सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

सोमवार, सितंबर 29, 2008

अब उनके कदम.....

कमाल की बात है जैसे ही बीजेपी ने विजय कुमार मल्होत्रा को मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया तो वे भी अपने दायित्वों के प्रति सचेत हो गए। अब देखिये न २७ सितम्बर को हुए दिल्ली बम ब्लास्ट में वे तुंरत घटना स्थल पर पहुंचे और सरकार पर खूब जम के बरसे..... जम के मतलब जम के। मल्होत्रा साब जल्दी से अपने उत्तरदायित्वों को समझ गए । नहीं तो ये वही नेता जी हैं जो पिछले दिल्ली बम ब्लास्ट में बिल्कुल चुप नजर आए थे। और जब प्रत्याशी बने तो ......
लेकिन मुख्यमंत्री प्रत्याशी होने के नाते उन्होंने वो टिप्पणियां नहीं की जो की सामान्य प्रत्याशी जोरो-शोर से करता है।
शायद उन्होंने सोचा की टिका-टिप्पणी करने से मेरे पाले के लोग ही न भड़क जाए ? और कहे -- क्या यार क्यों तुम नाक कटाने पर तुले हो। इन छोटी-मोटी वारदातों पर छीटाकशी कर रहे हो। ध्यान रहे । सरकार पर तब तक भूखे शेर की तरह नहीं टूटना चाहिए , जब तक की कोई बड़ा हादसा न हो जाए।

जैसे- जैसे ये हादसे बढते जा रहे हैं। वैसे -वैसे जनता से किए वादों की चट्टानों में दरार आती जा रही है और उनमे से निकलने वाली रक्त -ज्वाला जनता की मानसिकता पर धैर्य के उपले को सुलगाती जा रही है।
अब वक्त आ चुका है। अब तीसरा कदम उठेगा। जनता का। उनके ख़ुद के लिए। ताकि वो जी सके और पूरा कर सकें उन अरमानों को जिसके लिए वे आज संघर्षरत हैं।

शुक्रवार, सितंबर 26, 2008

इंडियन मुजाहिद्दीन - ढांचा

ये ग्रुप कोई छोटा मोटा नही बल्कि इस ग्रुप में १२ लीडर हैं। इसमे से केवल तौकीर के बारे में पता है.बाकि परदे के पीछे से काम करते हैं। कुछ ये बताते हैं की ये आई एस आई के इशारों पर काम करती है। ये ग्रुप ओसामा बिन लादेन और मुल्ला उमर के इस्लाम के जेहादी स्वरुप में ही विश्वाश रखते हैं।
ग्रुप मैनेजमेंट-
इनका सबसे बड़ा ग्रुप है कॉल ऑफ़ इस्लाम । इस ग्रुप के सदस्यों की संख्या ६०००० से भी अधिक है। ये लोग करीब ३५ साल की उम्र के हैं। ये ज्यादातर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल और महाराष्ट्र में मोजूद है। फेले तो ये पूरे देश में हैं। इनमे से अनेक मोलवी, शिक्षक, पेशेवर और शिक्षशाश्त्री हैं, जो उपरी तौर पर कानून का पालन तो करते हैं। लेकिन आदेश अपने ईस्ट का ही मानते हैं जो शीर्ष लीडर हैं।
इसके बाद नीचे का ग्रुओप है - इख्वान मतलब भाई । इसके सदस्य ६००० कोर सदस्य हैं। स्पेशल काम के लिए होते हैं, काम होने के बाद अपनी दोहरी पहचान के साथ अकेले छोड़ दिए जाते हैं।
तीसरा ग्रुप है- अंसार अर्थात सहायक । ये ५५० सदस्यों का ग्रुप है। ये अंशारी समुदाय ही अहमदाबाद और जयपुर धमाको के आरोपी हैं.ये धमाको के लिए न केवल बम्ब बनाते हैं बल्कि समान भी समान भी खरीदते हैं।
अगला ग्रुप है- सफ़ेद बाज "द व्हाइट फाल्कन।" इनका काम ५ से १० साल के बच्चों को जोड़ना है और उन्हें जेहादी विचारों की दीक्षा देना है।
अन्तिम तौर पर जो ग्रुप है- मुस्लिम ब्रदरहुड । इस ग्रुप का मुख्य कार्य विभिन्न तरीकों से फंड और पैसा जुटाना है। ये जेहादी संगठनो के संपर्क में रहते हैं। इसमे कम से कम १०,००,००० लोग जुटे हैं।
अगर माने तो इनका संगधन सरकारी तंत्र से भी ज्यादा मजबूत हैं।

इसके लिए हम सभी को उठाना होगा तीसरा कदम..............

