सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

गुरुवार, मार्च 31, 2011

क्रिकेट हीरो याद हैं लेकिन कारगिल हीरो...

आज पूरे कोटद्वार में लोग भारत की जीत का जश्न मना रहे हैं। पाकिस्तान को हराकर अब भारत क्रिकेट वर्ल्ड कप के फ़ाइनल में आ चुका है। अपनी पोस्ट लिखते समय भी मैं बम, पटाखों और रोकिटों की आवाजे सुन रहा हूँ। लोग जश्न में डूबे हैं। 120 रूपये वाले रोकिट उडाये जा रहे हैं जो काफी ऊपर तक जाते हैं और फिर रंगों के बादल में बदल जाते हैं।
मेरे पडोसी 500 रूपये में ढोल वाले को बुलाकर ढोल बजवा रहे हैं। सब खुश हैं।

कमाल है इतना तो देश तब खुशियाँ नहीं मना रहा था भारत देश पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल युद्ध में 1999 में जीता था।
लोगों से पूछिए कि फ़ाइनल में पहुचने में भारत को जिताने वाले कौन से क्रिकेट हीरो हैं तो लोगों कि जुबाने कैची की तरह चलने लगेगी, " अरे युवराज है, सहवाग है, धोनी को क्यों भूल रहे हो, और सचिन की तो बात ही अलग है ..."

अब उनसे ये पूछा जाए कि अच्छा बताओ कि कारगिल में भारत को जिताने वाले कौन से हीरो हैं तो केंची की तरह जुबान चलाने वाले लोगों को साँप सूंघ जायेगा, अब शायद लोग सौरभ कालिया को भूल गये होंगे, देविंदर सिंह और संजय कुमार भी शायद याद नहीं होंगे...

शुक्र मनाओ भारतियों को कुछ तो याद है।

शनिवार, मार्च 26, 2011

टीम को जिताने घी जलाने का ढकोसला

गरीबों को इस देश में घी मिले न मिले, लेकिन क्रिकेट को जिताने का ढकोसला करने के लिए सेकड़ों किलो घी जरूर जला दिया जाता है।
चलो अच्छा ही है। यज्ञ में घी जलाकर देश को क्रिकेट वर्ल्ड कप के सेमी फ़ाइनल में तो पंहुचा दिया।
गरीबो को घी देने के लिए हो न हो, लेकिन जलाने के लिए घी लोगों के पास इतना है कि सशाला नदियाँ बहा सकते हैं।
खैर अभी तो वर्ल्ड कप का फ़ाइनल होना बाकी है। अब इस बार फिर वही कहानी दोहराई जाएगी...
गरीबों को घी नहीं बांटा जायेगा, बल्कि यज्ञ में जलाया जायेगा। क्यों, अरे भाई देश को वर्ल्ड कप जो दिलाना है। भारतीय टीम मैदान में खेलकर थोड़े ही जीतती है वो तो घी यज्ञ में जलाकर जीतती है....
अरे एक बात तो मैं कहना ही भूल गया, हम उस देश में रह रहे हैं, जिसे विश्व कि उच्च शक्तियों में गिना जान लगा है....

रविवार, मार्च 13, 2011

आखिर क्यों न हो शिक्षा का बंटाधार?


आज का अमर उजाला ( 13 मार्च 11, देहरादून संस्करण ) पढ़ा अलग-अलग पेजो पर शिक्षा से जुडी खबरे देखी।


पहले हंसी आयी फिर स्थिति पर दुःख हुआ..... इन फोटुओं को देखिये.... एक विज्ञापन पर लिखा है बी.एड 2009-10 में डाइरेक्ट प्रवेश। जबकि बी.एड 2009-10 का सत्र चल रहा है ( 1 साल लेट चल रहा है यानि 2010-11 ) और प्रशिक्षणार्थी सितम्बर में ही प्रवेश ले चुके हैं।

अब सोचिये कि सत्र खत्म होने को है, ऐसे में अगर किन्ही छात्रों को प्रवेश दिया भी जाता है तो किस प्रकार के ये शिक्षक बनकर तैयार होंगे, ये आप सोच ही सकते हैं।

एक अन्य खबर में लिखा है कि उच्च शिक्षा में योग्य शिक्षक ही नहीं मिल रहे हैं।

यही कारण हैं कि उच्च शिक्षा में योग्य शिक्षकों की कमी होने के कारण बी.एड छात्रों को बस जैसे तैसे डिग्री दे दी जाती है और वो स्कूलोँ में क्या पढ़ाते हैं ये ज्यादातर आप ख़बरों में आये दिन पढ़ते ही रहते होंगे। योग्य शिक्षक ही नहीं तो कैसी शिक्षा मिलेगी और बाद में वो कैसे शिक्षक बनेंगे?

शिक्षा से जुडी एक और लेकिन शर्मनाक खबर पढ़ी। छात्रा के यौन उत्पीडन के मामले में बंगलोर में एक शिक्षक को गिरफ्तार किया गया है। तो आल ओवर ये समझ जाना चाहिए कि आखिरकार हमारी भारतीय शिक्षा किस दिशा में जा रही है।
एक साल का बी.एड सिर्फ 2 महीने में। उच्च शिक्षा में योग्य टीचर नहीं मिल रहे और कुछ शिक्षक यौन उत्पीडन में गिरफ्तार हो रहे हैं......