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मंगलवार, अगस्त 09, 2022

तेलंगाना की ’दलित बंधु योजना’ दलितों के लिए कितनी कारगर


- किसी योजना में दलित शब्द लिखने से कितना होगा लाभ

- अरबों रुपया खर्च करने के बाद दलितों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति


बृजेन्द्र कुमार वर्मा,

(लेखक- ग्रामीण विकास संचार अध्ययनकर्ता हैं)

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21वीं सदी के दो दशक बीतने के बाद भी आए दिन अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार की खबरें आती ही रहती हैं, इससे यह साफ हो जाता है कि आज भी जातिगत हालात बदले नहीं हैं। भारत में अनुसूचित जातियों के उन्नयन के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन तेलंगाना अनुसूचित जातियों के लिए दलितशब्द जोड़कर विशेष योजना बनाकर अनुसूचित जातियों के उन्नयन के लिए काम कर रहा है। हालांकि मीडिया भी योजना की स्थिति से अवगत कराता रहता है। जानकारों की माने तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव एस0सी0 परिवारों के कल्याण को लेकर गंभीर हैं। यही कारण है कि वे अनुसूचित जाति के परिवारों के सामाजिक एवं आर्थिक कल्याण के लिए तेलंगाना दलित बंधुयोजना का संचालन कर रहे हैं, जिसमें अनुसूचित जाति के परिवारों को 10 लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता का प्रावधान है, ताकि उनके आय सृजन को बढ़ाया अथवा सुधारा जा सके अथवा आय सृजन में बढ़ोतरी की जा सके।

तेलंगाना दलित बंधु निधि निगरानी प्रणाली के माध्यम से योजना का क्रियान्वयन किया जाता है। इसके लिए तेलंगाना अनुसूचित जाति सहकारी विकास निगम लिमिटेड (टी0एस0सी0सी0डी0सी0एल0) का निर्माण किया गया है। योजना तेलंगाना के अनुसूचित जाति विकास मंत्रालय के अधीनस्थ है, जिसके वर्तमान में मंत्री कोप्पुला ईश्वर हैं, जबकि टीएससीसीडीसीएल के अध्यक्ष बंदा श्रीनिवास हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार तेलंगाना राज्य की कुल जनसंख्या 3,50,03,674 में से 54,08,800 अनुसूचित जाति की आबादी है, जो कुल जनसंख्या का 15.45 प्रतिशत है। यदि तेलंगाना सरकार अपने प्रदेश के अनुसूचित जातियों के परिवारों के कल्याण में सफलता पाती है, तो अनुसूचित जातियों के परिवारों का दिल जीतने में सरकार को आगे लाभ हो सकता है, लेकिन मीडिया में योजना से संबंधित प्रकाशित खबरें अनुसूचित जातियों की स्थिति को कुछ और ही बयां करती हैं।

अनुसूचित जाति के परिवारों को बैंकों से ऋण मिल पाने में हमेशा से ही कठिनाई होती रही है। देरी से ऋण मिलना, मांग के अनुरूप ऋण न मिलना, विभिन्न दस्तावेजों की मांग आदि ऐसे कई कारण हैं, जिनसे अनुसूचित जाति के परिवार ऋण लेते समय सहन करते हैं। कभी-कभी तो ऋण एस0सी0 परिवारों को तब स्वीकृत हो पाता है, जब पैसे की आवश्यकता ही समाप्त हो जाती है, जैसे फसल बोने के समय लिया जाने वाला ऋण। तेलंगाना सरकार ने अवरोधों को ध्यान में रखते हुए एस0सी0 परिवारों को बिना बैंक हस्तक्षेप के सीधे आर्थिक सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया। इससे एक लाभ यह हुआ कि अनुसूचित जाति के परिवारों को बिना दिक्कत आर्थिक सहायता मिली एवं बिना देरी के मिली। इससे एक लाभ की संभावना यह भी हो सकती है कि समय से आर्थिक सहायता मिलने पर परिवारों के मुखियों को अपने आय सृजन को मजबूत करने में सहायता मिलती होगी। यद्यपि मीडिया ने भी इस योजना से संबंधित भ्रष्टाचार की खबरें प्रकाशित की हैं। यदि योजना में मिलने वाले रूपयों में भ्रष्टाचार होता है तो अनुसूचित जाति के परिवारों का कल्याण नहीं हो सकता। इस योजना पर मीडिया की हमेशा नजर रहना आवश्यक है।

