सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

शुक्रवार, अक्तूबर 21, 2011

कुछ समय के लिए रुका हूँ

आज कल कुछ लिख नहीं पा रहा हूँ, इसलिए नहीं के लिखना नहीं चाहता बल्कि इसलिएअभी वक़्त नहीं मिल पा रहा हैकुछ परीक्षाओं की तेयारी चल रही हैइसलिए फिलहाल लिखने में असमर्थ हूँ
जो मेरे कुछ एक पाठक हैं उनसे में क्षमा चाहता हूँजल्द उठेगा तीसरा कदम असामाजिकता के खिलाफ....

शुक्रवार, अगस्त 19, 2011

पहली बार

ये जो तस्वीर आप देख पा रहे हैं इस तस्वीर को अनायास ही मैंने बनाय, लेकिन क्यों बनाया, क्या कारण है, ये मुझे खुद नहीं पता।

मैं कोई पेंटर नहीं, लेकिन मेरे मन में बस यूँ ही ख्याल आया तो उन यादों के रंगों को भिगोकर मैंने कागज़ पर उतार दिया।


इस तरह की कोई भी पानी के रंगों की पेंटिंग मैंने पहली बार बनायीं है। (जो दायीं और आप देख रहे हैं)

गुरुवार, अगस्त 18, 2011

शिक्षा को रोक कर भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन ?

आज कोटद्वार के गोरमेंट इंटर कॉलेज में सुबह-सुबह किसी काम से गया। स्कूल में अच्छे से पढाई चल रही थी। कुछ बच्चे और टीचर घूम रहे थे। काफी हद तक क्लासे चल रही थीं। आज पहले से ज्यादा टीचर पढ़ा भी रहे थे।
लगभग 9 बजे ही थे की कुछ लोग स्कूल में खुसे और अन्ना के समर्थन में नारे लगाने लगे। शिक्षा को ध्यान में रखते हुए और वक़्त की नजाकत को ध्यान में रखते हुए प्रबंधन ने उन लोगों को समझाया के हम लोग भी भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं लेकिन शिक्षा तो सुचारू रूप से चलने दो।

इस पर उन लोगों ने कहा कि "अन्ना भूखे है तो देश केसे पढ़ सकता है ।" "कोई पढाई नहीं होगी." "बंद करो स्कूल", वगरह वगेरह।
मैं खड़ा सुन रहा था ये देखने के लिए कि जो लोग देश का भला चाहते हैं, वो लोग दूसरी तरफ शिक्षा के खिलाफ केसे जा सकते हैं। मैं समझ नहीं पा रहा था कि ये भ्रष्टाचार के खिलाफ नारे बाजी हो रही है या शिक्षा के खिलाफ। या फिर अन्ना के भूखे रहने की सजा स्चूली बच्चों को दी जा रही थी कि अगर अन्ना भूखे रहेंगे तो हिंदुस्तान की पढाई चोपट कर दी जाएगी....

खेर असफल प्रयास के बाद स्कूल को बंद करा दिया गया, नकारा टीचर जो पढ़ना नहीं चाहते और मुफ्त की रोटियां तोड़ना चाहते हैं वो मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। सोचा होगा चलो स्साला एक दिन और मिला मुफ्त की रोटी खाने को।
बच्चे स्कूल से वापस जाने लगे। मैं दूर खड़ा अभी भी ये तमाशा देख रहा था।
अब अन्ना समर्थक जिन्होंने स्कूल बंद करा दिया अब खड़े खड़े एक दुसरे का मूंह ताक रहे थे। उनमे एक ने कहा, "यार अब क्या किया जाए",
दूसर, "कुछ नहीं चलके सोते हैं तुझे पता नहीं शाम को झंडा चोक (कोटद्वार ) पर हल्ला करना है"
और ये बातें करके वो लोग हँसे और चल दिए... मैं खड़ा अभी भी देख रहा था।
अब मैं भी शाम का इन्तजार करने लगा, सोचा देखता हूँ कि भ्रष्टाचार का वोरोध वह कैसा होता है। शाम हुयी, वो समय भी आ गया। जमकर नारे बाज़ी हो रही थी। "अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं", "भ्रष्टाचार ख़तम करो" और न जाएं क्या क्या।
जब गला सूख जाता था तो बगल वाली दूकान से पानी की बिसलेरी की बोतल जबरदस्ती उठा के पी लेते थे

