सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

शुक्रवार, अक्तूबर 22, 2021

वक्त ने

वो जो रात में बातें करके अपना जताते हैं हमको, वही दिन भर पराया बताते हैं हमको।

बिना पूछे जिन्होंने सही ठहराया दिया खुद को
न चाहकर भी उन्होंने सवाली बना दिया हमको।

किस किस तरह से व्याख्या कर देते हो खुद को सिद्ध करने की
इसके लिए थोड़ा मेथ्डोलॉजी भी बता दिया करो हमको

तुम्हें क्या लगा, किस्मत के मोहताज हो गए हम,
अरे इसी वक्त ने तो फौलाद बना दिया हमको।

शनिवार, अक्तूबर 09, 2021

किसके कांशीराम ?

आज हर बहुजन संबधी राजनीतिक पार्टियाँ मान्यवर कांशीराम जी को अपने पार्टी का घोषित करने में लगी हुयीं हैं. हाँ ये अलग बात है, कि कोई भी उनके जैसा काम करने को राज़ी नहीं है. सब अपने मतलब और सत्ता के लालच में हैं. कांशीराम अब नाम नहीं रहा, बल्कि ये एक ब्रांड बन चुका है. जिसके कांशीराम, उसकी जनता, उसकी सत्ता. 

तमाम पार्टियों ने जिस तरह से कांशीराम को अपनी पार्टी का पेटेंट करने की कोशिश की है, उस तरह से उनके नक़्शे कदम पर चलने की कोशिश नहीं की. कांशीराम को सिर्फ वही पार्टी अपनी और आकर्षित कर सकेगी, जो उनके नक़्शे कदम पर चलने की ताकत रखती हो और बहुजनों को एक सूत्र में पिरोने की कोशिश कर रही हो. अन्यथा कांशीराम जी कि जन्मदिवस और परिनिर्वाण दिवस मनाना मात्र दिखावा रह जाएगा और ये ज्यादा दिन तक नहीं चल सकेगा, बहुजन जनता बहुत जल्द समझ जाएगी. 

बहुजनों अर्थात SC/ST/OBC में हजारों वर्षों से एक कमी है, जिसे बाबा साहेब, कांशीराम जैसे योद्धाओं ने भी दूर नहीं कर पाया, वो है, एकता न होना. 

यदि सामान्य वर्ग पर ध्यान दें, तो इनमें जबरदस्त एकता पायी जाती है. ये आपको सुबह लड़ते हुए दिख भी जाएँ तो शाम तब होती है जब एक थाली में खाना खाते हैं. दूसरी और बहुजनों की स्थिति है, जहाँ हमेशा से यही कोशिश रही है कि बहुजन एक हों, लेकिन एक नहीं हो पाते.

सबसे ज्यादा आपसी टिप्पणियाँ बहुजनों में ही है- 

कांशीराम जी ने बामसेफ बनाया, और बहुजन समाज पार्टी भी उन्होंने ही बनाई. लेकिन आज उनके बाद स्थिति ये है. कि बामसेफ और बहुजन समाज पार्टी की विचारधारा अलग हो चुकी है. दोनों संस्थान एक दूसरे पर टिप्पणियां करते रहते हैं. इन दोनों के अलावा भी अन्य पार्टियों का भी आपसी मतभेद है. 

राजनितिक पार्टियों के अलावा सामाजिक चिंतकों में भी आपसी मतभेद यहाँ तक कि आपसी खटास भी है. जबकि काम बहुजन केन्द्रित ही कर रहे हैं. लेकिन सब अपने को अम्बेडकर विचारक और सामने वाले को दिखावटी घोषित करने में लगे हैं. 

बहुजन के नाम से 4 प्रमुख पार्टियाँ और सभी एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं - 

बहुजन समाज पार्टी कहती है, चंद्रशेखर की आज़ाद समाज पार्टी RSS से प्रभावित है, चन्द्र शेखर रावण बसपा पर आरोप लगाते हैं. एक पार्टी और है "कांशीराम बहुजन मूलनिवासी पार्टी", ये भी बसपा पर आरोप लगाते हैं. एक पार्टी और है, बी०एम०पी० अर्थात बहुजन मुक्ति पार्टी, जो अपने को बहुजन समर्पित कहती है और ये भी अन्य पार्टियों पर सवाल उठाते हैं. हर पार्टी जोर शोर से बहुजनों को आकर्षित करने में लगे हैं. आखिर बहुजन जाए तो जाए कहाँ ?

पार्टी का विलय, लेकिन किसका ?

हर पार्टी की कोशिश है, कि बहुजनों की सरकार बने, लेकिन ये तभी होगा जब कोई एक प्रमुख पार्टी हो. ऐसा तब होगा जब सभी पार्टियों का विलय हो जाए और कोई एक पार्टी प्रमुखता से सामने आये. 

लेकिन फिर के सवाल है, कि किस पार्टी का विलय किस में हो? हर बहुजन पार्टी अपने को अच्छा साबित करने में लगी है और दूसरे की पार्टी को खराब. 

एक कारण और है, यदि एक पार्टी दूसरी पार्टी में विलय कर दे, तो स्वत दूसरी पार्टी बड़ी हो जायेगी, और जिसका विलय हुआ है उनके पदाधिकारी जिसमें विलय हुआ है उस पार्टी के पदाधिकारियों से स्वतः छोटे हो जायेंगें. जो कोई भी नहीं चाहेगा. 

9 अक्टूबर को सभी पार्टियाँ मना रही हैं कांशीराम जी का परिनिर्वाण दिवस - 

लखनऊ में BSP, BMP, BKMP कांशीराम जी का परिनिर्वाण दिवस मना रही हैं, हो सकता है एक दूसरे पर सवाल भी उठाएं. लेकिन इससे सरकार नहीं बन सकती. इसके लिए एक होना पड़ेगा. 

क्या अभी बहुजन सरकार बनने में लगेगा समय ? -

जिस तरह से बहुजन पार्टियों ने अपने अपने में बहुजनों को आकर्षित करने की होड़ शुरू की है. और कांशीराम जी को पेटेंट करने की कोशिश है इससे बहुजन में भी आपसी रंजिश शुरू हो सकती है. इससे सीधा सीध लाभी गैर बहुजन पार्टियाँ उठाएंगी. लेकिन सभी बहुजन पार्टियाँ एक हो जाएँ तो बहुत जल्द बहुजन सरकार बन सकती है. लेकिन इसके लिए सभी पार्टियों को एक मंच पर आकर खुली चर्चा करनी होगी. और एक पार्टी तय करनी होगी.