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गुरुवार, फ़रवरी 14, 2013

यूपी विधान सभा में हंगामा हुआ तो क्या गलत हुआ?

सौजन्य- गूगल 
14 feb 2013
उत्‍तर प्रदेश विधानसभा में बजट सत्र शुरू होना था, सपा ने सोचा होगा कि उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर जो 37 श्रद्धालुओं की मौतें हुयी हैं, उस पर कोई कुछ नहीं बोलेगा.
बस यहीं पर सपा सरकार गच्चा खा गयी. पहले ही दिन बहुजन समाज पार्टी ने तेवर दिखा ये सन्देश दे दिया कि कुम्भ में 37 लोगो के गुद-गुदी नहीं की गयी बल्कि उनकी मौतें हुयी हैं, जिसकी जिम्मेदारी लेनी ही होगी और पूरी जांच करनी होगी, वो भी निष्पक्ष.

बसपा सदस्यों ने अपनी पार्टी के रंग की नीली टोपी पहन ली और बैनर लेकर हंगामा करने लगे। टोपी और बैनर पर 'प्रदेश में विकास ठप है, अखिलेश सरकार पस्त है', 'सरकार चलाना खेल नहीं, आपस में है मेल नहीं यूपी', 'केंद्र का देखो खेल, जनता मरती क्यों टाल मटोल' जैसे नारे लिखे थे.
हंगाम इतना हुआ के सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी, उस वक्त मुख्यमंत्री शांत थे, लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही नहीं. लेकिन अगर ध्यान दिया जाए तो हुआ बहुत कुछ है.
और जो बहुत कुछ हुआ उसका सारांश विरोधी दल स्वामी प्रसाद मौर्य ने पत्रकारों से सदन स्थगन के बाद कह भी दिया. उन्होंने कहा कि सरकार हर मोर्चे पर असफल है। कुंभ में एक हजार करोड़ रुपए से अधिक राशि खर्च कर दी गई लेकिन श्रद्धालुओं की सुरक्षा के आवश्यक इंतजाम नहीं किए गए और इसी बदइंतजामी की वजह से श्रद्धालुओं की जान चली गई।
उन्होंने कहा कि कुंभ की घटना मामूली नहीं है, इसके लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इस्तीफा देना चाहिए। विधानपरिषद में नेता विपक्ष नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि सरकार ने चीनी मिल मालिकों से मिलकर गन्ना किसानों का उत्पीड़न किया। शोषण हर ओर हो रहा और सरकार फेल हो गई है

"न करें राजनीति" 
मैंने जब मुख्यमंत्री के ब्यान सुने तो मुझे बड़ा अटपटा लगा...बोले कुम्भ हादसे में किसी को कोई राजनीति नहीं करनी चाहिए.... असल में उनका कहने का मतलब ये था कि कोई भी कुम्भ हादसे के बारे में बाते न की जाएँ और इस बात को जल्दी से दबा दिया जाए.... वो तो अच्छा हुआ के मीडिया से ये नहीं कहा के भाई अब तुम कुम्भ के मरने वालो से सम्बंधित खबरे भी मत छापो.

क्यों न हो हंगामा 
चौथा दिन है आज. कोई सच सामने नहीं आ सका. सब ढोल पोल चल रहा है, अभी साक्ष्य कहाँ है, किसी को नहीं पता. और न ही कोई इन्हें खोजने निकला है. अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं. फुर्सत ही नहीं घटना की सच्चाई पता लगाने को.  अधिकारी एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं. सरकार ने तेजी से जांच कराकर कार्रवाई का ऐलान किया था. सुनने में आया है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के निर्देश पर जांच की जिम्मेदारी राजस्व परिषद के अध्यक्ष जगन मैथ्यूज को दी गई है. देखते हैं क्या निकल के आता है.

जिन्होंने हादसा होते देखा वो तो वापस चले गए 
सोचिये, जिन्होंने हादसा देखा उनमे ज्यादातर लोग या तो वापस चले गए, या घटना स्थल की सच्चाई बदलने लगी, या फिर सबूत मिटा दिए गए. कहा से पता चलेगा सच्चाई का? रही बात स्टेशन पर लगे सीसीटीवी कैमरों की तो उसकी रिकॉर्डिंग में भी फेरबदल कर दिया हो पिछले तीन दिनों में तो कोई बड़ी बात नहीं.

इस पर भी पड़ा है पर्दा 
कुम्भ प्रबंधन में एक बात और समझ से परे है कि सिविल लाइंस स्थित नवाब यूसुफ रोड से स्टेशन परिसर में प्रवेश प्रतिबंधित था, फिर भी, स्नानार्थी बड़ी संख्या में सिविल लाइंस साइड से प्लेटफार्मों पर पहुंच गए. अगर प्रतिबंधित था तो लोग कैसे पहुचे, पुलिस या व्यस्थाकर्मियों ने उन्हें रोका क्यों नहीं? महाकुंभ मेला की तैयारियां शुरू होते ही रेलवे ने साफ कर दिया था कि नवाब यूसुफ रोड से मेला की भीड़ जंक्शन के प्लेटफार्मों पर नहीं जाएगी. स्मिथ रोड से भी नियमित ट्रेनों के यात्री आएंगे-जाएंगे. इसी के मुताबिक सिविल लाइंस साइड में दो फुटओवर ब्रिजों को बंद कर दिया गया.
अगर इजाजत दी गयी तो किसने दी, ये भी किसी को नहीं पता?
बस ये सबको पता है कि हादसा हो गया.

आजम खां ने न्यूज चैनल्स को जिम्मेदार ठहराया 
कुम्भ में लोगों की जान चली गयी और उत्तर प्रदेश के शहरी विकास मंत्री आजम खां गंभीरता को समझने को राजी तक नहीं. कह दिया कि इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ के बाद मची अफरातफरी के लिए न्यूज चैनल जिम्मेदार हैं.
संवाददताओं से बातचीत में उन्होंने कहा है कि मौनी अमावस्या के दिन नाले में गिरने से दो लोगों की मौत हो गई। चैनलों ने इसे ब्रेकिंग न्यूज की तरह दिखाया और बताया कि मेले में भगदड़ मचने से दो लोगों की मौत हो गई. उन्होंने कहा कि इस खबर के बाद श्रद्वालु मेले से बाहर निकलने लगे और रेलवे स्टेशन पर एकाएक दबाव बढ़ गया. वहां ट्रेनों की घोषणा के उचित इंतजाम नहीं थे, जिससे भ्रम की स्थिति बनी और भगदड़ मच गई.
जरा बताइये मुझे प्लेटफार्म पर कितने टीवी लगे हैं??? और कितने केवल चैनल चल रहे हैं? और उस प्लेट फार्म पर कितने लोग समाचार देख रहे थे?

सरकार क्या और हादसे चाहती है?
जो लापरवाही दिख रही है, उससे तो यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यूपी सरकार इस हादसे से कुछ सीखी नहीं है. यही कारण है कि अभी भी व्यवस्था चाक चोबंद नहीं है.
हाँ एक दिन व्यवस्था मस्त थी, जिस दिन मुख्यमंत्री अलाहाबाद आये थे.
बाद में फिर वही हाल. खैर इस बदइंतजामी से एक बात साफ़ हो गयी है, कि सरकार ने कुछ सीख नहीं ली है. आखिर सरकार क्या और हादसे चाहती है???


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