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बुधवार, फ़रवरी 06, 2013

गरीब है तो क्या इसके लिए कोई आंदोलन नहीं? क्या आन्दोलन सिर्फ अमीर के लिए?

कहाँ से शुरू करू, दिल्ली के गैंग रेप से या हाल ही में सीतापुर में गरीब मजदूर की बेटी के साथ हुए गैंग रेप से?
6 फ़रवरी 2013 को अमर उजाला कानपुर-फतेहपुर
संस्करण में पेज 9 पर प्रकाशित खबर का क्लिप 
आज 6 फ़रवरी 2013 को अमर उजाल कानपूर-फतेहपुर  संस्करण (पेज 9) पर एक गैंग रेप की खबर प्रकाशित हुयी. चूँकि गरीब मजदूर की नाबालिग बेटी थी तो उसे छोटी सी दो कोलम जगह मिल पायी.
दोस्तों ये खबर भी प्रत्येक अखबार की लीड बनती अगर---गरीब/मजदूर/दलित/भिखारी/असहाय/कमजोर/ग्रामीण होती :-(
खेर जो है नहीं उसकी बात क्या करनी.

अगर बात ही करनी है तो दोहरी विचार धारा के लोगों के बारे में की जानी चाहिए. प्रेस और मीडिया के सौतेलेपन के बारे में करनी चाहिए. सरकार कि दोहरी नीति के बारे में करनी चाहिए. सच ही कहा है,
"जब समाज के लोग ही दोहरे विचार के हों, तो उन्हें सरकार, मीडिया, प्रेस, धर्म, आतंक भी दोहरेपन का मिलेगा."
16 दिसंबर की रात हुए हादसे में आंदोलन सिर्फ इस घटना पर हुआ... फिर ध्यान से पढ़िए कि इस गैंग रेप के बाद भी कई गैंग रेप हुए पर आंदोलन सिर्फ इस गैंग रेप के खिलाफ हुआ.
क्यों? बाकी क्या नाबालिग लड़किया इन आन्दोलनकारियों को "लड़कियां" नहीं लगी? या इन लड़कियों की सहायता से कुछ मिलने वाला नहीं था?
एक पीड़ित लड़की के लिए कुछ और दूसरी (गरीब/बेसहारा/दलित/मजदूर) पीड़ित लड़की के लिए कुछ और...

इसलिए एक के लिए इतना बडा आन्दोलन और दूसरी के लिए अखबार में भी जगह नहीं. खबर को इतना दबोच कर लिखा जाए के उसका दम घुटने लगे...
बड़ा दुःख होता है ये जानकर के हमारे देश के लोग दोहरी नीति के हैं.

जिस वक्त ये घटना घटी मिडिया और प्रेस को भी मसाला मिल गया और TRP बटोरने के लिए अलग अलग तरीके से इसी खबर को पेश किया गया.
लोग भी कम नहीं आन्दोलन में किसी ने आन्दोलन की आरती बना डाली तो किसी ने इस घटना पर गाने बनाए तो किसी ने गिटार, तबले बजाये. मेरा एक प्रश्न है के भाई दुखद आन्दोलन में गिटार और तबले का क्या काम?

मेरा मानना है, आन्दोलन का मकसद, पीडिता को इन्साफ दिलाना कम, उस घटना से अपना फायदा निकालना ज्यादा था. सामाजिक NGO's अचानक दिल्ली में नजर आने लगे थे... और कमाल की बात तो ये हैं की NGO's  को केवल दिल्ली का बलात्कार मामला दिखा. उसी महीने में हुए मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और खुद दिल्ली में अन्य बलात्कार की घटनाओं पर कोई टिप्पणी नहीं की.

  • सीन एक - दिल्ली में बलात्कार की घटना घटी.....मीडिया ने दिखाया, प्रेस ने फ्रंट पेज पर प्रकाशित किया, राजनेता बोले, सामाजिक कार्यकर्ता चीखे, जनता चिल्लाई.
  • सीन दो-  मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और खुद दिल्ली में उसी समय (दिसम्बर-जनवरी) बलात्कार की घटनाएं घटी पर, ...... मीडिया ने नहीं  दिखाया, प्रेस ने फ्रंट पेज पर प्रकाशित नहीं  किया, राजनेता नहीं  बोले, सामाजिक कार्यकर्ता नहीं  चीखे, जनता नहीं  चिल्लाई.
ऐसा क्यों हुआ, ये लोग ही जाने.

मुझे इस देश के लोगों का हिसाब कुछ समझ नहीं आता. आन्दोलन हुआ ठीक है, पीड़िता का नाम भी रख दिया, "दामिनी". नाम तो रखा वो तो ठीक है, लेकिन सिर्फ इसी लड़की को आप इस नाम से बुला सकते हो और अगर किसी अन्य बलात्कार पीड़ित को नहीं???? क्या उन्हें इन्साफ नहीं मिलना चाहिए? क्या उनके साथ किये कुकर्म के आरोपियों को सजा नहीं मिलनी चाहिए? क्या उन्हें देश की जनता का साथ नहीं चाहिए? क्या अजीब हैं लोग भी.
क्या आपने कभी सोचा है कि उपरोक्त घटना जब दबे/कुचले/गरीब/असहायों के साथ घटती है तो क्यों तवज्जो नहीं दी जाती. क्योंकि वो काम अंजाम दिया जाता है जिसमे व्यक्तिगत लाभ मिले. बस.
अगर व्यक्तिगत लाभ नहीं मिलता तो काम को अंजाम भी नहीं दिया जाता.

अब इस नई घटना के लिए कौन आगे आएगा?
कल (5 feb 2013) फिर गैंग रेप की घटना सीतापुर में हुयी. अब आप मुझे बताइए कि इस घटना के लिए क्या वो सभी लोग आगे आएँगे, जो दिल्ली में डेरा जामाये बैठे थे दामिनी के लिए इन्साफ मांगने के लिए? क्या दिल्ली की तरह सीतापुर में भी सामजिक NGO's नजर आयेंगे? क्या यहाँ भी तबले और गिटार बजेंगे? क्या यहाँ भी इस गरीब/दलित/असहाय/लाचार/मजदूर के लिए भी गाना लिखा जाएगा? 
क्या इसे भी "दामिनी" बोला जाएगा?????????????????????


सवाल मेरा और जवाब आपका.



सम्बंधित खबरें- http://teesrakadam.blogspot.in/2013/11/blog-post.html

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