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मंगलवार, अगस्त 09, 2022

तेलंगाना की ’दलित बंधु योजना’ दलितों के लिए कितनी कारगर


- किसी योजना में दलित शब्द लिखने से कितना होगा लाभ

- अरबों रुपया खर्च करने के बाद दलितों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति


बृजेन्द्र कुमार वर्मा,

(लेखक- ग्रामीण विकास संचार अध्ययनकर्ता हैं)

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21वीं सदी के दो दशक बीतने के बाद भी आए दिन अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार की खबरें आती ही रहती हैं, इससे यह साफ हो जाता है कि आज भी जातिगत हालात बदले नहीं हैं। भारत में अनुसूचित जातियों के उन्नयन के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन तेलंगाना अनुसूचित जातियों के लिए दलितशब्द जोड़कर विशेष योजना बनाकर अनुसूचित जातियों के उन्नयन के लिए काम कर रहा है। हालांकि मीडिया भी योजना की स्थिति से अवगत कराता रहता है। जानकारों की माने तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव एस0सी0 परिवारों के कल्याण को लेकर गंभीर हैं। यही कारण है कि वे अनुसूचित जाति के परिवारों के सामाजिक एवं आर्थिक कल्याण के लिए तेलंगाना दलित बंधुयोजना का संचालन कर रहे हैं, जिसमें अनुसूचित जाति के परिवारों को 10 लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता का प्रावधान है, ताकि उनके आय सृजन को बढ़ाया अथवा सुधारा जा सके अथवा आय सृजन में बढ़ोतरी की जा सके।

तेलंगाना दलित बंधु निधि निगरानी प्रणाली के माध्यम से योजना का क्रियान्वयन किया जाता है। इसके लिए तेलंगाना अनुसूचित जाति सहकारी विकास निगम लिमिटेड (टी0एस0सी0सी0डी0सी0एल0) का निर्माण किया गया है। योजना तेलंगाना के अनुसूचित जाति विकास मंत्रालय के अधीनस्थ है, जिसके वर्तमान में मंत्री कोप्पुला ईश्वर हैं, जबकि टीएससीसीडीसीएल के अध्यक्ष बंदा श्रीनिवास हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार तेलंगाना राज्य की कुल जनसंख्या 3,50,03,674 में से 54,08,800 अनुसूचित जाति की आबादी है, जो कुल जनसंख्या का 15.45 प्रतिशत है। यदि तेलंगाना सरकार अपने प्रदेश के अनुसूचित जातियों के परिवारों के कल्याण में सफलता पाती है, तो अनुसूचित जातियों के परिवारों का दिल जीतने में सरकार को आगे लाभ हो सकता है, लेकिन मीडिया में योजना से संबंधित प्रकाशित खबरें अनुसूचित जातियों की स्थिति को कुछ और ही बयां करती हैं।

अनुसूचित जाति के परिवारों को बैंकों से ऋण मिल पाने में हमेशा से ही कठिनाई होती रही है। देरी से ऋण मिलना, मांग के अनुरूप ऋण न मिलना, विभिन्न दस्तावेजों की मांग आदि ऐसे कई कारण हैं, जिनसे अनुसूचित जाति के परिवार ऋण लेते समय सहन करते हैं। कभी-कभी तो ऋण एस0सी0 परिवारों को तब स्वीकृत हो पाता है, जब पैसे की आवश्यकता ही समाप्त हो जाती है, जैसे फसल बोने के समय लिया जाने वाला ऋण। तेलंगाना सरकार ने अवरोधों को ध्यान में रखते हुए एस0सी0 परिवारों को बिना बैंक हस्तक्षेप के सीधे आर्थिक सहायता प्रदान करने का निर्णय लिया। इससे एक लाभ यह हुआ कि अनुसूचित जाति के परिवारों को बिना दिक्कत आर्थिक सहायता मिली एवं बिना देरी के मिली। इससे एक लाभ की संभावना यह भी हो सकती है कि समय से आर्थिक सहायता मिलने पर परिवारों के मुखियों को अपने आय सृजन को मजबूत करने में सहायता मिलती होगी। यद्यपि मीडिया ने भी इस योजना से संबंधित भ्रष्टाचार की खबरें प्रकाशित की हैं। यदि योजना में मिलने वाले रूपयों में भ्रष्टाचार होता है तो अनुसूचित जाति के परिवारों का कल्याण नहीं हो सकता। इस योजना पर मीडिया की हमेशा नजर रहना आवश्यक है।