ये क्या हो रहा है, भ्रष्टाचार का वो विरोध वो लोग कर रहे हैं जो शिक्षा के खिलाफ हैं जो शिक्षा को सुचारू रूप से चलते नहीं देखना चाहते। अरे शिक्षा तो वो अधियार है जो किसी भी समस्या को काट सकता है।
मैं शिक्षा के खिलाफ जाकर भ्रष्टाचार को ख़तम करने का नहीं सोच सकता।

सोमवार, अगस्त 15, 2011

फिर आगे बढेगा तीसरा कदम

आज बी.एड पूरा होने के साथ ही मैंने अपने जीवन की एक और सीढी पार कर ली है।
खुश हूँ। अपने इस उद्देश्य के कारण कुछ लिख नहीं पा रहा था। अब लिखने को वक़्त भी है और मौका भी।
अब फिर तीसरा कदम आगे बढेगा उनके लिए जो समझ नहीं पा रहे कि आखिर किधर जाना है।
कृपया अपना सहयोग मुझे देते रहें।
आपका बृजेन्द्र वर्मा

मंगलवार, मई 10, 2011

पानी भरते समय....

आज मेरी डायरी में एक फटे हुए कागज़ में लिखी हुए एक बहुत पुरानी कविता नजर आई। ये मेरे एक लागोटिये दोस्त के लिए लिखी थी मैंने। करीब 2008 में लिखी थी ट्रेन में, जब में दिल्ली में अपने घर जा रहा था...


सुनो दोस्त, आज मैं तुम्हारी
दिल की नगरी में हूँ
खोल दो अपने दिल के एल्बम
आज निकालो वो तस्वीरें
जिसमें खेलते थे कंचे
कभी हम दोनों
देखो...
यह तस्वीर
ये वो घुट्टन्ना है
जिसे तुमने खुद
टेढ़ा-मेढ़ा सिला था
जब टैंकर से पानी
भरते समय
फट गया था ये ...


सोमवार, अप्रैल 18, 2011

ले गया कॉल लेटर एक भ्रष्टाचारी




रचित- 25 दिसम्बर 2009

जुराब धो के टांग दी थी गेट पर
माँगा संता क्लोज़ से
ऐसे संस्थान में
नोकरी दो
जहाँ राजनीति न करता हो कोई
पेन ड्राइव भी
चोरी न होती हो
भ्रष्टाचार भी न हो कतई
मुझे मिला वो गिफ्ट
25 दिसम्बर को
लेकिन यहाँ भी राजनीति
की गई मेरे खिलाफ
और चोरी कर
ले गया कॉल लेटर
एक भ्रष्टाचारी !

शनिवार, अप्रैल 16, 2011

क्या सिर्फ नाम की ही हैं बेटियां ?


