सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

शनिवार, नवंबर 13, 2021

मेरी गुड़िया को निन्नी लगी है (लोरी)

मेरी गुड़िया को निन्नी लगी है.

बड़ी जोर की निन्नी लगी है, 

मेरी गुड़िया सोएंगी 

निन्नी में खो जाएंगी 


परियां रानी आएंगी  

निन्नी में ले जाएंगी 


खेल-खिलौने लाएंगी

तुमको खूब हंसाएंगी 


मेरी गुड़िया को निन्नी लगी है

बड़ी जोर की निन्नी लगी है.


शुक्रवार, अक्तूबर 22, 2021

वक्त ने

वो जो रात में बातें करके अपना जताते हैं हमको, वही दिन भर पराया बताते हैं हमको।

बिना पूछे जिन्होंने सही ठहराया दिया खुद को
न चाहकर भी उन्होंने सवाली बना दिया हमको।

किस किस तरह से व्याख्या कर देते हो खुद को सिद्ध करने की
इसके लिए थोड़ा मेथ्डोलॉजी भी बता दिया करो हमको

तुम्हें क्या लगा, किस्मत के मोहताज हो गए हम,
अरे इसी वक्त ने तो फौलाद बना दिया हमको।

शनिवार, अक्तूबर 09, 2021

किसके कांशीराम ?

आज हर बहुजन संबधी राजनीतिक पार्टियाँ मान्यवर कांशीराम जी को अपने पार्टी का घोषित करने में लगी हुयीं हैं. हाँ ये अलग बात है, कि कोई भी उनके जैसा काम करने को राज़ी नहीं है. सब अपने मतलब और सत्ता के लालच में हैं. कांशीराम अब नाम नहीं रहा, बल्कि ये एक ब्रांड बन चुका है. जिसके कांशीराम, उसकी जनता, उसकी सत्ता. 

तमाम पार्टियों ने जिस तरह से कांशीराम को अपनी पार्टी का पेटेंट करने की कोशिश की है, उस तरह से उनके नक़्शे कदम पर चलने की कोशिश नहीं की. कांशीराम को सिर्फ वही पार्टी अपनी और आकर्षित कर सकेगी, जो उनके नक़्शे कदम पर चलने की ताकत रखती हो और बहुजनों को एक सूत्र में पिरोने की कोशिश कर रही हो. अन्यथा कांशीराम जी कि जन्मदिवस और परिनिर्वाण दिवस मनाना मात्र दिखावा रह जाएगा और ये ज्यादा दिन तक नहीं चल सकेगा, बहुजन जनता बहुत जल्द समझ जाएगी. 

बहुजनों अर्थात SC/ST/OBC में हजारों वर्षों से एक कमी है, जिसे बाबा साहेब, कांशीराम जैसे योद्धाओं ने भी दूर नहीं कर पाया, वो है, एकता न होना. 

यदि सामान्य वर्ग पर ध्यान दें, तो इनमें जबरदस्त एकता पायी जाती है. ये आपको सुबह लड़ते हुए दिख भी जाएँ तो शाम तब होती है जब एक थाली में खाना खाते हैं. दूसरी और बहुजनों की स्थिति है, जहाँ हमेशा से यही कोशिश रही है कि बहुजन एक हों, लेकिन एक नहीं हो पाते.

सबसे ज्यादा आपसी टिप्पणियाँ बहुजनों में ही है- 

कांशीराम जी ने बामसेफ बनाया, और बहुजन समाज पार्टी भी उन्होंने ही बनाई. लेकिन आज उनके बाद स्थिति ये है. कि बामसेफ और बहुजन समाज पार्टी की विचारधारा अलग हो चुकी है. दोनों संस्थान एक दूसरे पर टिप्पणियां करते रहते हैं. इन दोनों के अलावा भी अन्य पार्टियों का भी आपसी मतभेद है. 

राजनितिक पार्टियों के अलावा सामाजिक चिंतकों में भी आपसी मतभेद यहाँ तक कि आपसी खटास भी है. जबकि काम बहुजन केन्द्रित ही कर रहे हैं. लेकिन सब अपने को अम्बेडकर विचारक और सामने वाले को दिखावटी घोषित करने में लगे हैं. 

बहुजन के नाम से 4 प्रमुख पार्टियाँ और सभी एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं - 

बहुजन समाज पार्टी कहती है, चंद्रशेखर की आज़ाद समाज पार्टी RSS से प्रभावित है, चन्द्र शेखर रावण बसपा पर आरोप लगाते हैं. एक पार्टी और है "कांशीराम बहुजन मूलनिवासी पार्टी", ये भी बसपा पर आरोप लगाते हैं. एक पार्टी और है, बी०एम०पी० अर्थात बहुजन मुक्ति पार्टी, जो अपने को बहुजन समर्पित कहती है और ये भी अन्य पार्टियों पर सवाल उठाते हैं. हर पार्टी जोर शोर से बहुजनों को आकर्षित करने में लगे हैं. आखिर बहुजन जाए तो जाए कहाँ ?

