयास कर रही है, पर ये प्रयास डेंगू के कहर के आगे कमजोर नजर आ रहे हैं. सरकार के नुमाइंदों को अब सड़क पर आना ही पड़ेगा. यहाँ आला अधिकारियों को उपचार करने के लिए नहीं कहा जा रहा. यहाँ उनके द्वारा डेंगू को और अधिक न बढ़ने देने और उसकी रोकथाम में अहम् भूमिका निभाने से हैं. 

जबरन गन्दगी फैलाने वालों पर सख्त कार्यवाही को शुरू करना होगा. जागरूक अभियानों को नये कलेवर के साथ प्रस्तुत करना होगा. "पानी जमा न होने दें" जैसे संदेशों के विज्ञापनों का दौर अब लगभग खत्म हो चुका है. अब वक़्त है ये बताने का कि जब आप आस्तीन में सांप नहीं पालते, ये जानते हुए कि इसके काटने से आदमी की मौत अड़तालीस घंटों में हो सकती है, उसी प्रकार आप अपने घर में रुके हुए पानी में मच्छर कैसे पाल सकते हो, जिसके काटने से भी आदमी की मौत अड़तालीस घंटों में हो सकती है?