अनुसूचित जाति के परिवारों को हमेशा से ही उपेक्षित नजर से देखा जाता रहा है। बहुत ही कम देखा गया है कि कोई योजना प्रत्यक्ष रूप से एस0सी0 परिवारों के लिए संचालित की जाती हों। भारत में आए दिन अनुसूचित जाति के परिवारों के साथ अनुचित व्यवहार, अत्याचार की खबरें आती रहती हैं। सैकड़ों वर्षों से अछूत समझा गया। ऐसे में बहुत ही कम राज्य ऐसे हुए हैं, जिन्होंने अनुसूचित जाति को मुख्यधारा से जोड़ने एवं उनके सामाजिक एवं आर्थिक विकास को प्राथमिकता दी हो। उत्तर प्रदेश में बसपा सुप्रीमो मायावती ने अनुसूचित जाति को प्राथमिकता देते हुए उनके सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया, यही कारण है कि अनुसूचित जाति के लोगों के दिलों में मायावती के प्रति पूरे देश में विशेष सम्मान है। तेलंगाना की बात की जाए तो मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव ने भी अनुसूचित जाति के लिए ‘दलित बंधुयोजना संचालित कर उनके सामाजिक एवं आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने का प्रयास किया, यद्यपि इसमें कितनी सफलता मिलती है, यह समय ही तय करेगा।

योजना की बात की जाए तो इसके अंतर्गत सभी अनुसूचित जाति पात्र परिवारों को उनकी पसंद के अनुसार बिना बैंक ऋण लिंकेज के एक उपयुक्त आय उत्पन्न करने वाली योजनाओं को स्थापित करने के लिए अनुदान अथवा सब्सिडी के रूप में प्रति अनुसूचित जाति परिवार के लिए एकमुश्त पूंजी सहायता दस लाख तय की गयी है। अनुसूचित जाति सहकारी वित्त निगम लिमिटेड, हैदराबाद की स्थापना वर्ष 1974 में की गयी थी, तब तेलंगाना, आंध्र प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन राज्य का विभाजन होने के बाद यह दो भागों में बंट गया। 2014 में तेलंगाना बनने के बाद से अनुसूचित जाति सहकारी वित्त निगम लिमिटेड तेलंगाना के लिए कार्य कर रहा है।

दलित बंधु योजना भ्रष्टाचार के दलदल से अछूता नहीं है। कई बार योजना में भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। गत जुलाई में कांग्रेस सांसद रहे उत्तम कुमार रेड्डी ने योजना को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगाएं हैं। 5 जुलाई 2022 को ‘द सियासत डेली में प्रकाशित खबर के अनुसार कोडाद में मीडियाकर्मियों से बात करते हुए, उत्तम कुमार रेड्डी ने कहा कि ‘दलित बंधु योजना’ को ‘टीआरएस’ नेताओं के लिए एक पैसा बनाने की मशीन में बदल दिया गया है, जो भारी रिश्वत और कमीशन इकट्ठा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कई दलित परिवारों को योजना के लाभार्थी के रूप में चयन के लिए 2 लाख रुपये से लेकर 5 लाख रुपये तक का भुगतान करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया, गरीब दलितों से ज्यादा यह योजना टीआरएस नेताओं के लिए आय योजना साबित हो रही है।’ 16 मार्च 2022 को ब्रोकर बंधु हेडिंग से ‘द हंस इंडिया ने खबर प्रकाशित कर योजना में हो रहे भ्रष्टाचार पर खबर प्रकाशित की। इसी तरह 12 फरवरी 2022 को ‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के मुताबिक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंदी संजय कुमार ने मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को चुनौती दी है कि वे हुजूराबाद में ‘दलित बंधु योजना’ के 20,000 लाभार्थियों की सूची जारी करें, जिनके खातों में राज्य सरकार ने 10 लाख रुपये जारी करने का दावा किया है। इसके अलावा दूसरे मीडिया संस्थानों जैसे, द हिन्दूजैसे अखबारों ने भी योजना पर सवाल उठाए हैं।

