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शनिवार, अक्तूबर 18, 2008

सांड की जगह भालू क्या करेगा चालू

पहले था सांड अब भालू हावी हो गया है. हो भी क्यों न ? अब स्टॉक एक्स्चेंज का सांड भी तो गधे की तरह लगा रहता है। इसलिए स्वाभाविक हैं की सेंसेक्स तो चढेगा ही। पैसा ही पैसा. लेकिन ये कैसे हुआ की सांड की जगह भालू स्टॉक एक्सचेज कंपनियों की छाती पर चढ़ आया ? सांड और गधे में फर्क नहीं और तो और मुझे अब इस व्यस्त दुनिया मैं आदमी भी गधे की तरह ही नजर आ रहा है। कैसे ? आदमी जब तक ऑफिस में रहता है तब तक गधों की तरह काम करता रहता है। जैसे ही घर पर पहुचता है बीवी बाज़ार से समान लेने की लिस्ट पकड़ा देती है तो बिचारा वो सामान गधों की तरह अपने ऊपर रखकर लाता है. और यदि बच्चे हों तो एक-एक करके उसे गधा बनाकर उसकी पीठ पर चढ़कर खेलते रहते हैं। बेचारा वो गधा ओह्ह ! माफ़ कीजिये वो व्यक्ति गधा ही बनकर रह जाता है। यदि वो पत्नी के अलावा कोई दूसरी महिला पर नजर डाले तो पुब्लिक उसे गधे की तरह मारती है और बाद में गधे पर बैठा कर मुँह काला कर देती है।

हम बात कर रहे थे सांड और भालू की। मंदी की ऐसे स्थिति आ चुकी है कि बेचारा सांड टिके भी कहा तक। ऐसे में भालू को तो हावी होना ही था। अब तो हर तरफ़ भालू ही भालू है। संकट जो है। जहाँ भी देखो मूंह फाड़ के ही नज़र आता है। ऐसे में तो उसे देखकर अच्छे अच्छों कि नस्ल बदलती जा रही है। यहाँ तो फिर भी इंसान कि ही बात है। जो किसी कि इज्जत लूटने के लिए भेड़िया बन जाता है। झूंठी तरक्की पाने के लिए कुत्ता बन जाता है। और जब मनी इन्वेस्ट करने की बार आती है तो भेड़। जब कोई बन्दा कोई साहसी काम करता है तो लोग उसे शेर बोल देते हैं घोम घाम कर बात जानवर पर ही आकर रुक जाती है। अब मैं भी सी पर चिंतन करने में लगा हूँ की आख़िर मनुष्य और जानवर को इतना घनिष्ठ क्यों माना जा रहा है।

आप सोच रहे होंगे की ये गधा भालू और सांड के चक्कर में न जाने कहा की बात किए जा रहा है.

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