सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

सोमवार, अक्तूबर 20, 2008

राष्ट्रपति का कुत्ता और हिंदुस्तान :वो एक कदम

कभी किसी देश के राष्ट्रपति का कुत्ता गाँधी जी की समाधि को सूंघता है तो कभी कोई विदेशी निवेशक भारत की खिल्ली उड़ाता हुआ कहता है कि जब रतन टाटा भारतीय मूल के होने के बावजूद प. बंगाल में सफल नहीं हो सकते तो अमेरिकी निवेशक सफल होने कि कैसे उम्मीद कर सकतें हैं।

है तो आख़िर कमाल कि बात कि घर में घुस कर कोई कुत्ता अपने देश के प्रमुख कि रक्षा के लिए हमारे राष्ट्र पिता कि समाधि को सूंघता है और हम कुछ नहीं कर पाते। वो तो अच्छा हुआ कि उस कुत्ते को सुसु नहीं लगी नहीं तो जहाँ उन मानिये श्री कुत्ते जी ने सूंघा है उस जगह को टांग उठा कर गीला करने में देर भी नहीं लगती।

क्या हम उन्हें घूमने के लिए अपनी सुरक्षा के अंतर्गत उन्हें सिक्योरिटी नहीं दे सकते थे ? क्या हमारे सुरक्षा कर्मी उनकी सुरक्षा करने के लायक नहीं थे। कभी-कभी तो ये लगता है कि जैसे हम अमेरिका के पिछलग्गू हैं। इसीलिए तो हम असली हिन्दुस्तानी कहलाते हैं।

अब तो अमेरिकी निवेशक भी खिल्ली उड़ाकर कह देते हैं कि जब भारतीय मूल के निवेशक को इतना सताया जा रहा है तो हमें तो हम क्या सफल होंगे।
पहली बात तो हमे अच्छी तरह मालूम हैं कि उनके निवेश करने का यहाँ क्या प्रयोजन होता है। जितने ये लोग पैदा करे और हम अपने देश में ले जाए चाहे वो आर्थिक हो या फ़िर उत्पादित।
हम इतने ढीट क्यों होते जा रहे हैं। अब हमे इसके खिलाफ भी कदम उठाना होगा ताकि हमारे देश कि कोई युही हँसी न उड़ा पाए ।

शनिवार, अक्तूबर 18, 2008

सांड की जगह भालू क्या करेगा चालू

पहले था सांड अब भालू हावी हो गया है. हो भी क्यों न ? अब स्टॉक एक्स्चेंज का सांड भी तो गधे की तरह लगा रहता है। इसलिए स्वाभाविक हैं की सेंसेक्स तो चढेगा ही। पैसा ही पैसा. लेकिन ये कैसे हुआ की सांड की जगह भालू स्टॉक एक्सचेज कंपनियों की छाती पर चढ़ आया ? सांड और गधे में फर्क नहीं और तो और मुझे अब इस व्यस्त दुनिया मैं आदमी भी गधे की तरह ही नजर आ रहा है। कैसे ? आदमी जब तक ऑफिस में रहता है तब तक गधों की तरह काम करता रहता है। जैसे ही घर पर पहुचता है बीवी बाज़ार से समान लेने की लिस्ट पकड़ा देती है तो बिचारा वो सामान गधों की तरह अपने ऊपर रखकर लाता है. और यदि बच्चे हों तो एक-एक करके उसे गधा बनाकर उसकी पीठ पर चढ़कर खेलते रहते हैं। बेचारा वो गधा ओह्ह ! माफ़ कीजिये वो व्यक्ति गधा ही बनकर रह जाता है। यदि वो पत्नी के अलावा कोई दूसरी महिला पर नजर डाले तो पुब्लिक उसे गधे की तरह मारती है और बाद में गधे पर बैठा कर मुँह काला कर देती है।

हम बात कर रहे थे सांड और भालू की। मंदी की ऐसे स्थिति आ चुकी है कि बेचारा सांड टिके भी कहा तक। ऐसे में भालू को तो हावी होना ही था। अब तो हर तरफ़ भालू ही भालू है। संकट जो है। जहाँ भी देखो मूंह फाड़ के ही नज़र आता है। ऐसे में तो उसे देखकर अच्छे अच्छों कि नस्ल बदलती जा रही है। यहाँ तो फिर भी इंसान कि ही बात है। जो किसी कि इज्जत लूटने के लिए भेड़िया बन जाता है। झूंठी तरक्की पाने के लिए कुत्ता बन जाता है। और जब मनी इन्वेस्ट करने की बार आती है तो भेड़। जब कोई बन्दा कोई साहसी काम करता है तो लोग उसे शेर बोल देते हैं घोम घाम कर बात जानवर पर ही आकर रुक जाती है। अब मैं भी सी पर चिंतन करने में लगा हूँ की आख़िर मनुष्य और जानवर को इतना घनिष्ठ क्यों माना जा रहा है।

आप सोच रहे होंगे की ये गधा भालू और सांड के चक्कर में न जाने कहा की बात किए जा रहा है.