आंकड़ों की बात करें तो दलित बंधु योजना के अंतर्गत हर साल औसत 100 करोड़ से अधिक सलाना खर्च किया जाता है। वर्ष 2014-15 में 241 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, जो एस0सी0 परिवारों के कल्याण के लिए एक वर्ष में किए गए खर्च के रूप में अच्छा प्रयास है, लेकिन यहां देखना यह भी है कि इस संबंध में भ्रष्टाचार की खबरें भी प्रकाशित हुई हैं। योजना के अंतर्गत सरकार ने 2020-21 के लिए 500 करोड़ अनुदान के रूप में प्रदान करने का लक्ष्य रखा, इसमें रिपोर्ट के बाद ही पता चल सकेगा कि कितनी राशि कहां खर्च की गयी। योजना के लक्ष्य के बारे में बताया गया है कि आवंटन में गरीब से गरीब अनुसूचित जाति के परिवारों को प्राथमिकता दी जाएगी। भूमिहीन अनुसूचित जाति की महिलाओं को तीन एकड़ कृषि भूमि प्रदान करना भी योजना में शामिल है। योजना में स्वरोजगार सृजन के लिए आर्थिक सहायता का प्रावधान है। एस0सी0 व्यक्तियों को उद्यम के प्रति आकर्षित करने के लिए योजना में अनुसूचित जाति उद्यमियों को उद्यमिता विकास कार्यक्रम प्रदान करने के बारे में भी बताया गया है। योजना में कृषि भूमिहीन मजदूर, छोटे और सीमांत किसान, शिक्षित बेरोजगार, चमड़ा कारीगर, सफाई कर्मचारी आदि एस0सी0 परिवारों पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया है। ऐसे अनुसूचित जाति के परिवार जो स्वरोजगार शुरू करना चाहते हैं, उनमें ग्रामीण क्षेत्र के लिए 1.5 लाख, जबकि शहरी क्षेत्रों में 2 लाख प्रति वर्ष निर्धारित किया गया है। इसमें 33 प्रतिशत महिलाओं को प्राथमिकता की बात कही गयी है। यद्यपि इस योजना का लाभ लेने और आर्थिक सहायता प्राप्त करने के बाद 5 वर्ष तक वह इस योजना का दोबरा लाभ नहीं लिया जा सकता।

दलित बंधु योजना के उद्देश्य सटीक और विकासात्मक हैं, लेकिन यदि अनुसूचित जाति के परिवारों को इसका लाभ नहीं मिलता है, तो खर्च किए गए अरबों रूपयों का कोई औचित्य नहीं रह जाता। योजना में भ्रष्टाचार अनुसूचित जातियों के विकास में प्रत्यक्ष अवरोध है। मुख्यमंत्री को यह जान लेना चाहिए कि तेलंगाना की मीडिया सजग है। बेहद आवश्यक है कि योजना की धनराशि लाभार्थियों को पहुंचे और वह भी पूरी और बिना किसी भ्रष्टाचार के। यदि दलितों को योजना का लाभ पाने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है, तो इसका खामियाजा आने वाले चुनाव में चन्द्रशेखर राव की पार्टी ‘तेलंगाना राष्ट्र समिति को भुगतना होगा। इसके विपरीत मुख्यमंत्री यदि अनुसूचित जातियों का दिल जीतने में सफल हुए, तो उनकी सरकार दोबारा बनने से कोई नहीं रोक सकता।

शनिवार, अगस्त 06, 2022

भूजल निकासी का पुनर्भरण आवश्यक, नहीं तो झेलना होगा संकट

(भूजल संकट)

जल संकट के प्रति जागरूकता में मीडिया का योगदान आवश्यक

 बृजेन्द्र कुमार वर्मा,                        

(लेखक- ग्रामीण विकास संचार अध्ययनकर्ता हैं)

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जब आप बैंक से लोन लेते हैं, तो आपको उसका भुगतान करना ही पड़ता है। यदि आप ऋण चुकाने में आना-कानी भी करते हैं, तो बैंक एक न एक दिन आपसे पाई-पाई का हिसाब ले ही लेता है, वह भी ब्याज सहित। बस यही नियम जल निकासी कर रहे लोगों को सोचना चाहिए, उन्हें लगता है, प्रकृति कुछ कहेगी ही नहीं, लेकिन बेवजह और निरंतर जल निकासी कर रहे लोगों को यह भी सोचना चाहिए कि जिस दिन प्रकृति ने अपना रोद्र रूप दिखाया, तो कुछ नहीं बचेगा।

