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रविवार, अगस्त 12, 2012

Media between rural and urban areas

Nasa’s robotic spacecraft Curiosity successfully landed on Mars. Anna Hazare disbanded his team. India won Olympic medals in London. But, what about rural areas? Equitable way the media has been working in rural areas? Do media cover rural news sufficiently? Is it enough to cover the rural news from the media?

            When a rural development journalist send news of rural area then he earns two thousand to six thousand only per month, but when a business or economic journalist make news, he earns fifteen to eighty and more thousand per month. Why? Either only for gives profit to businessmen or to make profit for his own media company. I am not understand, why do national or state media try to avoid the rural coverage? 

            If we analysis the print and electronic media, we can easily find that rural media’s market is big than urban market. Instead of media’s urban and metropolitan market is more powerful and rich from rural market.

                Why we forget that when newspaper brands or news channels want to increase their circulation or T.R.P., they go to villages. Why we forget that whenever a photo journalist has awarded for his/her photograph, it belonged to rural sector. Why we forget that rural journalist awarded Magsaysay prize for rural developmental news as palagummi sainath. Why we forget that when entertainment channels want a high T.R.P., they start a religious story i.e. Mahabharat, Sri Krishana, Jai Hanuman and other. We have recently example of "Life Ok", this channel started Mahadev, a hindu religious story at prime time, only for its fame and obviously for T.R.P also.
Courtesy- internet

            I think there are some reasons that why print and electronic media do not gives priority to rural areas. We know that in our country there is a little figure of literacy. Only in Uttar Pradesh, Rajasthan and Bihar there is average 66.86 percentage literacy including men and women. And there is only 55.16 percentage literacy in women in these states. As per census (2001) 54.16 percentage women were literate in all India.

            Because illiteracy outspread in villages, thus print media avoid themselves to make market in rural areas. Because business planner and marketers know that this is a risky task. On the other hand electronic media also neglect to rural areas for same reason.

            I am surprised, that private radio FM media also target only to urban and metropolitan audience. In spite of radio FM is an audio medium and the Illiterate can also take advantage, but “they” are neither interested to entertain nor provide knowledge to villagers.

            Specially, here I thanks to official radio media, because it is affected to rural audience, and also participating in rural development and entertaining to villagers. Which official radio doing for rural India, other media cannot do.

            If we notice some facts we come to know that any media (either print or electronic) can earn fame with some important steps. Let’s check how. When a child falls down in hollow, media just cover that story only to show that how much they are fast than other media and are worried for him/her. Many news channels cover that type of stories 24hrs not for to save that child, but also to get a high T.R.P. because of Indian emotion they can do so easily. Actually on these types of issues especially electronic media play with Indian’s emotions.

            So, this is the point that there are many issues in rural area where journalists can busy themselves to cover them i.e. electricity, water supply, agriculture, education, religion, casteism, child and women health, diseases, migrating, Panchayati orders, politics, business, rationing, banking loans, suicides, poverty, hunger, over flood and other natural disasters, and many more. But only for business and for earning money media go to rural coverage, otherwise they never go there even for wander.

            Govt. and press commission should make policy for (press and electronic) media for coverage of rural areas. There is need of reservation in media for news of rural areas. I think at least twenty percent space should given by both. Print media to give space in newspaper and electronic media to give space in news bulletin. And when that type of step will be taken by the govt. or press commission, only then media will knock the door of “Ram Bharose”

मंगलवार, अगस्त 07, 2012

अन्ना हजारे और प्रोपगंडा

देश में भ्रष्टाचार है. देश के कई नेता भ्रष्ट हैं. देश का भ्रष्टाचार खत्म करना है, लोकपाल बिल पास कराना है. ये टीम अन्ना द्वारा देश की जनता पर किया जाने वाला प्रोपगंडा है. हालांकि प्रोपगंडा को पत्रकारिता में नकारात्मक तौर पर लिया जाता है. लेकिन ऐसा नहीं है.
वास्तव में प्रोपगंडा व्यापक अर्थ में प्रतिनिधि या प्रोपगेंडिस्ट के प्रयोग द्वारा मानवीय क्रियाओं को प्रभावित करना है.
टीम अन्ना भी देश की जनता पर यही कर रही है. यहाँ पर एक बात गौर करने वाली अजब-गजब बात है कि प्रोपगंडा के लगभग सभी सिद्धांतों और विधियों का प्रयोग टीम अन्ना कर रही है.
अगर आपको प्रोपगंडा का बाते में अध्ययन करने को पर्याप्त सामग्री नहीं मिल पा रही है तो आप टीम अन्ना के क्रिया कलापों, उनके भाषणों और उनके माध्यम से जनता को दिए जाने वाले संदेशों पर गौर कर लें.