पार्टी का विलय, लेकिन किसका ?

हर पार्टी की कोशिश है, कि बहुजनों की सरकार बने, लेकिन ये तभी होगा जब कोई एक प्रमुख पार्टी हो. ऐसा तब होगा जब सभी पार्टियों का विलय हो जाए और कोई एक पार्टी प्रमुखता से सामने आये. 

लेकिन फिर के सवाल है, कि किस पार्टी का विलय किस में हो? हर बहुजन पार्टी अपने को अच्छा साबित करने में लगी है और दूसरे की पार्टी को खराब. 

एक कारण और है, यदि एक पार्टी दूसरी पार्टी में विलय कर दे, तो स्वत दूसरी पार्टी बड़ी हो जायेगी, और जिसका विलय हुआ है उनके पदाधिकारी जिसमें विलय हुआ है उस पार्टी के पदाधिकारियों से स्वतः छोटे हो जायेंगें. जो कोई भी नहीं चाहेगा. 

9 अक्टूबर को सभी पार्टियाँ मना रही हैं कांशीराम जी का परिनिर्वाण दिवस - 

लखनऊ में BSP, BMP, BKMP कांशीराम जी का परिनिर्वाण दिवस मना रही हैं, हो सकता है एक दूसरे पर सवाल भी उठाएं. लेकिन इससे सरकार नहीं बन सकती. इसके लिए एक होना पड़ेगा. 

क्या अभी बहुजन सरकार बनने में लगेगा समय ? -

जिस तरह से बहुजन पार्टियों ने अपने अपने में बहुजनों को आकर्षित करने की होड़ शुरू की है. और कांशीराम जी को पेटेंट करने की कोशिश है इससे बहुजन में भी आपसी रंजिश शुरू हो सकती है. इससे सीधा सीध लाभी गैर बहुजन पार्टियाँ उठाएंगी. लेकिन सभी बहुजन पार्टियाँ एक हो जाएँ तो बहुत जल्द बहुजन सरकार बन सकती है. लेकिन इसके लिए सभी पार्टियों को एक मंच पर आकर खुली चर्चा करनी होगी. और एक पार्टी तय करनी होगी.  


रविवार, सितंबर 05, 2021

बुधवार, अगस्त 18, 2021

पहले ऑटो रिक्शा, अब घर

 भारत में नवाचार प्रसरण को पढ़ाया तो जाता है लेकिन बच्चों को ऐसा करने के लिए संलग्न नहीं किया जाता. सिर्फ पढ़ना और उस पढाई में संलग्न होने में फर्क है.

भारत में नवाचार हमेशा से विशेष रहा है. "जुगाड़" नाम से भारत में हमेशा से कुछ न कुछ नया होता ही रहता है.
एक उदाहरण और प्रस्तुत है, जिसमें के व्यक्ति ने अपने ऑटो रिक्शा को मोबाइल घर में तब्दील कर दिया.
फोटो दिए लिंक से ली गयी है. 



पूरी जानकारी इस लिंक पर है. - https://www.rushlane.com/bajaj-tuk-tuk-auto-rickshaw-modified-into-a-house-desi-rv-12346801.html

रविवार, अगस्त 15, 2021

आज़ादी

बहुत जरूरी है कि लोग पहले आज़ादी को समझें, उस संघर्ष को समझें, जो 1947 से पहले पूर्वजों ने झेला है, सहन किया है.

उस मार को, उस भय को, उस दंड को समझें, जो उन्हें बेवजह दिया गया, 

उन्हीं के देश में.

इसके बाद ये समझें कि आजादी मिली कैसे. 

आज़ादी मनाना और आज़ादी समझना, दोनों में फर्क है. यदि आपने आज़ादी को ठीक से समझा तो आप आज़ादी का जश्न भी हर्ष और उल्लास से मनाते हैं और आज़ादी का लाभ भी ले पाते हैं. 

पूर्वजों को मिली बेवजह मार की समाप्ति है आज़ादी 

पूर्वजों  को दिया गया दण्ड की समाप्ति है आज़ादी 

हर आँख से निकले आंसू की कीमत है आज़ादी 

अपनी मर्जी से फसल उगाने का अधिकार है आज़ादी

एक जगह से दूसरी जगह जाने की अनुमति है आज़ादी 

सर उठाकर प्रश्न करने का अधिकार है आज़ादी 

कलम उठाकर कोरे कागज पर शब्द उकेरना है आज़ादी 

सच तो ये है 

आज़ादी को समझना ही है आज़ादी.