शनिवार, अक्तूबर 11, 2008

मैं भी था तीसरे कदम में -- शहीद जवानी

११ अगस्त आया और चला भी गया पर ये किसी को भी पता नही चल पाया कि इस दिन वो शहीद हो गया था जिसने अभी जवानी में कदम ही रखा था। और जिसकी शहादत के ३९ साल बाद स्वतंत्रता का सूर्योदय हुआ। जी हाँ खुदीराम बॉस जिसे ११ अगस्त १९०८ को फांसी पर चढा दिया गया । वे १८ वर्ष १८ महीने और १८ दिन कि उमर में फांशी चढ़ गए। उनके हांथों में उस समय पवित्र गीता थी और चहरे पर मुस्कान। जब हम गाँधी जी को भूल गए तो ये खुदीराम बॉस क्या चीस है। इसे भी भूलना लाज़मी है। क्यों ? क्यों नही ?........ देश का प्रसिद्ध गाना नही सुना आपने "छोड़ो कल कि बातें कल कि बात पुरानी .........." । ऐसे में हम उन्हें भूल गए तो क्या। शायद यही कारण है कि हमें आए दिन बम धमाकों से जूझना पड़ता है। खुदीराम बॉस ने किसी स्वतंत्रता सेनानी से कम काम नही किया। जवानी कि प्रथम अवस्था में फांसी पर चढ़ जाना सबके बस की बात नही। इनका जन्म ३ दिसम्बर १८८९ बंगाल के मेदिनीपुर जिले के म्होबानी गाँव में हुआ था। खुदीराम १६ अक्टूबर १९०५ में बंगाल विभाजन हुआ तब ये अरविन्द घोस , बारिन घोष के क्रांतिकारी संघठन "युगांतर" में शामिल हो गया। १६ साल की काछी उम्र में ही बेखोफ होकर अंग्रेजों के खिलाफ देश प्रेम के लिए पर्चे बाटने में कोई उनका सानी नही था। फरवरी १९०६ की घटना है. मेदनीपुर में अंग्रेजों ने प्रदर्शनी लगाई। ताकि लोग समझे की ये अंग्रेज हम लोगों के लिए कितना काम कर रहे हैं। यहाँ शेड कपडों में गुप्तचर भी मोजूद थे। भीड़ होने के बावजूद खुदीराम वहां पहुच गए और कुछ पर्चेडी "सोनार बांग्ला" शीर्षक से बाटने लगे इसमे अंत में लिखा था - "वंदे मातरम ..."। इससे अंग्रेजों की हिप्पी-सिप्पी गुल हो गई। ये वहां से तुंरत नो दो ग्यारह हो गए। कलकत्ता प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किन्ग्फोर्ड उन दिनों काफी कुख्यात था। उसने क्रांतिकारियों के खिलाफ कई कड़े फेसले दिए। यहाँ तक की एक युवक सुशील सेन को तो अदालत की अवमानना का आरोप लगाकर कोड मरने की सजा भी दे दी। इस पर युगांतर ने किंग्स्फोर्ड को मृत्यु दंड तय कर दिया। तभी औंग्रेजों ने उसे मुजफ्फरपुर का मजिस्ट्रेट बनाकर बिहार भेज दिया। युगांतर के फेसले पर अमल की जिम्मेदारी खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी को सोपी गई। दोनों तुंरत बम को बिहार ले गए। बोस और चाकी ने मुजफ्फरपुर में कुछ दिनों तक किंग्सफोर्ड की दिनचर्या जानी। फिर क्या ३० अप्रेल १९०८ को यूनियन क्लब के गेट पर वे एक ख़ास वाहन का इंतजार कर रहे थे। वह वाहन नजर आते ही उन्होंने उस पर बम फेके। किंग्सफोर्ड की तकदीर अच्छी थी की उस गाड़ी में वह नही था। उसमे बेरिस्टर प्रिंगल केनेडी की पत्नी ,देती और नोकर थे। तीनो मरे गए। पुलिस का व्यापक बंदोबस्त तो ऐसे स्थानों पर रहता ही त५ह। तुरत वे बोस और चाकी को पकड़ने दोड । समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर घिर जाने से चाकी ने स्वयं जान न्योछावर कर दी। खुदीराम पकड़े गए। दो महीने सुनवाई चली और उन्हें सजा-ऐ-मौत सुना दी गई। आख़िर ११ अगस्त १९०८ का वह दिन भी आया, जब १८ वर्ष १८ महीने और १८ दिन की उम्र में खुदीराम फांसी के फंदे पर चढ़ गए।