            बड़ी ही गंभीरता के साथ भूजल संकट चर्चाएं हो रही हैं। ऐसा नहीं है कि समाज में रह रहे पढ़े-लिखे परिवार भूजल संकट को समझते नहीं, परंतु चिंतनीय यह है कि लोग दिए गए सुझावों अथवा नियमों पर अमल नहीं करते। विभिन्न विषयों के अध्ययनकर्ताओं ने आंकड़ों के एकत्रीकरण में यह पता लगाया कि जब भी भूजल की समस्या के परिणामों से लोगों को अवगत कराया जाता है तो कई परिवार ऐसे होते हैं, जो भूजल के लिए स्वयं को जिम्मेवार नहीं समझते। उनका कहना होता है कि पृथ्वी में हो रहे भूजल संकट उनके अकेले से नहीं हो रहा। उनका उत्तर सही तो हो सकता है, लेकिन यहां एक तर्क यह भी समझना होगा कि बूंद-बूंद से घड़ा भरता है। अर्थात जो भी जल निकासी कर रहा है, उन सभी के कारण एक साथ जो परिणाम सामने आता है, वह है, गिरता भूजल, गहराता जलसंकट।

भारतीय परिप्रेक्ष्य को देखें तो जितना पानी जमीन में जाता है, उससे अधिक पानी जमीन से निकाल लिया जाता है। केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि मूल्यांकन किए गए कुल क्षेत्र के 16 प्रतिशत में जल की वार्षिक पुनर्भरण मात्रा से वार्षिक निकासी अधिक है। इससे पता चलता है कि भारत में कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां जल संकट है भी और यह लगातार बढ़ रहा है। यद्यपि कुछ क्षेत्र ऐसे भी है, जहां बारिश के पानी से निकासी की प्रतिपूर्ति हो जाती है, लेकिन ऐसे क्षेत्र बहुत कम हैं।

वर्षा ऋतु प्रकृति की तरफ से जीव-जंतुओं के लिए वरदान है, जो पूर्णतः अतुल्नीय है, लेकिन इसका नई दुनिया में दुरुपयोग बढ़ रहा है। यदि कोई शांत है, और आप उसका नाजयज फायदा उठा रहे हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह कुछ कर नहीं सकता, जिस दिन मन बदला तो परिणाम भी घातक हो सकते हैं। प्रकृति जितनी शांत है, उसका रोद्र रूप, उससे अधिक भयानक है। देश में आजकल जो बाढ़ की स्थिति है, उससे समझा जा सकता है। यहां बात सिर्फ जो जमीन से पानी लिए जाने मात्र की नहीं है, भारत में जल संचयन के लिए कई प्रयास किए हैं, और लगातार कर भी रही है। लेकिन जब बाढ़ जैसी स्थिति देखी जाती है, तो लगता है कि प्रयास कागजों में ही रहे। बड़ी ही उत्सुकता से 22 मार्च 2021 को विश्व जल दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री ने जल शक्ति अभियान- कैच द रेन अभियान की शुरूआत की। इस अभियान का प्रयास है कि जब भी बारिश हो और बूंदे जहां गिरे उसका वहीं संचयन किया जाए। किसानों के लिए यह प्रयास लाभदायक सिद्ध हो सकता है, क्योंकि सर्वाधिक जल उपयोग सिंचाई के माध्यम से कृषि में होता है।

ऐसा नहीं कि भारत में बारिश की स्थिति ठीक नहीं, अपितु कुल मानसून में वर्षा भरपूर होती है। प्रकृति मानसून में भारत को एक बार में इतना पानी दे जाती है, जितना वे उस पानी को सालभर में भी उपयोग नहीं कर सकते। भारत में हर साल औसतन 4000 अरब क्यूबिक मीटर जल वर्षा से प्राप्त होता है, जिसमें से लगभग 1999 बीसीएम नदियों, झीलों, जलाशयों, भूजल और ग्लेशियरों में उपलब्ध जल संसाधन है। भारत की भौगोलिक स्थिति के कारण कहीं बहुत अधिक वर्षा होती है तो कहीं कम। यही कारण है कि मानसून में कहीं बाढ़ आ जाती है तो कहीं पानी की कमी हो जाती है। लेकिन जब यह भारत को पता है कि वर्षा कहां ज्यादा और कहां कम हो रही है तो जल प्रबंधन करने में गंभीरता बरतनी चाहिए।

