सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

शनिवार, सितंबर 24, 2022

ग्रामीण विकास में प्रत्यक्ष अवरोध है लंपी वायरस

बृजेन्द्र कुमार वर्मा,

(लेखक- ग्रामीण विकास संचारक हैं)

.................................................................................................................................................

लंपी वायरस ने यह स्थिति ला दी है कि समाज वैज्ञानिकों का ध्यान ग्रामण विकास और लगातार प्रभावित हो रहे दुग्ध उत्पादन की ओर जाने लगा है। ग्रामीण अपने विकास के लिए लगातार संघर्षरत रहा है, लेकिन लम्पी वायरस ने ग्रामीण विकास के विभिन्न अवरोधों में एक अवरोध को और बढ़ा दिया है, जो भारत के विभिन्न राज्यों के लिए चिंता का विषय बन चुका है, वह है मवेशियों में फैला लंपी त्वचा रोग। जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो बहुत जल्द पशुधन उत्पादन महंगा होने लगेगा, क्योंकि हजारों दुधारू गायों की मृत्यु हो चुकी है, और अब भी लगातार मर रही हैं। मीडिया कवरेज में ड्रॉन की मदद से ऊंचाई से लिए कई फुटेज देखने के बाद ऐसा लगता है कि लंपी से मरने वाले मवेशियों की संख्या राष्ट्र स्तर पर लाख से ऊपर भी हो सकती है। समाचार पत्रों की माने तो कई राज्यों में 10-10 हजार से ज्यादा गायों की मौत हो चुकी है। राहत की बात यह है कि ये रोग पशुओं से इंसानों में नहीं फैलता है, लेकिन फिर अप्रत्यक्ष रूप से वे इंसान प्रभावित हुए हैं, जो पशुधन रखते हैं, और जिनके मवेशी लंपी वायरस की चपेट में आ गए हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन होता है, जिसे विभिन्न संसाधनों द्वारा शहरों में पहुँचाया जाता है। गाँव के मवेशी पालक अपने मवेशियों का दूध निकालकर नजदीकी डेयरी को बेच देते हैं अथवा स्वयं दुग्ध उत्पाद बनाते हैं, जैसे दही, मट्ठा, मक्खन, घी, पनीर और उसे नजदीकी बाजार अथवा ठेकेदारों को बेच देते हैं। बात आती है उनके लाभ की। दुग्ध उत्पादों की बिक्री से मिलने वाले पैसों से ये मवेशी पालक अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। वर्तमान में भारत में हजारों मवेशी पालक इस समय सदमें में जी रहे हैं, उनका घर चलाने वाली गाय लंपी वायरस से ग्रसित है। गाय तो ग्रसित है ही, उनके पालक भी चिंता में समय काट रहे हैं, क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति भी खतरे में है। ऐसे में यदि दुधारू मवेशियों की लंपी वायरस से जाने जाएंगी अथवा बीमारी से ग्रसित होती जाएंगी तो दुग्ध उत्पादन पर सीधा प्रभाव पडे़गा। इससे पालकों को आर्थिक नुकसान तो होगा ही, साथ ही राष्ट्र का पशुधन भी प्रभावित होगा।

बीमारी की बात करें तो विशेषज्ञ बताते है कि यह गांठदार त्वचा रोग है, जिसे अंग्रेजी में लंपी स्कीन डिजीजकहते हैं, यह मवेशियों में होने वाला एक संक्रामक रोग है, जो पॉक्सविरिड परिवार के एक वायरस के कारण होता है। इसे नीथलिंग वायरस भी कहा जाता है। इस रोग के कारण पशुओं की त्वचा पर गांठें बन जाती हैं, मुंह से, नाक से स्त्राव होने लगता है। यह रोग त्वचा, श्लेष्मा झिल्ली और श्वसन मार्ग को प्रभावित करता है। साथ ही दो से तीन सेंटीमीटर बड़ी गांठें पड़ जाती हैं, बुखार आता है, शरीर में सूजन आने लगती है, कुछ समय बाद चलने में, खड़े होने में दिक्कत होने लगती है। यह रोग मच्छर, मक्खी और परजीवी से एक दूसरे में तेजी से फैलता है। यह बीमारी इतनी घातक होती है कि यदि समय पर इलाज न हो तो गायों की मृत्यु तक हो जाती है, और गाय ठीक भी हो जाए तो भविष्य में दूध कम उत्पादित करती हैं, बांझपन तक आ जाता है। साधारण शब्दों में कहें तो गाय पालने वाले (पालक) को आर्थिक नुकसान होता है।