रविवार, अगस्त 01, 2021

पापा की परी का मजाक कब तक ?

 "पापा की परी" से आजकल बहुत से मजाकिया वीडियो बनाये जा रहे हैं, लेकिन इन चिढ़चिढ़े लोगों को ये नहीं पता,

तुम माँ के लाडलों को 1982 की तकनीकी निर्णयों और 1993 के वैश्वीकरण के बाद सस्ती हुयी तकनीकी से मोटरसाइकिल मिल गयी वो भी 30-40 साल पहले, और उस समय इन पापा की परियों को दरवाजे में बंद रखा जाता था, पढ़ने के लिए भी इन परियों को संघर्ष करना पड़ा और आज भी करना पड़ रहा है.

यदि तुम लाडलों के साथ इन परियों को भी सस्ती हो रही तकनीकी का लाभ मिलता तो शायद तुम्हारी औकात इस तरह के मजाकिया वीडियो बनाने की न होती.

ये वैसा ही है जैसे दलितों के पढ़ने से कुछ लोगों को बुरा लगता है, तो वे भी ऐसे ही इनका मजाक बनाकर खिल्ली उड़ाते फिरते हैं, लेकिन कमाल ये है, कि दलित भी लगातार आगे बढ़ रहे हैं, और लड़कियां भी. और मजाक बनाने वाले सिर्फ मजाक ही बनाते रह जाते हैं. और जब इनकी नौकरी नहीं लगती तो महिलाओं को मिले आरक्षण को, और अन्य आरक्षण पर सवाल उठाने लगते हैं.

खैर, भारत की कंपनी TVS को धन्यवाद् जिसने भारत में सबसे पहले 1996-97 में स्कूटी शुरू की, और जिसने ये सन्देश देशभर को दे दिया, अब इनकी भी बारी है.

एक बात और उन शहजादों को जो परियों पर मजाकिया वीडियो बनाते हैं, जरा youtube पर उन वीडियो को भी देख लेना, जिसमें लड़कियां बुलेट चलाती हैं, तुम्हारा "परी" वाला भ्रम दूर हो जायेगा.

चिंता मत करो, अभी तो सिर्फ 20-25 साल ही हुए हैं इन्हें स्कूटर मिले, 20-25 साल और गुजरने दो, फिर न वीडियो बना पाओगे और न ही मजाक.

अरे सुनो एक और झटका खाने के लिए तैयार हो जाओ, Royal Enfield बहुत जल्द महिलाओं के लिए हल्के वजन की बुलेट मोटरसाइकिल ला रही है, जिसके बाद परियों की भारी संख्या सड़कों पर बुलेट चलाती मिलेगी.

लड़कियों तुम चुप रहना,
जवाब तुम्हारा हुनर देगा.

रविवार, मई 09, 2021

कोरोना की तीसरी लहर कैसे, तर्क तो देना पड़ेगा ?

समाचार चैनलों पर तीसरी लहर पर बहस शुरू हो गयी है.

पहली लहर - बुजुर्ग प्रभावित
दूसरी लहर - जवान प्रभावित
तीसरी लहर - ???
बुजुर्ग, जवान फिर ------- ये सवाल यदि किसी भी पढ़े लिखे या अनपढ़ किसी से भी करो तो जवाब "बच्चे" ही आएगा.
स्वास्थ्य एवं अन्य जानकार भी उत्तर "बच्चे" ही दे रहे हैं... लेकिन किस तर्क पर?
स्वास्थ्य अधिकारियों को जनता को वायरस के प्रभाव के तर्कों के आधार पर जागरूक करना चाहिए ताकि वे समझ सकें, वो भी आसान शब्दों में.
माननीय न्यायलय भी प्रश्न पूछ सकते हैं कि किस आधार पर "बच्चे" उत्तर दिया जा रहा है, इससे सटीक जानकारी मिलने सम्भावना होगी.
माना कोरोना ताकतवर हो रहा है, तो भी वो घर में कैसे आएगा???
जो लोग बाहर जाकर घर में कोरोना ला रहे थे, उससे तो बच्चे पहली लहर में भी प्रभावित हो रहे थे. तो तीसरी लहर में विशेष क्या होगा ये जानना माता-पिताओं के लिए जरूरी होगा.
और दूसरी बात जो बच्चे पहले से ही घर में हैं, जो बाहर न स्कूल जा रहे हैं, न नौकरी करने, न बिज़नस करने, न कोई जिम्मेदारी का निर्वहन तो फिर कोरोना कैसे प्रभावित करेगा???
यदि ये पता चले तो परिवार पहले ही कुछ न कुछ बचाव के निर्णय ले सकेंगे.