सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

बुधवार, अगस्त 18, 2021

पहले ऑटो रिक्शा, अब घर

 भारत में नवाचार प्रसरण को पढ़ाया तो जाता है लेकिन बच्चों को ऐसा करने के लिए संलग्न नहीं किया जाता. सिर्फ पढ़ना और उस पढाई में संलग्न होने में फर्क है.

भारत में नवाचार हमेशा से विशेष रहा है. "जुगाड़" नाम से भारत में हमेशा से कुछ न कुछ नया होता ही रहता है.
एक उदाहरण और प्रस्तुत है, जिसमें के व्यक्ति ने अपने ऑटो रिक्शा को मोबाइल घर में तब्दील कर दिया.
फोटो दिए लिंक से ली गयी है. 



पूरी जानकारी इस लिंक पर है. - https://www.rushlane.com/bajaj-tuk-tuk-auto-rickshaw-modified-into-a-house-desi-rv-12346801.html

रविवार, अगस्त 15, 2021

आज़ादी

बहुत जरूरी है कि लोग पहले आज़ादी को समझें, उस संघर्ष को समझें, जो 1947 से पहले पूर्वजों ने झेला है, सहन किया है.

उस मार को, उस भय को, उस दंड को समझें, जो उन्हें बेवजह दिया गया, 

उन्हीं के देश में.

इसके बाद ये समझें कि आजादी मिली कैसे. 

आज़ादी मनाना और आज़ादी समझना, दोनों में फर्क है. यदि आपने आज़ादी को ठीक से समझा तो आप आज़ादी का जश्न भी हर्ष और उल्लास से मनाते हैं और आज़ादी का लाभ भी ले पाते हैं. 

पूर्वजों को मिली बेवजह मार की समाप्ति है आज़ादी 

पूर्वजों  को दिया गया दण्ड की समाप्ति है आज़ादी 

हर आँख से निकले आंसू की कीमत है आज़ादी 

अपनी मर्जी से फसल उगाने का अधिकार है आज़ादी

एक जगह से दूसरी जगह जाने की अनुमति है आज़ादी 

सर उठाकर प्रश्न करने का अधिकार है आज़ादी 

कलम उठाकर कोरे कागज पर शब्द उकेरना है आज़ादी 

सच तो ये है 

आज़ादी को समझना ही है आज़ादी.




रविवार, अगस्त 01, 2021

पापा की परी का मजाक कब तक ?

 "पापा की परी" से आजकल बहुत से मजाकिया वीडियो बनाये जा रहे हैं, लेकिन इन चिढ़चिढ़े लोगों को ये नहीं पता,

तुम माँ के लाडलों को 1982 की तकनीकी निर्णयों और 1993 के वैश्वीकरण के बाद सस्ती हुयी तकनीकी से मोटरसाइकिल मिल गयी वो भी 30-40 साल पहले, और उस समय इन पापा की परियों को दरवाजे में बंद रखा जाता था, पढ़ने के लिए भी इन परियों को संघर्ष करना पड़ा और आज भी करना पड़ रहा है.

यदि तुम लाडलों के साथ इन परियों को भी सस्ती हो रही तकनीकी का लाभ मिलता तो शायद तुम्हारी औकात इस तरह के मजाकिया वीडियो बनाने की न होती.

ये वैसा ही है जैसे दलितों के पढ़ने से कुछ लोगों को बुरा लगता है, तो वे भी ऐसे ही इनका मजाक बनाकर खिल्ली उड़ाते फिरते हैं, लेकिन कमाल ये है, कि दलित भी लगातार आगे बढ़ रहे हैं, और लड़कियां भी. और मजाक बनाने वाले सिर्फ मजाक ही बनाते रह जाते हैं. और जब इनकी नौकरी नहीं लगती तो महिलाओं को मिले आरक्षण को, और अन्य आरक्षण पर सवाल उठाने लगते हैं.

खैर, भारत की कंपनी TVS को धन्यवाद् जिसने भारत में सबसे पहले 1996-97 में स्कूटी शुरू की, और जिसने ये सन्देश देशभर को दे दिया, अब इनकी भी बारी है.

एक बात और उन शहजादों को जो परियों पर मजाकिया वीडियो बनाते हैं, जरा youtube पर उन वीडियो को भी देख लेना, जिसमें लड़कियां बुलेट चलाती हैं, तुम्हारा "परी" वाला भ्रम दूर हो जायेगा.

चिंता मत करो, अभी तो सिर्फ 20-25 साल ही हुए हैं इन्हें स्कूटर मिले, 20-25 साल और गुजरने दो, फिर न वीडियो बना पाओगे और न ही मजाक.

अरे सुनो एक और झटका खाने के लिए तैयार हो जाओ, Royal Enfield बहुत जल्द महिलाओं के लिए हल्के वजन की बुलेट मोटरसाइकिल ला रही है, जिसके बाद परियों की भारी संख्या सड़कों पर बुलेट चलाती मिलेगी.

लड़कियों तुम चुप रहना,
जवाब तुम्हारा हुनर देगा.