 प्रोपगंडा हमेशा लाभ के लिए ही नहीं, बल्कि सामाजिक विचारों में परिवर्तन लाने के लिए भी किया जाता है. टीम अन्ना हर बार भ्रष्टाचार हटाओ, भ्रष्टाचार हटाओ कहती रहती है, यह पुनरावर्तन सिद्धांत है. पुनरावर्तन सिद्धांत क्या है, किसी तथ्य के सम्बन्ध में बार-बार प्रोपगंडा करने पर लोग उसे मान लेते हैं. हिटलर ने कहा था. "यदि किसी झूठ को बार-बार पुनरावर्तित किया जाए तो वह भी सत्य मान लिया जाता है."

हालंकि टीम अन्ना कोई झूठ नहीं बोल रही, लेकिन सिद्धांत यही अपना रही है. इसीलिए आज लोगों ने या स्वीकार कर लिया है कि देश में भ्रष्टाचार है और उसे हटाना है. अब चाहे लोग आंदोलन में शामिल हों या शामिल न हो लेकिन उन्होंने ये स्वीकार कर लिया है कि भ्रष्टाचार खत्म करना है और लोकपाल बिल लाना है.
अगर विधियों की बात करें तो प्रोपगंडा की लगभग सभी विधियों का प्रयोग टीम अन्ना करती है. इसमे- नामकरण विधि, प्रमाण-पत्र विधि, लोकरीति विधि, एकांगी विचार विधि, विश्व जनीन भ्रम विधि, संवेग उत्तेजन विधि और आकर्षक सामान्य विधि आदि शामिल हैं.
बहरहाल टीम अन्ना ने इन विधियों को काफी सोच समझकर प्रयोग किया है. इसीलिए समय समय पर इसका फीडबेक भी मिलता रहा है. कुछ और भी चर्चा करते हैं.

नामकरण विधि में प्रोपगंडिस्ट अपने नेता और अनुयायियों को अच्छे नामों से पुकारता है और अपने विरोधियों को बुरे नामो से. टीम अन्ना ने भी यही किया. अपने नेता महात्मा गाँधी को राष्ट्र नेता, बापू, युगपुरुष कहा, अन्ना को समाज सेवक बताया और यूपीए समर्थित प्रधानमंत्री को कमजोर, सांसदों को भ्रष्ट व सरकारी नीतियों को जन विरोधी बताया.

(बाएं से - प्रशांत भूषण, अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल.)
अब बात करते हैं प्रमाण पत्र विधि की. इसमे प्रोपगंडिस्ट अपने मत पक्ष में प्रसिद्ध महापुरुषों, नेताओं के नामों का प्रयोग करता है व उनके विचारों का उल्लेख करके श्रोता को प्रभावित करता है. अन्ना और अरविन्द केजरीवाल ने भी अपने आंदोलन में कई जगह गाँधी, भगत सिंह, तिलक जैसे महापुरुषों और नेताओं का नाम लेकर उनके विचारों से जनता को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं. उनके हर आंदोलन में ऐसा नजर आता ही है.

तीसरा है लोकरीति विधि. प्रोपगंडिस्ट अपनी नीतियों को जनता की नीति बताते हैं. टीम अन्ना में प्रशांत भूषण, केजरीवाल, किरण बेदी या खुद अन्ना अपनी मंशाओं को मांग को या नीतियों को जनता की मंशा, मांग या नीति बताते हैं. टीम भी कोई भी बात कहते समय "देश चाहता है" या "जनता चाहती है" या "देश के 100 करोड लोग चाहते हैं" जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं. अगर देश पर नजर डालें तो देश के 60 करोड लोग अभी भी अन्ना के आंदोलन और उनकी मांगो से अनभिज्ञ हैं, लेकिन फिर भी टीम के सदस्य "100 करोड जनता" जैसा वाक्य प्रयोग कर अपनी मंशा जाहिर करते हैं.

एकांगी विचार विधि में टीम अन्ना नम्बर वन रही है. इसमें प्रोपगंडिस्ट पक्ष के समर्थन के लिए तथ्यों को तोड़-मरोडकर रखते हैं तथा एकांगी एवं मिथ्या बातों को भी प्रस्तुत करते हैं. जंतर मंतर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ टीम अन्ना के शुरूआती आन्दोलन के दौरान सदस्य अरविन्द केजरीवाल ने अपने एक भाषण में तो संविधान को भी गलत ठहरा दिया था, कमजोर करार दे दिया. इतना ही नहीं संविधान निर्माता डॉ. भीम राव अम्बेडकर तक पर टिप्पणी कर डाली. ये और बात है कि बात में इस कुकृत्य के लिए उन्होंने मांफी मांगते हुए अपने बयान का मतलब समझाया.