रविवार, अक्तूबर 05, 2008

श्रमदान या शादी का कदम - राहुल गाँधी


अब राहुल जी ने तसला भी उठा लिया । अच्छी बात है कामयाबी को जल्दी छुएंगे । भई मेहनत का फल तो मीठा होता ही है।
सुना है कि राहुल गाँधी ने राजस्थान के बरन जिले के पिंजरा गाँव में श्रमदान किया है।
मेरी एक महिला मित्र हैं। जिनती वो प्यारी और भोली है उतनी ही चकड़ भी। अब आज वो मुझसे लड़ पड़ी बात सिर्फ़ ये थी कि वो मानती है राहुल जी कि मेहनत गरीबो के दर्द को जानना नही है बल्कि उनका उद्देश्य कुछ और है।
मैंने झट से कहा फिर क्या राजनीति वो बोली तुम तो पूरे........ ।

मैंने खीज कर कहा तुम ही बताओ?
समझाने लगी - एक तो वो कुंवारे हैं। उनके पूरे देश में घूमने का एक-आध उद्देश्य नही कुछ और भी है। वो राजनीति प्रबल और जिन्दगी सुखद बनाने कि मस्श्कत्त में लगे हैं। लोगों का सवाल होता है कि आप (राहुल जी ) शादी कब कर रहे हैं? तो वे कहते हैं मोका आने पर बताऊंगा क्यों नहीं बताते ? असल बात ये है, कि वे अभी ओपसन ही ढूँढ रहे हैं। ख़बर तो ये भी है कि वो वहाँ गाँव कि महिलाओं से भी मिले।
मैंने कहा ये सरासर ग़लत है। और दूसरी बात तुमने उनके श्रमदान को शादी से क्यों जोड़ा ? श्रमदान और शादी का आपस में क्या सम्बन्ध ? वो गुस्से में "तुम" कि जगह "तू" करके बोली अबे तू कभी पत्रकार नहीं बन सकता। मुझे धोड़ा अटपटा लगा। उसने इसके लिए एक अजीब ही तर्क दिया।
कांग्रेस के महासचिव युवराज इसलिए फावड़ा नहीं चला रहे हैं कि वो गरीबो का दर्द समझ सके या इसलिए तसला नहीं उठा रहे कि वो राजनीति है। बल्कि इसलिए ताकि यदि भविष्य में कभी भगवान् न करे कि वो राजनीति में असफल हो जाए तो अपनी धर्मपत्नी का पेट फावड़ा चलाकर और तशला उठाकर तो भर ही सकें।
मैंने उसका घोर विरोध किया। लेकिन ये उसका विचार था जो में बदल भी नहीं सकता।
खेर देखना अब ये है कि युवराज अपनी जीवन संघ्नी का नाम कब बतायेंगे और उनका अगला कदम क्या होगा.....

शनिवार, अक्तूबर 04, 2008

शेयर, सोना और देवरानी : प. पुराणिक (२)

अब कोई शादी में जाएगा तो शेयरधारी अपनी बीवी को शेयर का सर्तिफिकैत तो गले में पहनायेगा नहीं। इसके लिए तो सोने का हार है। पर एक तरफ़ माँ बिजनेस के पुजारी प. पुराणिक जी कहते हैं की साब सोने में इन्वेस्ट करना बेवकूफी है। अब बेवकूफी नही की तो अर्धांगनी अपनी जेधानी से हार जायेगी । बेचारे पति को तो पंडित जी ने दोनों तरफ़ से फंसा दिया। अर्धांगनी हार न जाए इसलिए "हार" चाहिए। पंडित कहते हैं की सोने की वेल्यु वेसे की वेसे ही बनी हुए है। सोने में इन्वेस्ट बेकार। अर्धांगनी जेधानी से पीछे नहीं रहना चाहती। करें क्या ?? खरीदा क्या जाए ? शेयर या सोना ? पैसे सीमित हैं। सोने की वेल्यू बढ़ नहीं रही। शेयर खरीदा तो बीवी गुलाबी गाल फुला लेगी।
मैंने सुझाव दिया क्यों न बिजनेस मैया का चालीसा पढ़ा जाए। उन्होंने पढ़ा भी, लाभ भी हुआ। जनाब ने हार जेधानी को हराने के लिए तो नहीं लेकिन पूरी-पूरी टक्कर लेने के लिए खरीदवा दिया। बाकि पैसे इन्वेस्ट.....
लेकिन कहते हैं इनवेस्टमेंट इज दा सब्जेक्ट ऑफ़ मार्केट रिस्क , बिचारे क्या करते.... जेसे-तेसे जेधानी को जलाने के लिए लिया गया वो हार गरबा करते समय गिर गया।
उनका किया गया इन्वेस्ट "इन-वेस्ट " हो गया ।
खेर आज में आपको उन पति महोदय के यहाँ निमंत्रित करता हूँ। आज साम उनका हर्ट अटैक से .........
अब उनके कदम ईश्वर की तरफ़ जा रहे हैं.........