मान लीजिए, आपके बीमार होने पर डॉक्टर ने आपको परहेज करने को कहा, आपने डॉक्टर की बात तो सुन ली, लेकिन घर आकर उस पर अमल नहीं किया, तो होगा यह कि बीमारी आपके शरीर में बनी रहेगी, और दवा का असर भी नहीं होगा। जल पुनर्भरण के मामले में यही स्थिति है। सब जानते हैं, जल संकट गहराता जा रहा है, लेकिन इसके इलाज पर किसी का विशेष ध्यान नहीं है। असल में समाज की गंभीरता न होने का एक कारण यह भी है कि जल का वितरण पूरे देश में एक समान नहीं है। मानसून में कुछ नदियों में बाढ़ आ जाती है, तो कुछ नदियां, घाटियां सूखा ग्रस्त हो जाती हैं। यहां जल प्रबंधन की संपूर्ण दक्षता एवं जल संरक्षण की सर्वोच्च व्यवस्था की आवश्यकता है। ऐसा कर दिया जाए तो बारिश के बाद अधिकतर जल जो समुद्र में चला जाता है, उसे तो रोका ही जा सकता है, साथ ही जल के असमान वितरण को भी सुधारा जा सकता है। भारत में वार्षिक जल उपलब्धता लगभग 1999 बिलियन क्यूबिक मीटर है, जिसका संरक्षण नहीं हो पाता और नदियों में और तालाबों या फिर जमीन में नहीं जा पाता, इस वजह से देश के कई भागों में पानी की किल्लत उत्पन्न होती रहती है। यद्यपि होना यह चाहिए कि पानी के असमान वितरण पर काम किया जाए, लेकिन सीमित भंडारण क्षमता और अंतर बेसिन स्थानांतरण की कठिनाइयों के कारण ऐसा नहीं हो पाता, जबकि जल परिवहन और उपयोग दक्षता में सुधार करना आवश्यक हो गया है। जल संचयन के लिए कई योजनाएं चल रही हैं, लेकिन जागरूकता न होने के कारण एवं योजनाओं के प्रति आकर्षण न पैदा कर पाने के कारण जल का पुनर्भरण नहीं हो पाता।

टीआरपी की होड़ और अखबारों के सर्कुलेशन की प्रतियोगिता ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि मीडिया उन्हीं विषयों को उठाती है, जो जनता पढ़ना या देखना चाहती है, सामाजिक सरोकार के विषयों को उठाना हर मीडिया के बस की बात नहीं रही। लेकिन भारत में आज भी कई मीडिया संस्थान ऐसे हैं, जो बिना किसी प्रतियोगिता के भारत के समुचित विकास को समर्पित हैं और सामाजिक सरोकार और गंभीर विषयों को उठाते रहते हैं और जनता के प्रहरी बने रहते हैं। सरकार भी ऐेसे अखबारों और मीडिया संस्थनों का सम्मान करती है।

जल संकट का प्रभाव सर्वाधिक कृषि पर पड़ रहा है। भारत में लगभग 91 प्रतिशत जल की खपत सिंचाई के लिए की जाती है, दूसरे देशों में यह आंकड़ा 30 से 70 प्रतिशत के बीच है। पानी की अपर्याप्त उपलब्धता के कारण कई छोटे, मझोले किसान कृषि छोड़कर आय सजृन के लिए दूसरे कार्यों में संलग्न हो रहे हैं। सिंचाई मंहगी हो रही है। ऐसे में सरकार को कृषि से किसानों का जुड़ाव बरकरार रखना है, तो जल का पुरर्भरण के प्रति गंभीर होना होगा, तालाबों का निर्माण और वर्षा जल भरण करना होगा, झीलों को पुनर्जीवित करना होगा। यदि ऐसा नहीं हो पाता है, तो अध्ययन कि यह संभावना कि 2030 तक भारत के 40 प्रतिशत परिवारों के पास पीने के पानी की उपलबधता समाप्त हो सकती है, को बल मिलेगा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक व्यक्ति को सबसे बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रतिदिन कम से कम 50 लीटर जल की आवश्यकता होती है और जल का स्त्रोत घर में 1 किलोमीटर के भीतर होना चाहिए और संग्रहण लगभग 30 मिनट से अधिक नहीं होना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र की सतत विकास लक्ष्य रिपोर्ट 2021 के अनुसार विश्व स्तर पर 2.3 अरब लोग जल की कमी वाले देशों में रहते हैं और लगभग 2.0 अरब लोगों की सुरक्षित पेयजल तक पहुंच नहीं है।