जब से महिलाओं की राज्य साक्षरता दर के आंकड़े सामने आये हैं उत्तराखंड सरकार की सोच का आइना साफ़ हो गया है पुरुष और महिला के बीच के भारी अंतर से केन्द्र सरकार ने चिंता जताई है
नई जनगणना से मिले आंकड़ों ने राज्य सरकार के आँखें खोल दी हैं प्रदेश में तीन चौथाई जिलों में महिला साक्षरता दर काफी नीचे चली गई है प्रदेश में महिला साक्षरता महज 70.70 प्रतिशत है जबकि पुरुष साक्षरता 88.33 प्रतिशत है महिला-पुरुष के बीच ये आंकड़ा काफी गंम्भीर है। अब सुध लेते हुए सिर्फ ये ऐलान किया गया है कि विद्यालयी शिक्षा विभाग मुफ्त में कक्षा ९ की बालिकाओं को यूनीफोर्म और किताबें मुहैया कराएगा। ये इसलिए किया जा रहा है ताकि जो लड़कियां विभिन्न कारणों से 8वीं के बाद स्कूल में नहीं जा पातीं उन्हें मुफ्त युनिफोर्म और कोताबों से लुभाया जायेगा। हालाँकि सिर्फ इस योजना के लागू कर देने से ही कुछ हो जाने वाला नहीं है। यहाँ एक काम और करना होगा वो ये कि इस तरह की गरीब बालिकाओं के पालकों को भी उनकी पढाई के लिए प्रेरित करना होगा, ताकि योजना को पूर्ण सफल बनाया जा सके। पालकों को ये अहसास कराना होगा कि उन्हें बालिकाओं को स्कूल भेजने में कोई आर्थिक नुक्सान नहीं होगा उनके कुल खर्चे की एक कीमत सरकार अदा कर रही है। 1000 रूपए सरकार अपनी ओर से प्रत्येक बालिका पर खर्च करेगी जो बालिका 9 वीं में प्रवेश लेगी।
यहाँ स्थिति ये है कि इतना गेप तो राष्ट्रीय आंकड़ों में भी नहीं है. राष्ट्रीय महिला-पुरुष साक्षरता गैप का आंकड़ा राष्ट्रीय दर से भी दो ढाई हाँ की स्थिति पर नजर डालें तो चलेगा कि बालिकाओं के लिए चलने वाले विभिन्न योजनाओं के बावजूद सरकार बच्चों को स्कूल में नहीं रोक पा रही है. सर्व शिक्षा अभियान, कस्तूरबा गाँधी आवासीय बालिका विद्यालय जैसी योजनायें भी धरी की धरी हैं। बालिकाएं 8 वीं तक तो पढ़ती, लेकिन उसके बाद उन बालिकाओं को आगे बढ़ने का मोका नहीं मिल पाता। राज्य में आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि ८वीन के बाद बालिकाओं कि ड्रॉप दर ज्यादा है. यही कारण है कि जन्गादाना में महिला-पुरुष कि साक्षरता दर में काफी अंतर है। सरकार ये कोशिश कर रही है कि बालिकाओं को ज्यादा से ज्यादा स्कूल में आने के लिए जागरूक किया।
इसके साथ ही उनके माता-पिता को भी शिक्षा के प्रति लड़कियों को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाये। बड़ी होती लड़कियों के आगे स्कूल न भेजने का एक और कारन है। पहाड़ों में रह रहे आम लोगों का मानना है कि वे अपनी बड़ी होती बेटियों को स्कूल इसलिए नहीं भेजते क्योंकि उन्हें खतरा है कि कहीं उनकी बेटियों के साथ कोई गलत घटना न घाट जाए।
पहाड़ों में रहने वाले पालकों का शहर में रहने वाले पालकों के कारण से ज्यादा प्रमुख है। क्योंकि गावों में घर से स्कूल दूर होता है और यहाँ का रास्ता सुनसान होने के कारन बालिकाओं के लिए अपेक्षित शुर्क्षित नहीं रहता। पलको कि इस तरह कि सोच को हम नकार नहीं सकते। इस कारण को चादर बनाकर प्रशासन अपनी लापरवाही पर डाल देता। योजनायें और जागरूकता ढोल-पोल चलती रहती हैं और लड़कियों कि संख्या बड़ी कक्षाओं में घटती रहती है।
इतना ही नहीं गावों में रह रहे पालकों से बातचीत में ये भी पता चला है की उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वो अपने बेटों को पढाई के लिए तरजीह देते हैं। ऐसे में बालिकाएं रह जाती हैं। अब तक क्यों नहीं सोचा गया जब यहाँ की सरकार को ये पता था कि पालकों कि आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है तो क्या बालिकाओं के लिए आर्थिक पहल पहले से शुरू नहीं कि जा सकती थी।
अब जब कई बालिकाओं का भविष्य लडखडा चुका है तो सुध ली जा रही है। इन बालिकाओं के लिए आर्थिक पहल पहले से शुरू की जा सकती थी। खेर देर से ही सही लेकिन शुरुआत तो की। बालिकाओं के लिए 1000 रुपए प्रति बालिका पर खर्च करने का मन बनाया। ड्रॉप आउट के बारे में क्या सरकार को पहले नहीं पता था। अब ये लुभावना ऑफर देकर क्या राज्य सरकार आने वाले चुनावों के लिए सियासी खेल खेल रही है। ये देखना होगा।

गुरुवार, अप्रैल 14, 2011

संघर्ष अभी बाकी है...