गुरुवार, सितंबर 25, 2008

बात बीस धमाको की थी


बीस सितम्बर को आतंकवादी बीस धमाके करने की फिराक में थे। आखिर नेहरू प्लेस भीड़-भाड़ वाली जगह है, यहाँ पैर वे लोग ब्लास्ट करके पूरी दिल्ली में दहशत फेलाना चाहते थे। लेकिन शुक्रवार को पुलिस मुठभेड़ में दो आतंकी मारे गए और दो गिरफ्तार कर लिया गया । इससे उनके मनसूबे नाकाम हो गए। एस मुठभेड़ में जांबाज पुलिस अफसर श्री मोहन चद्र शर्मा शहीद हो गए।
आतंकी जानते थे की नहरू प्लेस भीड़ भाड़ वाला इलाका है। खासकर शाम को काम से लौटते हैं। ऐसे में बीस ब्लास्ट करते तो ज्यादा से ज्यादा जान-माल की हानि होती। यहाँ १०० इमारतें हैं देशी-विदेशी कम्पनियों का कारोबार भी जोरों से चलता है। यहाँ कम से कम दो लाख लोग रोज आते-जाते हैं।
जो हुआ वो सराहनिए तो है ही।
मजा तो अब आयेगा ........
दिल्ली पुलिस ने तीनो आतंकियों अब्दुल रहमान के बेटे जिया-उल-रहमान और उसके साथी साकिब निसार व मोहम्मद शकील को रिमांड पर ले लिया है। अब सामर उनकी भी आएगी जो इन आतंकियों के सम्पर्की रहे। पुलिस किसी को छोड़ेगी नहीं।

जवान तो मर ही रहे हैं?

जम्मू और कश्मीर के पास एल ओ सी पैर सोमवार को एक मुठभेड़ में भारतीय सेना के २ जवान शहीद हो गए। दोसरी तरफ़ पता लगा की नागालेंड में एक असम रेजिमेंट का सिपाही मर दिया गया, जिसमे ४ आतंकी भी मरे गए।
जो भी एक तरफ़ खुसी है तो उससे ज्यादा दुःख की बार है की हमारे जांबाज सिपाही शहीद हो गए। असल में इस तरफ़ किसी का भी ध्यान नही जा पता कि आखिर किसी भी मुठभेड़ में सरकार को कितनी हनी उठानी पड़ती है। बस इस बात कि खुसी जाहिर कर दी जाती है कि जवानों ने अच्छा कारनामा कर दिखाया। लेकिन उसके घर में मातम होता है जिसके घर से वो बेटा हमेशा के लिए चला जाता है, जो कि उस मुठभेड़ में शहीद हो गया.

