सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

मंगलवार, नवंबर 12, 2013

काश! पुनर्विवाह पर और बनें विज्ञापन


कुछ दिनों से एक विज्ञापन मुझे बेहद प्रभावित कर रहा है, इतना कि इस विज्ञापन के बारे में लिखने को मजबूर हो गया और मैं खुश भी हूँ कि शायद मैं पहला शख्स हूँ जो इस विज्ञापन की लिखित तारीफ़ कर रहा हूँगा.

मैं बात कर रहा हूँ. तनिष्क ज्वेलरी के विज्ञापन की. ये हाल ही में प्रसारित होना शुरू हुआ है.
इस विज्ञापन में वो ख़ास बात है जिस पर राज कपूर साहब पहले ही पुरजोर तरीके से "प्रेमरोग" पर काम कर चुके हैं......पुनर्विवाह.

इस विज्ञापन में अपने देखा होगा, एक महिला गहनें पहनकर सज धज रही है, इतने में एक नन्ही बालिका आती और उस महिला के साथ स्वयं सजने की बात करती है. थोड़ी देर में वे दोनों समारोह में जाते हैं, जिसमें पता चलता है कि वह महिला (जो सज रही थी) शादी कर रही है.
सभी फोटो गूगल फोटो से साभार.

फेरे लेते समय वो नन्ही बालिका उस महिला को "ममा" (माँ) कहकर बुलाती है. तभी विज्ञापन में खुलासा होता है कि महिला का पुनर्विवाह हो रहा है.


बेहद सादगी के साथ पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया. जबकि देखा ये गया है कि पैसे कमाने की होड़ और बिजिनेस के लिए कंपनी कभी सभ्यता या संस्कृति पर ध्यान नहीं देती. पर इस बार तनिष्क ने इस नजरिये को भी बदला है और धारणा को भी.

मैं व्यक्तिगत तौर पर इस कंपनी के इस तरह के विज्ञापन को प्रसारित करने की क्षमता की प्रशंसा करता हूँ... क्यूंकि जहाँ आज भी देश में पुनर्विवाह को हेय दृष्टि से देखा जाता है वह बिजिनेस को ताक पर रखकर जोखिम उठाना हर कंपनी के बस की बात नहीं होती...

तनिष्क, मैं आपकी सराहना करता हूँ.
मैं उस स्क्रिप्ट रायटर की भी तारीफ खुले मन से करता हूँ, जिसने इस कांसेप्ट को कंपनी के सामने बेझिझक रखा होगा...
बेहद सुखद और प्रेरित करने वाला विज्ञापन.



(मैं एक बात और साफ़ कर दूं, कि जीवन में मैंने तनिष्क के उत्पाद नहीं ख़रीदे.)

शुक्रवार, नवंबर 08, 2013

बॉक्स तक सीमित "गरीब" खबरें

Amar Ujala (Lucknow edition) 7 nov 13 page-11

आजकल के अखबारों को पढ़ा जाए तो समझना आसान हो जाएगा कि आखिर जमाने में किस वर्ग को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है, गरीब को या उच्च मध्य वर्ग/ अमीर को.

7 नवम्बर का अमर उजाला पढ़ा. अच्छा दैनिक समाचार पत्र है. पर मेरी नजर में इसकी उत्कृष्टा तब कम हो गयी, जब मेरी नज़र अलग अलग पेज पर एक जैसी खबरों पर गयी.
Amar Ujala (Lucknow edition) 7 nov 13 page-11
एक कोचिंग में पढने वाली यानि पैसे वाले परिवार की लड़की के साथ बदसलूकी हुयी तो तीन कॉलम खबर बना दी गयी. और वही एक गरीब दलित युवती से गैंग रेप यानी सामूहिक बालात्कार हुआ तो उस खबर को बॉक्स में फिट कर दिया गया....


ये बिल्कुल ऐसे ही है जेसे कुछ महीनों पहले हुआ था. जब दिल्ली में "निर्भया" के साथ दुराचार, हुआ तो पूरे देश का खून खोल गया और जब उसी दौरान, उसी दिल्ली में दलित का बालात्कार हुआ तो उन्हीं लोगों के खून में न जाने कौन सा बेक्टीरिया लग गया कि खून खोला ही नहीं.
लगता है अखबारों ने भी वही चलन स्वीकार कर लिया है.

एक बात तो साफ़ है, अभी दलित, पिछड़ों, गरीबों को और संघर्ष करना होगा.


सम्बंधित खबर - (http://teesrakadam.blogspot.in/2013/02/blog-post.html)

बुधवार, फरवरी 06, 2013