आज देश भर में बाबा साहेब डॉ भीम राव आंबेडकर जी की 120 वी जयंती मनाई जा रही है। कोटद्वार (उत्तराखंड ) में भी जयंती की धूम देखी गई। सुबह से ही पूरे शहर में विभिन्न स्थानों पर आयोजन किये गये। इस दोरान लोगों में जोश कका माहौल रहा। दलितों के मसीहा कि जयंती पर दलितों का जोश सातवें आसमान पर था। जेसे-जेसे शाम होती गई सडकों पर लोगों का हुजूम बढ़ता चला गया।
यहाँ के कोडिया से बाबा साहेब की रैली का आयोजन किया। इसमे विभिन्न दलित संगठनो ने अपनी विशेष भोमिका निभाई। जुलूश कोडिया से शुरू होक्कर मैं रोड से चलते हुए झंडा चोक तक पहुची और फिर यहाँ से अलग-अलग कालोनियों से होते हुए वापस कोडिया में स्थगित की गई। भव्य रैली थी, अगर कोटद्वार को ध्यान में रखा जाये तो ये सचमुच एक भव्य रैली थी।
इस रैली को सफल बनने का सबसे अधिक श्रेय जाता है दलित साहित्य अकादमी के रह्य सचिव प्रमोद कुमार चौधरी को। मेरी और से उन्हें उनकी मेहनत के लिए बधाई।
यहाँ मैंने भी एक बात महसूस की कि अभी भी बाबा साहेब का वो सपना पूरा नहीं हो पाया , जिसका कि उन्होंने कल्पना कि थी। उन्होंने कहा था कि संगठित बनो, लेकिन मैंने यही देखा कि बाबा कि जयंती एक छोटे से शहर में अलग-अलग मनाई जा रही थी, मात्र 100 मीटर की दूरी पर।
दूसरी बात , बाबा साहेब ने कहा था कि शंघर्ष करो, लेकिन इसके बावजूद भी दलित वर्ग अपेक्षित संघर्ष नहीं कर रहा है। यही कारण है कि कुछ दलित आज भी जानवरों से बदतर जिंदगी बसर करने को मजबूर हैं। दलितों के उद्धार के लिए पार्टियाँ तो बहुत बनी, लेकिन उद्धार होता कही नहीं दिखाई दे रहा है। बहुजन समाज पार्टी से कुछ उम्मीद बंधी, लेकिन अब वो भी टूटती नजर आ रही है।
बाबा साहेब ने एक महत्वपूर्ण बात और कही थी- शिक्षित बनो। ये थोडा बहुत सफल होता जरूर दिख रहा है। कई दलित आईएएस और पीसीएस बन रहे हैं।
मुख्य धरा से उन्हें भी जोड़ना होगा
यहाँ हमें एक बात और याद रखनी होगी कि वो जो आज भी बड़ी जातियों के द्वारा परेशान किया जा रहे हैं, उन्हें भी किसी न किसी तरह से मुख्य धरा कि तरफ जोड़ना होगा ताकि वो हमारा भाई या बहन पिछड़ने न पाए। ये जिम्मेदारी भी हमें ही लेनी होगी। किसी सरकार या किसी और समुदाय प् हमें बिलकुल भरोसा नहीं करना चाहिए। क्योंकि आज जो भी हैं, जहा भी हैं, बाबा साहेब जी के संघर्ष से हैं और उनके आशीर्वाद से हमारे वर्ग ने जो संघर्ष किया है उससे हैं। मित्रों आज स्थिति ये है कि लोग हमारी ऊँचाइयों से डराने लगे हैं। "वो" लोग अब हमारी उन्नति से घबराने लगे हैं। ये हमारे लिए शुभ संकेत है। बस एक काम और मिलकर करना है कि अपने ही वर्ग के और कमजोर लोगों को अपने साथ ले के चलना है, हम उन्हें अकेले ऊँची जातियों के मानसिक जुल्म सहने के लिया नहीं छोड़ सकते।
बिना दलितों के सत्ता में आना मुश्किल
हम थोडा सा मजबूत हुए हैं। इसका नदाजा एक बात से ही लगया जा सकता है इ बी जे पी हो या कांग्रेस या कोई भी पार्टी अब बिना दलितों के वोट से सत्ता में नहीं आ सकती। दलित भाइयों अपनी शक्ति को पहचानो और अपने अधिकारों को जानो।
बस इसके लिए सबसे जरूरी है कि बाबा साहेब की बातों पर चलना होगा- १ शिक्षित बनो, २ संगढ़ित हो ३ संघर्ष करो।
समझो, जानो, पहचानो और आगे बढ़ाते चलो और निःशक्तों को साथ लेते चलो।
अभी संघर्ष बाकी है...

गुरुवार, मार्च 31, 2011

क्रिकेट हीरो याद हैं लेकिन कारगिल हीरो...

आज पूरे कोटद्वार में लोग भारत की जीत का जश्न मना रहे हैं। पाकिस्तान को हराकर अब भारत क्रिकेट वर्ल्ड कप के फ़ाइनल में आ चुका है। अपनी पोस्ट लिखते समय भी मैं बम, पटाखों और रोकिटों की आवाजे सुन रहा हूँ। लोग जश्न में डूबे हैं। 120 रूपये वाले रोकिट उडाये जा रहे हैं जो काफी ऊपर तक जाते हैं और फिर रंगों के बादल में बदल जाते हैं।
मेरे पडोसी 500 रूपये में ढोल वाले को बुलाकर ढोल बजवा रहे हैं। सब खुश हैं।

कमाल है इतना तो देश तब खुशियाँ नहीं मना रहा था भारत देश पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल युद्ध में 1999 में जीता था।
लोगों से पूछिए कि फ़ाइनल में पहुचने में भारत को जिताने वाले कौन से क्रिकेट हीरो हैं तो लोगों कि जुबाने कैची की तरह चलने लगेगी, " अरे युवराज है, सहवाग है, धोनी को क्यों भूल रहे हो, और सचिन की तो बात ही अलग है ..."