हर आंदोलन में टीम अन्ना ने विश्वजनीन भ्रम विधि का खासा प्रयोग किया जाता रहा है. इस विधि के द्वारा प्रोपगंडा में ये दिखाने की कोशिश की जाती है कि बहुमत उन्ही की नीति/मांग के पक्ष में है. टीम अन्ना ने भी 10 लाख लोगों के दिल्ली में इकट्टठे हो जाने के बलबूते 100 करोड लोगों को अपने बहुमत में होना बता दिया.
संवेग उत्तेजन विधि  में प्रोपगंडिस्ट जनता या श्रोतागण में भय, चिंता या असुरक्षा का भाव उत्पन्न कर देते हैं. और कोई रास्ता न देख वे प्रोपगंडिस्ट के सुझाव को स्वीकार कर लेते हैं. टीम अन्ना ने भी जनता को भ्रष्टाचार के नाम पर डराया और देश में भ्रष्टाचार से आम जन के भूखे मरने तक की नौबत, बच्चों की पढाई का खतरा, मंहगाई, भविष्य का कठिन जीवन और आतंकवाद में बढ़ोतरी जैसी बातों से उन्हें अपने विचारों को मानने पर विवश किया. कई बार सुना गया आन्दोलन में  "इन" भ्रष्टाचारियों के बीच जीन मुश्किल है. इन्हें उखड फेकना है. लोगो को सुझाव प्रस्तुत किये और लोगों ने सुनें. स्वीकार किया या नहीं, ये मेरी चर्चा का विषय नहीं.
(कुमार विश्वास, टीम अन्ना के सदस्य)

अब बात आई प्रोपगंडा के सबसे खास विधि की. वो है आकर्षक सामान्यता विधि. टीम अन्ना में इस विधि के नायक मैं कुमार विश्वास को मानता हूँ. क्यों? असल में आकर्षक सामान्यता विधि में प्रोपगंडिस्ट  आकर्षक शब्दों, नारे, स्लोगन, कथनों का प्रयोग करके श्रोतागणों को प्रभावित करता है. ऐसे में आप समझ गए होंगे कि ये काम अन्ना की टीम से कुमार विश्वास ने बखूबी निभाया है. अब बताइए, हुए न कुमार विश्वास इस विधि के नायक. हर आन्दोलन में वे कविता, सुन्दर कथन, नारे लगाते हुए मिलते हैं. कुछ और काम हो न हो इसमे वे मझे हुए खिलाड़ी हैं.

प्रोपगंडा टीम अन्ना ने बड़े सलीके से प्रयोग किया है और इसीलिए इसका असर भी कई जगह देखने को मिला. प्रत्येक आंदोलन में किया जाने वाला प्रोपगंडा अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है. हालाँकि टीम के भंग होने से पहले शुरू किये अनशन में किया जाने वाला प्रोपगंडा दम तोडने लगा था. हफ्ते भर पहले शुरू हुए अनशन में ये हाल था कि लोगो ने, जो पहले हुए आंदोलनों में शिरकत कर चुके थे, इस बार आन्दोलन में पहुचने तक की जहमत नहीं उठाई. क्योकि इस बार प्रोपगंडा के सिद्धांतों का प्रयोग सही तरीके से नहीं किया गया था.

