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बुधवार, अक्तूबर 02, 2013

हरिजन तो पूरा संसार है

मोहनदास करमचंद गांधी जी ने जब अहमदाबाद से 1932 में "हरिजन सेवक" निकाला तो उन्होंने सोचा होगा कि दलितों को "हरिजन" संज्ञा दे दी जाए तो वे खुश हो जायेंगे. 
लेकिन ये गजब की गाली थी हर दलित समुदाय के लिए. दलित उस समय अनपढ़ जरूर रहे होंगे, परन्तु मूर्ख कदापि नहीं थे. सोचने वाली बात है कि सिर्फ दलित को ही हरिजन क्यों कहा गया?

हरिजन अर्थात हरि के जन मतलब भगवान् के लोग.
अब सोचने वाली बात है कि अगर भगवान् ने ये सृष्टि बनायी है तो पूरा संसार, पशु, पक्षी, मानव, वृक्ष, पेड़, पौधे पृथ्वी का हर अंश हरिजन हुआ. ऐसे में गांधी जी ने सिर्फ दलितों को हरिजन क्यों कहा मेरी समझ से परे है. या तो इसलिए कि बाबा साहेब अम्बेडकर के खिलाफ लॉबी तेयार करके दलितों को भ्रमित करना चाह रहे थे या उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से दलितों को गाली दे रहे थे. क्योंकि अगर ये गाली नहीं थी तो सवर्णों को दलित क्यों नहीं कहा जाता, जबकि भगवान/मंदिरों के आस पास यही लोग जयादा पाए जाते हैं.

खैर मैं सवर्ण-अवर्ण के पचड़े में नहीं पड़ना चाहता. मेरा सवाल सिर्फ इतना है कि केवल दलितों को ही "हरिजन" की संज्ञा क्यों दी गयी....
हरिजन समाचार पत्र की एक प्रति.
साभार- http://en.wikipedia.org/wiki/Harijan

हरिजन शब्द का इतिहास 

हरिजन शब्द का एक अघोषित अर्थ रहा है. पुराने समय में गाँव की कुछेक कन्याओं को जो सुन्दर हुआ करती थी, उन्हें किसी न किसी बहाने से देवदासी घोषित कर दिया जाता था, या तो देवी का रूप बताकर या दूसरे लोक की कन्या बताकर कि इसका जन्म भगवान की सेवा के लये हुआ है, बस इतना सब करके उन शारीरिक रूप से सुन्दर आकर्षक कन्याओं को देवदासी बना दिया जाता था. इन देवदासियों का काम मंदिर की साफ़ सफाई हुआ करता था. परन्तु इसे कुछेक धूर्त पुजारी अपनी शारीरिक हवस का शिकार बनाते थे. इनसे आये दिन शारीरिक सम्बन्ध बनाते और कहते ये तो ईश्वर का आदेश है. जब ये कन्याएं गर्भवती होकर माँ बन जातीं तो इनके बच्चों को, वे पुजारी, जिनकी ये संतानें होती थी, स्वीकार करने से मना कर देते और कहते ये तो प्रभु की देन है और ये भगवान् के बच्चे हैं हमारे  नहीं. ये तो - "हरिजन" हैं.
क्या अजीब न्याय है.

क्या गाँधी जी ने ऐसा कुछ कभी पढ़ा नहीं था?

कहा जाता है कि गांधी जी बहुत ज्ञानी थे, बहुत किताबे पढ़ते थे, दार्शनिक थे. तो क्या उन्होंने "हरिजन" शब्द का इतिहास नहीं पढ़ा था. क्या इस शब्द का जन्म उन्होंने किया था? क्या उनके द्वारा इस शब्द के इस्तेमाल से पहले इस शब्द का इस्तेमाल नहीं हुआ था? मैं ये नहीं मानता असल में गाँधी जी अच्छे से जानते थे. लेकिन ये नहीं चाहते थे कि अच्छी शिक्षा ग्रहण करें, बस वे चाहते थे कि दलित अपना पैतृक काम करें. कमाल हैं खुद सुनार होकर वकील बन गये, और दूसरों को सलाह देकर कहते हैं पैतृक काम करो. क्यों करें??? क्या अपने पैतृक काम किया? जो चीज आप खुद पर लागू नहीं कर सकते तो आप उसे दूसरे पर भी लागू नहीं कर सकते.

खैर ये बातें तो होती रहेंगी. मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि आप सभी मेरे साधू पाठकों से निवेदन है कि किसी वर्ग विशेष को "हरिजन" कहना ठीक नहीं, अगर आप धर्म में आस्था रखते हैं और भगवन/ अल्लाह/ ईशा मसीह/ रब/ वाहेगुरु/ या कोई भी आपके ईष्ट (GOD) को मानते हैं तो आप ये भी समझते होंगे ये संसार हरि अर्थात भगवान् (GOD) का है और हर चीज हरिजन है. ये पूरा संसार "हरिजन" है. एक-एक तिनका हरिजन है.

इसलिए कृपया किसी वर्ग विशेष को "हरिजन" न कहें, क्योंकि अगर दलितों को हरिजन कहा जाएगा तो सवाल उठेगा कि यदि दलित "हरिजन" हैं तो बाकी क्या "दानवजन" हैं???