वैश्वीकरण को अपनाने के बाद भारत भी जल संकट के प्रति सजग है और जल संरक्षण और जल प्रबंधन के लिए कई प्रयास किए हैं। जहां भारत में 1950 तक लगभग 380 बड़े बांध थे, वहीं 50 वर्षों में वर्ष 2000 आते आते बांधों की संख्या बढ़कर 3900 हो गई। यह सुनने में अच्छा जान पड़ता है, परंतु कृषि क्षेत्र के लिए यह न्यायोचित स्थिति नहीं कही जा सकती। कुल जल खपत का 91 फीसदी हिस्सा कृषि में खर्च होता है, शेष 7 फीसदी घरेलू कार्यां और शेष 2 फीसदी औद्योगिक क्षेत्र में। कृषि की बात करें तो 140 मिलियन हेक्टेयर के कुल बोए गए क्षेत्र में से मात्र 68 मिलियन हेक्टेयर की ही सिंचाई हो पाती है, शेष वर्षा पर निर्भर रहता है। ऐसे में किसान हमेशा भय की स्थिति में अनाज उगाता है, यदि फसल तैयार होने से पहले सूख गई तो किसान बरबाद हो जाते हैं।

विश्व के विकासशील देशों में विशेषकर पेयजल और स्वच्छता की कमी है। पीने के पानी को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी मनावाधिकार के तुल्य माना है। संयुक्त राष्ट्र ने ऐसे विकासशील देशों की मदद करने का आह्वान किया है, जहां पानी संकट हैं। भारत में जनसंख्या लगातार बढ़ रही है, शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन से जल तनाव भी बढ़ रहा है। निश्चित ही जल संकट आने वाला है। जल्दी से जल्दी जल संरक्षण, जल संचयन, जल प्रबंधन के लिए कड़े कानून लाने होंगे। जल बर्बादी करने वालों पर चालान का प्रावधान करना आवश्यक है। सिंचाई पद्धतियों में परिवर्तन की आवश्यकता है, इसके लिए कृषि शिक्षकों की सहायता लेना अनिवार्य है। अब तट रक्षक, वन रक्षक, शिक्षामित्र के पदों की तरह जल रक्षक या जल मित्र जैसे पदों का सजृन करना चाहिए और इनकी भर्ती करनी चाहिए, ताकि आने वाले समय जल बर्बादी, दुरुपयोग पर कड़ी नजर रखी जाए, साथ ही जल के महत्व के प्रति जागरूकता लायी जा सके।

भारत की आम जनता के लिए अहम क्यों है ई0डी0 अर्थात प्रवर्तन निदेशालय

गैर कानूनी लेनदेन एवं विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन पर रहती है नजर

 बृजेन्द्र कुमार वर्मा,

(लेखक- ग्रामीण विकास संचार अध्ययनकर्ता हैं)

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आजकल ई0डी0 विभाग पूरे भारत में चर्चे में है। भारत में हो रहे गैर कानूनी लेनदेन एवं विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन पर इसकी नजर होती है। आम जनता को यह तो पता है कि ई0डी0 लोगों के घर से अवैध रूपयों को जब्त करता है, लेकिन यह कार्य करता कैसे है, यह बहुत कम लोगों को पता है, जबकि आम जनता को ई0डी0 के बारे में अवश्य ही पता होना चाहिए। क्योंकि देखा जाए तो अप्रत्यक्ष रूप से ई0डी0 आम जनता की गाढ़ी कमाई, जिसे अपराधियों ने अवैध रूप से अपने घरों में जमा कर रखा है, को ही बरामद करता है।