मंगलवार, सितंबर 23, 2008

रोज गंगा पूजा, चढावे में गंदगी





ऋषिकेश। जब हम धर्म की बात करते हैं तो उसे समाज से जोड़कर चलते हैं लेकिन जब धरम को समाज से जोड़ा जाता है तो यह ध्यान रखा जाता है समाज से जोड़ते समय धर्म की परिभाषा की अवहेलना न हो। धर्म क्या है? धर्म वो है जो हमे नेतिकता में बांधता है , हमें संस्कार प्रदान करता है, हमारे कर्म की सीमा निर्धारित करता है ताकि हम ग़लत रस्ते पर न जाए। परन्तु जब इस धर्म पर खुला प्रहार हो तो ?
इसी विषय से सम्बंधित एक प्रकरण हमारे सामने है। देहरादून जिले के एक प्रमुख शहर ऋषिकेश में त्रिवेणी नामक एक घाट है। "पवित्र" घाट। हर शाम को यहाँ गंगा समिति के पंडितों द्वारा गंगा मैया की पूजा की जाती है। यह आस्था है, धर्म का एक रूप है। परन्तु कमल की बात देखिये उसी घाट पर पूरे ऋषिकेश का मल-मूत्र नाले के माध्यम से इन्ही 'गंगा' मैया में विषर्जित कर दिया जरा है। ये कैसा धर्म या कैसे आस्था है, की एक तरफ गंगा की घी के दीयों , फूल-मालाओं, अगरबत्तियों से पूजा की जाए , प्रसाद के रूप में गंगा जल पी लिया जाए और दूसरी तरफ उसी गंगा में अपना मल-मूत्र या शारीरिक गंदगी छोड़ दी जाए।
जब कोई "समझदार" व्यक्ति गंगा में पैसे फैकता है तो उसे कोई नही टोकता, जबकि यह राष्ट्रीय हनी है जिसे प्रत्येक अर्थशास्त्री भी स्वीकार करते हैं। अगर पानी में फैकने की बजाये राष्ट्रीय हित में एक-एक रुपया दिया जाने लगे तो भी सरकार के पास करोडो रूपये पहुच सकते हैं क्योंकि आज भी लगभग ७० % जनसँख्या धार्मिक आस्था से जुड़ी है। जुस्से सरकार भी वही पैसा अधिकतम सामाजिक लाभ में व्यय कर सकने में समर्थ हो सकती है। परन्तु यदि वही गंगा मैं गिरा पैसे कोई गरीब बीनने (उठाने) लगे तो धर्म के ठेकेदार उसे मारते हैं, पीटते हैं और घाट से फिकवा देते हैं। अगर वो गरीब भिखारी उस को ले ले और पेट भर ले तो शायद गंगा मैया नाराज न होकर खुश ही होंगी की उनके आशीर्वाद से एक और गरीब का पैर भर गया। बात त्रिवेणी घाट की हो रही थी। वही त्रिवेणी घाट हहाँ शाम के समय होता है एक तरफ गंगा मैया की पूजा, दूसरी तरफ गंगा मैया को दिया जाने वाला ऋषिकेश का गंद और तीसरी तरफ घाट में ही फलता-फूलता लड़के- लड़कियों का "चक्कर"। घाट का माहौल देखा जाए तो मुझे कहीं आस्था नजर नही आती। अब देखिये न, घाट के दोनों छोर को छोड़कर शौचालय बीच में बनाया। वो भी माता मन्दिर के बिल्कुल बगल में। जब वहां के आस्तिकों के इस संदर्भ में पूंछा गया तो उनका एक ही सामान्य जवाब मिला, "बल यु सौचालय मंदिरे का बग्ल्या नी होंद छेंदु , यु हमारी आस्था पैर वार छ "। शायद ये धर्म का नया ट्रेंड हो जहाँ लड़के-लडकियां इश्क मट्टका करे , गंगा मैया की पूजा भी हो और उसी गंगा में बहाया जाए शहर का मल-मूत्र।
मैं मानता हूँ की कोई और नदी ऋषिकेश के पास नही जिसमे यह नाला बहाया जा सके परन्तु , जब करोडो रूपये सरकार विकास के लिए व्यय कर सकती है, तो सरकार गंगा की पवित्रता व गरिमा बरकरार रखने के लिए भी खर्च कर सकती है। यदि ऐसा नहीं हो सकता तो घाट में गंगा पूजा के नाम पैर हो रहे देखावे को बंद कर देना चाहिए। में अंधविश्वास को नही फैलाना चाहता, बस परम्परा की बात करता हूँ । ताकि हमारा एक रास्ता हो और उस रस्ते पर चलकर विकास की उत्कृष्टता को छू सके।

सोमवार, सितंबर 22, 2008

शीर्षक के बारे में

मेरा मानना है कि सरकार समाज के लिए पहला कदम उठाती है और प्रसाशन दूसरा । लेकिन जो हम समाज के साधारण से लोग इनसे जो आशा रखते हैं उस पर ये खरे नही उतर पाते ........... बस तब मैंने यह सोचा क्यों न अब हम इन्हें जगाने के लिए तीसरा कदम उठायें ..............इन्हें याद दिलाएं की हमे खुशी चाहिए , हमे चाहिए सुख शान्ति और वो.... जो देखा है ख्वाबो में ......................

तीसरा कदम

लो आज से मैं भी आ गया उस ज़ंग में जिस ज़ंग ने संभाला हुआ है समाज की उस डोर को जो देती है ख़बर , विचार , मनोरंजन , सोच और वो चिंतन जो समाज को बाँधता है उसे उसकी सुरक्षा के लिए , ताकि वो समझ सके अपनेआप को , जाने नेतिकता को परम्परा को। जिसमे पाठक मेरे साथ है और मैं हूँ पाठक के लिए समर्पित ।
मैं कोशिश कारूंगा की आपकी चाहतों पर खरा उतर सकू ।
आपकी ही तरह कुछ सोचने वाला ....
आपकी तरह कुछ करने की सोच रखने वाला .....
आपकी ही तरह तत्पर उस समाज के लिए जिसने दिया मुझे ये विस्वाश की कुछ करू .....
बृजेन्द्र कुमार वर्मा

तीसरा कदम