अब उनसे ये पूछा जाए कि अच्छा बताओ कि कारगिल में भारत को जिताने वाले कौन से हीरो हैं तो केंची की तरह जुबान चलाने वाले लोगों को साँप सूंघ जायेगा, अब शायद लोग सौरभ कालिया को भूल गये होंगे, देविंदर सिंह और संजय कुमार भी शायद याद नहीं होंगे...

शुक्र मनाओ भारतियों को कुछ तो याद है।

शनिवार, मार्च 26, 2011

टीम को जिताने घी जलाने का ढकोसला

गरीबों को इस देश में घी मिले न मिले, लेकिन क्रिकेट को जिताने का ढकोसला करने के लिए सेकड़ों किलो घी जरूर जला दिया जाता है।
चलो अच्छा ही है। यज्ञ में घी जलाकर देश को क्रिकेट वर्ल्ड कप के सेमी फ़ाइनल में तो पंहुचा दिया।
गरीबो को घी देने के लिए हो न हो, लेकिन जलाने के लिए घी लोगों के पास इतना है कि सशाला नदियाँ बहा सकते हैं।
खैर अभी तो वर्ल्ड कप का फ़ाइनल होना बाकी है। अब इस बार फिर वही कहानी दोहराई जाएगी...
गरीबों को घी नहीं बांटा जायेगा, बल्कि यज्ञ में जलाया जायेगा। क्यों, अरे भाई देश को वर्ल्ड कप जो दिलाना है। भारतीय टीम मैदान में खेलकर थोड़े ही जीतती है वो तो घी यज्ञ में जलाकर जीतती है....
अरे एक बात तो मैं कहना ही भूल गया, हम उस देश में रह रहे हैं, जिसे विश्व कि उच्च शक्तियों में गिना जान लगा है....

रविवार, मार्च 13, 2011

आखिर क्यों न हो शिक्षा का बंटाधार?


आज का अमर उजाला ( 13 मार्च 11, देहरादून संस्करण ) पढ़ा अलग-अलग पेजो पर शिक्षा से जुडी खबरे देखी।


पहले हंसी आयी फिर स्थिति पर दुःख हुआ..... इन फोटुओं को देखिये.... एक विज्ञापन पर लिखा है बी.एड 2009-10 में डाइरेक्ट प्रवेश। जबकि बी.एड 2009-10 का सत्र चल रहा है ( 1 साल लेट चल रहा है यानि 2010-11 ) और प्रशिक्षणार्थी सितम्बर में ही प्रवेश ले चुके हैं।

अब सोचिये कि सत्र खत्म होने को है, ऐसे में अगर किन्ही छात्रों को प्रवेश दिया भी जाता है तो किस प्रकार के ये शिक्षक बनकर तैयार होंगे, ये आप सोच ही सकते हैं।

एक अन्य खबर में लिखा है कि उच्च शिक्षा में योग्य शिक्षक ही नहीं मिल रहे हैं।

यही कारण हैं कि उच्च शिक्षा में योग्य शिक्षकों की कमी होने के कारण बी.एड छात्रों को बस जैसे तैसे डिग्री दे दी जाती है और वो स्कूलोँ में क्या पढ़ाते हैं ये ज्यादातर आप ख़बरों में आये दिन पढ़ते ही रहते होंगे। योग्य शिक्षक ही नहीं तो कैसी शिक्षा मिलेगी और बाद में वो कैसे शिक्षक बनेंगे?

शिक्षा से जुडी एक और लेकिन शर्मनाक खबर पढ़ी। छात्रा के यौन उत्पीडन के मामले में बंगलोर में एक शिक्षक को गिरफ्तार किया गया है। तो आल ओवर ये समझ जाना चाहिए कि आखिरकार हमारी भारतीय शिक्षा किस दिशा में जा रही है।
एक साल का बी.एड सिर्फ 2 महीने में। उच्च शिक्षा में योग्य टीचर नहीं मिल रहे और कुछ शिक्षक यौन उत्पीडन में गिरफ्तार हो रहे हैं......