0डी0 अर्थात प्रवर्तन निदेशालय के इतिहास की बात करें तो इसकी स्थापना 01 मई, 1956 को हुई थी। विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1947’ (फेरा, 1947) के अंतर्गत विनिमय नियंत्रण विधियों के उल्लंघन को रोकने के लिए आर्थिक कार्य विभाग के नियंत्रण में एक प्रवर्तन इकाई का गठन का गया था। इसका मुख्यालय दिल्ली बनाया गया। कुछ समय बाद वर्ष 1960 में इस निदेशालय का प्रशासनिक नियंत्रण, आर्थिक कार्य मंत्रालय से राजस्व विभाग में हस्तांतरित कर दिया गया। कुछ वर्षों बाद फेरा-47’ को हटाकर इसके स्थान पर फेरा, 1973 आ गया। तत्कालीन निदेशालय को मंत्रीमण्डल सचिवालय, कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग के प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र में रखा गया।  इसे भी बदलकर 01 जून, 2000 से एक नई विधि विदेशी मुद्रा अधिनियम, ’1999-फेमा लागू किया गया। बाद मे, अंतर्राष्ट्रीय धन शोधन व्यवस्था के अनुरूप, एक नया कानून धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) बना और प्रवर्तन निदेशालय को 1 जुलाई 2005 से पीएमएलए को प्रवर्तित करने का दायित्व सौंपा गया। हाल ही में, विदेशों में शरण लेने वाले आर्थिक अपराधियों से संबंधित मामलों की संख्या में वृद्धि के कारण, सरकार ने भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018’ (एफइओए) पारित किया है और प्रवर्तन निदेशालय को 21 अप्रैल, 2018 से इसे लागू करने का दायित्व सौंपा गया है। वर्तमान में, निदेशालय राजस्व विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में है।

भारत सरकार का प्रवर्तन निदेशालय एक बहु-अनुशासनिक संगठन है, जो धन शोधन (मनी लॉन्डरिंग) के अपराध और विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन की जांच करता है। ई0डी0 कई अधिनियमों के तहत कार्यवाही करते हैं। ई0डी0 के अनुसार, ’धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002’ (पीएमएलए) एक आपराधिक कानून है, जिसे धन शोधन (मनी लॉन्डरिंग) को रोकने के लिए और इस से प्राप्त संपत्ति की जब्ती का प्रावधान करने के लिए बनाया गया है। जब कोई मनी लॉन्डरिंग से धन एकत्रित करता है, तो ऐसे अपराधी के खिलाफ इस अधिनियम के तहत कार्यवाही की जाती है। इसी प्रकार ई0डी0 ’विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999’ (फेमा) के तहत भी कार्यवाही करता है। अधिनियम के अनुसार, यह एक नागरिक कानून है, जो विदेशी व्यापार और भुगतान की सुविधा से संबंधित कानूनों को समेकित और संशोधित करने और भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के व्यवस्थित विकास और रखरखाव को बढ़ावा देने के लिए अधिनियमित किया गया है। प्रवर्तन निदेशालय को विदेशी मुद्रा कानूनों और विनियमों के संदिग्ध उल्लंघनों के अन्वेषण करने, कानून का उल्लंघन करने वालों को न्याय निर्णित करने और उन पर जुर्माना लगाने की जिम्मेदारी दी गई है। इसी प्रकार भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018’ (एफईओए) के अंतर्गत ई0डी0 कार्य करता है। यह कानून आर्थिक अपराधियों को भारतीय न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर भागकर भारतीय कानून की प्रक्रिया से बचने से रोकने के लिए बनाया गया था। इस कानून के अंतर्गत ई0डी0 ऐसे भगोड़े आर्थिक अपराधी, जो गिरफ्तारी से बचते हुए भारत से बाहर भाग गए हैं, उनकी संपत्तियों को कुर्क करने का प्रावधान है। ई0डी0 इनके अलावा विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1974’ (सीओएफइपीओएसए) के तहत, इस निदेशालय को फेमा के उल्लंघनों के संबंध में निवारक निरोध के मामलों को प्रायोजित करने का अधिकार है।