अनुसूचित जाति के परिवारों को हमेशा से ही उपेक्षित नजर से देखा जाता रहा है। बहुत ही कम देखा गया है कि कोई योजना प्रत्यक्ष रूप से एस0सी0 परिवारों के लिए संचालित की जाती हों। भारत में आए दिन अनुसूचित जाति के परिवारों के साथ अनुचित व्यवहार, अत्याचार की खबरें आती रहती हैं। सैकड़ों वर्षों से अछूत समझा गया। ऐसे में बहुत ही कम राज्य ऐसे हुए हैं, जिन्होंने अनुसूचित जाति को मुख्यधारा से जोड़ने एवं उनके सामाजिक एवं आर्थिक विकास को प्राथमिकता दी हो। उत्तर प्रदेश में बसपा सुप्रीमो मायावती ने अनुसूचित जाति को प्राथमिकता देते हुए उनके सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया, यही कारण है कि अनुसूचित जाति के लोगों के दिलों में मायावती के प्रति पूरे देश में विशेष सम्मान है। तेलंगाना की बात की जाए तो मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव ने भी अनुसूचित जाति के लिए ‘दलित बंधुयोजना संचालित कर उनके सामाजिक एवं आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने का प्रयास किया, यद्यपि इसमें कितनी सफलता मिलती है, यह समय ही तय करेगा।

योजना की बात की जाए तो इसके अंतर्गत सभी अनुसूचित जाति पात्र परिवारों को उनकी पसंद के अनुसार बिना बैंक ऋण लिंकेज के एक उपयुक्त आय उत्पन्न करने वाली योजनाओं को स्थापित करने के लिए अनुदान अथवा सब्सिडी के रूप में प्रति अनुसूचित जाति परिवार के लिए एकमुश्त पूंजी सहायता दस लाख तय की गयी है। अनुसूचित जाति सहकारी वित्त निगम लिमिटेड, हैदराबाद की स्थापना वर्ष 1974 में की गयी थी, तब तेलंगाना, आंध्र प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन राज्य का विभाजन होने के बाद यह दो भागों में बंट गया। 2014 में तेलंगाना बनने के बाद से अनुसूचित जाति सहकारी वित्त निगम लिमिटेड तेलंगाना के लिए कार्य कर रहा है।

दलित बंधु योजना भ्रष्टाचार के दलदल से अछूता नहीं है। कई बार योजना में भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। गत जुलाई में कांग्रेस सांसद रहे उत्तम कुमार रेड्डी ने योजना को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगाएं हैं। 5 जुलाई 2022 को ‘द सियासत डेली में प्रकाशित खबर के अनुसार कोडाद में मीडियाकर्मियों से बात करते हुए, उत्तम कुमार रेड्डी ने कहा कि ‘दलित बंधु योजना’ को ‘टीआरएस’ नेताओं के लिए एक पैसा बनाने की मशीन में बदल दिया गया है, जो भारी रिश्वत और कमीशन इकट्ठा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कई दलित परिवारों को योजना के लाभार्थी के रूप में चयन के लिए 2 लाख रुपये से लेकर 5 लाख रुपये तक का भुगतान करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया, गरीब दलितों से ज्यादा यह योजना टीआरएस नेताओं के लिए आय योजना साबित हो रही है।’ 16 मार्च 2022 को ब्रोकर बंधु हेडिंग से ‘द हंस इंडिया ने खबर प्रकाशित कर योजना में हो रहे भ्रष्टाचार पर खबर प्रकाशित की। इसी तरह 12 फरवरी 2022 को ‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के मुताबिक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंदी संजय कुमार ने मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को चुनौती दी है कि वे हुजूराबाद में ‘दलित बंधु योजना’ के 20,000 लाभार्थियों की सूची जारी करें, जिनके खातों में राज्य सरकार ने 10 लाख रुपये जारी करने का दावा किया है। इसके अलावा दूसरे मीडिया संस्थानों जैसे, द हिन्दूजैसे अखबारों ने भी योजना पर सवाल उठाए हैं।