उत्तर प्रदेश में आंकड़ों के अनुसार लगभग साढ़े पाँच लाख से अधिक मवेशियों का टीकाकरण किया जा चुका है। अभी पश्चिमी क्षेत्र में लंपी वायरस फैला हुआ है, जो पूर्व की ओर बढ़ रहा है। हाल ही में 8 सितंबर 2022 को उत्तर प्रदेश पशुधन विभाग के विशेष सचिव ने पूर्वी क्षेत्र को सुरक्षित करने व वायरस के प्रसार को रोकने के लिए एक मास्टर प्लान की बात कही है। विभाग के अनुसार मलेशिया देश की तर्ज़ पर पीलीभीत से लेकर इटावा तक लगभग 300 कि0मी0 की दूरी को 10 कि0मी0 चौड़े इम्यून बेल्ट से कवर करने का मास्टर प्लान तैयार किया है। यह बेल्ट एक तरह से बॉर्डर का काम करेगी और लंपी वायरस इसे पार कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश से पूर्वी उत्तर प्रदेश की तरफ नहीं जा सकेगा।

पशुपालन विभाग के अनुसार वैक्सीनेशन के ज़रिये इम्यून बेल्ट बनाने की तैयारियाँ पूरी की जा चुकी हैं। विभाग की माने तो इस पूरी बेल्ट में पशुओं में शत-प्रतिशत टीकाकरण की बात कही गयी है। निगरानी के लिये विशेष टास्क फोर्स होगी, जो लंपी वायरस से संक्रमित पशुओं की ट्रैकिंग और ट्रीटमेंट का ज़िम्मा संभालेगी। 2020 में ऐसा प्रयास मलेशिया में किया गया था, वहाँ की सरकार ने इसके सकारात्मक परिणाम बताए थे। यदि उत्तर प्रदेश ऐसा करने में सफलता प्राप्त कर लेता है तो पूर्वी क्षेत्र में लाखों मवेशियों को प्रभावित होने से रोका जा सकता है, यह उत्तर प्रदेश के लिए किसी विशेष उपलब्धि से कम नहीं होगी।

मृत्यु दर के बारे में बताया जा रहा है कि लंपी स्किन डिजीज से पीड़ित पशुओं में मृत्यु दर 1 से 5 प्रतिशत तक है, हालांकि संकर नस्ल के गौवंश में मृत्यु दर अधिक देखी गयी है। यूरोप, रूस, कजाकिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, चीन, भूटान, नेपाल और भारत में अलग-अलग समय में इसके मामले पाए गए हैं। इस समय गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तर प्रदेश, आदि कई प्रदेशों के दुधारू मवेशियों में लंपी स्किन डिजीज फैली हुई है।

लंपी स्किन बीमारी मूल रूप से अफ्रीका में शुरू हुई और अफ्रीका के कई देशों में है. बताया जाता है कि 1929 में इस बीमारी की शुरुआत जाम्बिया देश में हुई थी, जहाँ से यह दक्षिण अफ्रीका में फैल गई। 21वीं सदी के दूसरे दशक की शुरूआत से ही यह बीमारी तेजी से फैल रही है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो 2019 में बांग्लादेश और चीन में तेजी से फैली, इसके बाद 2020 में नेपाल और भूटान में देखने को मिली और 2021 के अंतिम महीनों में भारत में लक्षण देखे जाने लगे और जुलाई 2022 से अब तक हजारों की संख्या में गाय मर चुकी हैं और लाखों प्रभावित हो चुकी हैं, हालांकि इनमें से हजारों की संख्या में ठीक भी हुई हैं।

पशुधन अधिकारी मवेशी पालकों को सलाह देते हैं कि वे मवेशियों के आसपास गंदगी न फैलने दें, मच्छर, मक्खियों, कीटों से मवेशियों को दूर रखें, कोई मवेशी जब लंपी वायरस से प्रभावित हो जाए तो उसे तुरंत अन्य मवेशियों से दूर कर दें और इलाज कराएं।