शुक्रवार, अक्तूबर 03, 2008

नव रात्रे में "बिजनेस माँ"- पंडित पुराणिक

देश भर में नवरात्रे के दिन लोग दुर्गा माँ की आराधना कर रहे हैं। लेकिन आजकल एक नई देवी का अवतरण हुआ है। माँ बिजिनेस देवी का।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में आज बिजिनेस पंडित प. आलोक पौराणिक ने छात्रों को जीवन बरकरारनी माँ बिजिनेस का न केवल पाठ पढाया बल्कि ये भी एहसास कराया की इनके आशीर्वाद की हमारे जीवन में कितनी जरूरत है।
अब मेरी समझ में काफी कुछ आ गया है.
जैसे नवरात्रे में गरबा होता है, वैसे ही बिजिनेस में भी गरवा होता है। उदाहरण आप ले कसते हैं - लेमन ब्रदर की कंपनी का।
पहले गरबे में कृष्ण भगवान् गोपियों को नचाते थे फिर गोपिया कृष्ण जी को। वैसे ही लेमन ब्रदर्स दूसरे बैंको को नाचते थे अब दूसरे बैंको ने लेमन ब्रदर्स को नचा दिया.....

लेकिन ऐसे में किया क्या जाए??? अजी मुसीबत आने पर आप क्या करते हैं?? जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस त्रिलोक ..... । बस यही तो करना है... यानि.......???? ००००० बिल्कुल सही बिजिनेस चालीसा

बिजिनेस धर्म के प्रकांड पंडित प. पौराणिक ने बिजिनेस की चालीसा को बताया। कहा बिजिनेस पत्रकार बनना है तो इसे रट लो।
हो भी क्यों न...
हालंकि बिजिनेस मैया को भी चढावा चढाया जाता है। तभी रिटर्न अच्छा मिलता है। और चालीसा पढ़ ली तो बात ही क्या।
बिजिनेस माँ , लक्ष्मी माँ का ही एक रीसेंट अवतार है।

लक्ष्मी माँ के दर्शन मन्दिर में होते हैं। लेकिन बिजिनेस मैया के दर्शन या तो अखबार..टीवी ..या फिर कंप्यूटर में ही मुनासिब है।
यदि आप इसके बावजूद मैया के दर्शन से वंचित है तो कोई बात नही। मैया के कई भक्त आप को फ़ोन करके स्टॉक मार्केट में या लोन लेने की सॉरी चढावे की जिद ऊहू... मेरा मतलब मांग करेंगे।
अब आपको भी जल्द ही बिजिनेस के दर्शन होने वाले हैं। अगर बिजिनेस मैया को और समझना है तो पंडित जी से भी संपर्क कर सकते हैं।

ख़बर- बिजिनेस के नव रात्रे में कन्या कब खिलाये --- कल बतायेंगे.

गुरुवार, अक्तूबर 02, 2008

वो गजल का कदम

आज एक अखबर में क्या खूब गजल आई जिससे मैं बहुत प्रभावित हुआ।

हर सिम्त से आती सदा - ईद मुबारक
चलती हुए कहती है हवा - ईद मुबारक।

मन्दिर के कलश ने कहा हंसकर मीनार से
कौन करे हमको जुदा - ईद मुबारक।

आज सुबह आरती अजान से मिली
परमात्मा कहता है खुदा से - ईद मुबारक।

रमजान की पाकीजगी सावन से कम नही
लीजिये सावन की दुआ - ईद मुबारक ।

दीपावली पे खान ने दी मुझको बधाई
"mohan" ने कहा शीश झुका - ईद मुबारक।।