आंकड़ों की बात करें तो दलित बंधु योजना के अंतर्गत हर साल औसत 100 करोड़ से अधिक सलाना खर्च किया जाता है। वर्ष 2014-15 में 241 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, जो एस0सी0 परिवारों के कल्याण के लिए एक वर्ष में किए गए खर्च के रूप में अच्छा प्रयास है, लेकिन यहां देखना यह भी है कि इस संबंध में भ्रष्टाचार की खबरें भी प्रकाशित हुई हैं। योजना के अंतर्गत सरकार ने 2020-21 के लिए 500 करोड़ अनुदान के रूप में प्रदान करने का लक्ष्य रखा, इसमें रिपोर्ट के बाद ही पता चल सकेगा कि कितनी राशि कहां खर्च की गयी। योजना के लक्ष्य के बारे में बताया गया है कि आवंटन में गरीब से गरीब अनुसूचित जाति के परिवारों को प्राथमिकता दी जाएगी। भूमिहीन अनुसूचित जाति की महिलाओं को तीन एकड़ कृषि भूमि प्रदान करना भी योजना में शामिल है। योजना में स्वरोजगार सृजन के लिए आर्थिक सहायता का प्रावधान है। एस0सी0 व्यक्तियों को उद्यम के प्रति आकर्षित करने के लिए योजना में अनुसूचित जाति उद्यमियों को उद्यमिता विकास कार्यक्रम प्रदान करने के बारे में भी बताया गया है। योजना में कृषि भूमिहीन मजदूर, छोटे और सीमांत किसान, शिक्षित बेरोजगार, चमड़ा कारीगर, सफाई कर्मचारी आदि एस0सी0 परिवारों पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया है। ऐसे अनुसूचित जाति के परिवार जो स्वरोजगार शुरू करना चाहते हैं, उनमें ग्रामीण क्षेत्र के लिए 1.5 लाख, जबकि शहरी क्षेत्रों में 2 लाख प्रति वर्ष निर्धारित किया गया है। इसमें 33 प्रतिशत महिलाओं को प्राथमिकता की बात कही गयी है। यद्यपि इस योजना का लाभ लेने और आर्थिक सहायता प्राप्त करने के बाद 5 वर्ष तक वह इस योजना का दोबरा लाभ नहीं लिया जा सकता।

दलित बंधु योजना के उद्देश्य सटीक और विकासात्मक हैं, लेकिन यदि अनुसूचित जाति के परिवारों को इसका लाभ नहीं मिलता है, तो खर्च किए गए अरबों रूपयों का कोई औचित्य नहीं रह जाता। योजना में भ्रष्टाचार अनुसूचित जातियों के विकास में प्रत्यक्ष अवरोध है। मुख्यमंत्री को यह जान लेना चाहिए कि तेलंगाना की मीडिया सजग है। बेहद आवश्यक है कि योजना की धनराशि लाभार्थियों को पहुंचे और वह भी पूरी और बिना किसी भ्रष्टाचार के। यदि दलितों को योजना का लाभ पाने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है, तो इसका खामियाजा आने वाले चुनाव में चन्द्रशेखर राव की पार्टी ‘तेलंगाना राष्ट्र समिति को भुगतना होगा। इसके विपरीत मुख्यमंत्री यदि अनुसूचित जातियों का दिल जीतने में सफल हुए, तो उनकी सरकार दोबारा बनने से कोई नहीं रोक सकता।

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