भारत के लिए पवित्र और करोड़ों ग्रामीणों का भरण-पोषण करने व दूध देने वाली गाय आज अपने जीवन के लिए इंसानों पर निर्भर हो चुकी हैं। ऐसे में भारत के पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम को तेजी लाते हुए बहुत जल्द ऐसे कदम उठाने होंगे, जिससे विभिन्न राज्यों में लम्पी वायरस से प्रभावित गायों का आसानी से, समय रहते और मुफ्त इलाज किया जा सके। हालांकि विभिन्न राज्य सरकारों ने टीकाकरण अभियान चलाया हुआ है। इसके अलावा पशु चिकित्सा विभाग ग्रसित मवेशियों का इलाज भी कर रही है, लेकिन सीमित संसाधनों और सीमित कर्मचारियों की संख्या के कारण ग्रसित मवेशियों तक पहुंच कम है, साथ ही कुछ सामज सेवी ऐसे भी हैं, जो ग्रसित मवेशियों के इलाज में हर तरह की मदद कर रहे हैं। कोविड-19 के आने पर जिस तरह से भारत ने मुस्तेदी से काम किया, उसी तरह से मवेशियों के लिए भी टीकाकरण में भी तेजी लानी होगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्र की मुख्य पहचानों में से एक पहचान पशुपालन भी है। कई परिवार गाय, भेंस, बकरी, ऊंट पालते हैं एवं उनसे मिलने वाले दूध को बेचकर घर चलाते हैं। कई परिवार अंडा एवं मांसाहार के लिए भेड़, बकरी, मछली, मुर्गी, बत्तख आदि का पालन करते हैं। कई जातियाँ परम्परागत रूप से इस कार्य से जुड़े हैं एवं परिवार का भरण-पोषण करते हैं। पशुधन ग्रामीण आर्थिक विकास में खासा महत्वपूर्ण स्थान रखता है। दक्षिण भारत में मछली पालन के लिए सरकार प्रोत्साहन देती है। उत्तर भारत में ऐसे ग्रामीण, जो मुर्गी अथवा मछली पालन करना चाहते हैं, उनके लिए सरकार ने कई प्रकार से प्रोत्साहन नीतियां बनाई हैं। ये सब कार्य इसलिए ही किए जा रहे हैं, क्योंकि सरकार ग्रामीण विकास के विभिन्न उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करती है। लंपी वायरस ने ग्रामीण विकास के लिए सरकार के सामने चुनौती प्रस्तुत की है। इस लंपी वायरस ने हजारों मवेशियों को निगल लिया है। लेकिन अब और नुकसान नहीं उठाया जा सकता। राज्य सरकारों को पशुधन अथवा पशु चिकित्सा विभाग के अलावा अन्य विभागों का साथ चाहिए हो तो देरी नहीं करनी चाहिए, ताकि आने वाले समय में लंपी वायरस को रोका ही न जाए अपितु, जड़ से खत्म कर दिया जाए। सरकार चाहे तो इसके लिए निजी संसाधनों का भी उपयोग कर सकती है, बस उद्देश्य लंपी स्किन रोग को खत्म करने का होना चाहिए।

मंगलवार, सितंबर 13, 2022

भारत में अमेज़न ऑनलाइन शौपिंग साईट क्यों है नंबर वन

भारत में अमेज़न ऑनलाइन शौपिंग साईट नंबर वन यूं ही नहीं बनी, बल्कि कुछ कारण हैं. 

हाल ही में मैंने अमेज़न से 8 पेन का सेट खरीदा । उसमें पेन के साथ एक रिफिल कंपनी फ्री दे रही थी. ऐसे में 8 पेन के साथ मुझे 8 रिफिल भी मिलनी चाहिए थी. लेकिन यहाँ सेलर ने कर दिया गड़बड़. 

जब ये सामान मेरे घर आया तो मैंने इसे खोला और देखा कि पेन वही है, लेकिन ये फ्री रिफिल वाला ऑफर  वाला सेट नहीं है । मुझे 8 रिफिल नहीं मिली, जोकि मिलनी चाहिए थी. बाज़ार में उस रिफिल कि कीमत 20 से 25 रूपए है, ऐसे में मुझे लगभग 160 से  200 रूपए के बीच का सीधा नुक्सान हुआ. 

मैंने अमेज़न पर इसे रिप्लेस/रिटर्न के लिए निवेदन (रिक्वेस्ट) कर दिया. 

अब बात आती है अमेज़न की. भारत में शायद ही ऐसी सर्विस होगी कि कम्पनी खुद ग्राहक को कॉल करे. लेकिन अमेज़न ऐसा ही करती है. "टोक टू अस" पर मैंने कॉल के लिए नंबर टाइप किया और क्लिक कर दिया, क्लिक करते हैं कॉल आ गया. 

मैंने 8 पेन के साथ 8 रिफिल न मिलने की बात कही. कस्टमर केयर एग्जीक्यूटिव ने तुरंत ही रिप्लेस किया और रिटर्न का आदेश कर दिया. 

इतना ही नहीं, मैंने शिकायत भी कर दी, कि इस पेन बेचने वाले सेलर के इस उत्पाद (प्रोडक्ट) को अमेज़न पर बेचने से रोक लगा दी जाए, ताकि कोई और ग्राहक को परेशानी न हो. मेरी इस शिकायत को आगे बढ़ाया (फॉरवर्ड) गया. 

फिर क्या था, कुछ दिन बाद अर्थात आज 12 सितम्बर को उस प्रोडक्ट को अमेज़न पर बेचने से रोक दिया गया. (फोटो में आप देख सकते हैं) ताकि और ग्राहकों को परेशानी का सामना न करना पड़े. 

अमेज़न का भारत में ऑनलाइन शौपिंग में नंबर 1 पर रहने का ऐसे ही कई कारण हैं. करोड़ों की खरीद यूं ही नहीं होती इस वेबसाइट से. 

भारत में भारतीय ऑनलाइन शौपिंग साईट भी हैं, जो टक्कर देना चाहती हैं, लेकिन अमेज़न को टक्कर देने के लिए उन्हें कड़े निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करना होगा. ग्राहक को सर आँखों पर बैठाना होगा, नहीं तो अमेज़न को टक्कर देना सपना ही रहेगा.