रविवार, अगस्त 05, 2012

सूचना समाज और ई-जनसंपर्क


ममता बेनर्जी ने जब अपनी पार्टी की तरफ से एपीजे अब्दुल कलाम का नाम सामने रखा तो उन्होंने लोगो की राय जानने के लिए ई-जनसंपर्क का सहारा लिया. ऐसा ही रामदेव ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगो की राय लेने और लोगो का समर्थन लेने के लिए ई-जनसंपर्क का सहारा लिया. टीम अन्ना ने भी कुछ अलग न करते हुए सूचना समाज के अंतर्गत रहकर ई-जनसंपर्क से ये जाना के लोगो का गुस्सा सरकार के खिलाफ और उनकी नीतियों के खिलाफ कितना हैं. 
शिक्षा, बिजिनेस, राजनीति, मनोरंजन के लिए ई-जनसंपर्क सबसे बेहतर माध्यम बनता जा रहा है. सूचना समाज की एक जबरदस्त शक्ति है. आज का समाज सूचना समाज बन गया है. ध्यान दें तो पता चलेगा कि आज सोचना प्रोद्योगिकी का नाम बदलकर सोचना एवं संचार प्रोद्योगिकी हो गया है. असल में ऐसा इसलिए है क्योकि एक तो तकनीकी सस्ती हुयी है और दूसरा इन्टरनेट आसानी से लोगो तक सस्ते में पहुच पा रहा है. 
जनसंपर्क के सशक्त माध्यम के रूप में जो घोडा इन्टरनेट का दौड रहा है वो किसी और माध्यम का फिलहाल नहीं है. इन्टरनेट ने तकनीकी के बाजार में अन्य माध्यमों को पीछे छोड़ दिया है. कुछ महत्वपूर्ण खासियतों के करना इन्टरनेट अव्वल है. पहला ये कि ये 24 घंटे, हफ्ते के 7 दिन और साल के 365 दिन उपलब्ध रहता है. दूसरा फीडबैक यानी प्रतिपुष्टि तुरंत प्राप्त होती है. कोई भी जानकारी, सन्देश पूरे विश्व में कही भी तुरंत पढ़ी जा सकती है. तीसरा ये बेहद कम खर्चीला है. और चौथा इसकी गति बहुत तेज है. 

एक वक्त था जब वीडियो कांफ्रेंसिंग के लिए या तो माइक्रोवेव बुक करना पड़ता था या सेटलाईट  का सहारा लेना पड़ता था, लाखो तक का खर्चा अत था, तब जाकर दो पक्ष आपस में जुड पाते थे. लेकिन इन्टरनेट ने आज ये माहौल बना दिया है कि वेव कैमरा और कुछ सॉफ्टवेर से दो लोग, मामूली सा खर्च करके, हज़ारो किलोमीटर दूर होने पर भी, वर्तालाप कर सकते हैं, जैसे आमने सामने बैठ कर बातचीत कर रहे हों. बस यही से ई-जनसंपर्क ने अपनी जड़ें ज़माना शुरू कर दिया और आज ये स्थिति है कि अगर आप व्यस्तता के कारण किसी आंदोलन या कसी सेमीनार में नहीं जा सके तो विडियो कांफ्रेंसिंग से लाइव टेलेकास्ट देख सकते हैं.
ई-जनसंपर्क का सबसे बड़ा फायदा आम जन को हुआ है हालांकि ग्रामीण लोग आज भी इन सब से वंचित हैं. क्योकि उनके पास एक तो साधन कम हैं और इसके अलावा ज्ञान की कमी उन्हें और पिछडा बना देती है. जबकि जागरूकता की  सबसे ज्यादा जरूरत इन ग्रामीण वर्ग को ही है. 

उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में ये घोषणा की है कि वे 12वीं पास छात्राओं को लैपटॉप देगी. ये एक सुनहरा मोका होगा उन भाग्यशाली छात्राओं के लिए क्योकि लैपटॉप से इन्टरनेट के माध्यम से वे अपने भविष्य से जुडी शैक्षिक जानकारी हांसिल कर सकेंगी और साथ में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा में क्या बदलाव हो रहे हैं उसकी ताज़ा तरीन जानकारी भी मिलेगी जो पहले उन्हें घर बैठे नहीं मिल सकती थी. इतना ही नहीं वे ई-जनसंपर्क का हिस्सा बनकर देश की उन्नति के लिए भी कदम उठा सकेंगी. 

असल में ई-जनसंपर्क ने आम आदमी को सीधे जवाबदेही ऑथोरिटी तक पहुचाया है. और अब सरकार भी अपनी जिम्मेदारियों से नहीं मुकर पाती जैसा कि पहले होता रहा है. अब तो कोई घटना घटने ही लाखो सुझाव सरकार को घंटे भर के अंदर मिल जाते हैं तथा मिनट भर में जनता सरकार को सीख भी दे देती है. 

हम आज सूचना समाज में रह रहे हैं. जब व्यक्ति घर से टीवी और अखबार पढ़ कर निकलता है तो उसके हाथ में एक मोबाइल होता है ताकि इस बीच की किसी भी प्रकार की घटना से अपडेट रह सके. तभी तो जब ओलंपिक में साइना नेहवाल कांस्य पदक और विजय कुमार रजत पदक जीतते हैं तो हमे जानने के लिए सुबह के अखबारों को पढ़ने की जरूरत नहीं होती, बल्कि रात में ही मोबाइल फोन में एक मेसेज आ जाता है कि देश की झोली में एक और पदक गिरा.