0डी0 की कार्यप्रणाली पर नजर डालें तो पता चलता है कि प्रवर्तन निदेशालय का एक निदेशक होता है, जिसके अधीनस्थ क्षेत्र स्तर के विशेष निदेशक कार्य करते हैं। यह केन्द्र स्तर पर कार्य करते हैं। कार्य संचालन के लिए क्षेत्र का बंटवारा पश्चिम क्षेत्र, उत्तर क्षेत्र, दक्षिण क्षेत्र, मध्य क्षेत्र, और पूर्वी क्षेत्र के रूप में किया गया है। विशेष निदेशक के नीचे संयुक्त निदेशक होते हैं, जो क्षेत्र के विभिन्न जोन के लिए कार्य करते हैं। संयुक्त निदेशक के नीचे का कार्य उपनिदेशक देखते हैं। इतना ही नहीं विधिक सलाह एवं अन्य संबंधित कार्य के लिए संयुक्त सचिव नियुक्त किए जाते हैं। भारत के जिस क्षेत्र में विदेशी मुद्रा अथवा अवैध संपत्ति अथवा मनी लॉन्डरिंग जैसी अपराध होते हैं, वहां के क्षेत्रीय ई0डी0 अधिकारी कार्यवाही करते हैं, एवं रिपोर्ट सीनियर अधिकारी को अथवा कार्यालय को प्रेषित की जाती है।

0डी0 द्वारा की गयी विभिन्न कार्यवाहियों पर बात करें, तो भारत में हो रहे मनी लॉन्डरिंग, अवैध लेन-देन जैसे अपराधों की पोल खुल जाती है। आंकड़ों के अनुसार, ’धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) - 2002’ के अंतर्गत 31 मार्च 2022 तक कुल 5422 मामले दर्ज किए गए। इसमें 1739 मामलों में कुर्की का आदेश दिया जा चुका है। ई0डी0 द्वारा कुर्क की गयी कुल परिसम्पत्तियों का कुल मुल्य 104702 करोड़ रुपये है। पुष्ट अनंतिम कुर्की आदेशों की संख्या 1369 तथा न्यायनिर्णयन प्राधिकरण द्वारा अनंतिम कुर्की आदेशों के तहत कुर्क की गई परिसंपत्तियों का मूल्य 58591 करोड़ रूपये है। ई0डी0 ने इस अधिनियम के तहत 400 लोगों को गिरफ्तार भी किया है। दर्ज शिकायतों में 992 अभी भी विचाराधीन हैं। ई0डी0 ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999’ के तहत भी विभिन्न कार्यवाही को अंजाम दिया है। इस अधिनियम के तहत ई0डी0 ने 31 मार्च 2022 तक कुल 30716 मामलों की जाँच आरंभ की, जिसमें 15495 जाँच पूरी कर ली गयीं। 8109 लोगों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जबकि न्याय-निर्णीत कारण बताओ नोटिस 6472 लोगों को दिया गया। ई0डी0 ने भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018’ (एफईओए) के तहत भी कार्यवाही की है। इसमें 14 व्यक्तियों के विरुद्ध एफईओए के तहत कार्रवाई आरंभ की गयी, जिसमें  एफ000 घोषित व्यक्तियों की संख्या 09 है। अधिनियम के तहत जब्त की गयी परिसम्पतियों का कुल मूल्य 433 करोड़ है।

            वर्तमान में ई0डी0 भारतीय मीडिया में छाया हुआ है। ई0डी0 की कार्यवाही में जिस प्रकार से लोगों के घरों में भरा पड़ा पैसा बरामद किया जा रहा है, वह कहीं न कहीं आम जनता के खून पसीने की कमाई है, जिसे अपराधियों ने गलत तरीकों से इक्टठ्ठा किया है। भारत की गरीब जनता कहीं न कहीं ई0डी0 का धन्यवाद ही दे रही होगी, जो अवैध पैसा को बरामद कर रहे हैं। कुछ राजनीतिक पार्टियां ई0डी0 के दुरुपयोग किए जाने की बात कर रही हैं। यदि ऐसा है तो यह भी सिद्ध करना चाहिए कि जिन पर ई0डी0 कार्यवाही करके करोड़ों बरामद कर रही है, वह पैसा आखिर आ कहां से रहा है। गैर-कानूनी तरीकों, मनी लॉन्डरिंग करने या विदेशों से अवैध लेन-देन से एकत्रित की गयी अवैध सम्पत्ति को यदि ई0डी0 बरामद कर भी रही है, तो इसे राजनीतिक नहीं कहना चिहए, क्योंकि यह आम जनता के हक का रूपया है, जो उन तक पहुंच ही नहीं पाया। ऐसी कार्यवाही लगातार होती रहनी चाहिए, फिर सरकार किसी भी पार्टी की ही क्यों न हो।