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शनिवार, अक्तूबर 11, 2008

मैं भी था तीसरे कदम में -- शहीद जवानी

११ अगस्त आया और चला भी गया पर ये किसी को भी पता नही चल पाया कि इस दिन वो शहीद हो गया था जिसने अभी जवानी में कदम ही रखा था। और जिसकी शहादत के ३९ साल बाद स्वतंत्रता का सूर्योदय हुआ। जी हाँ खुदीराम बॉस जिसे ११ अगस्त १९०८ को फांसी पर चढा दिया गया । वे १८ वर्ष १८ महीने और १८ दिन कि उमर में फांशी चढ़ गए। उनके हांथों में उस समय पवित्र गीता थी और चहरे पर मुस्कान। जब हम गाँधी जी को भूल गए तो ये खुदीराम बॉस क्या चीस है। इसे भी भूलना लाज़मी है। क्यों ? क्यों नही ?........ देश का प्रसिद्ध गाना नही सुना आपने "छोड़ो कल कि बातें कल कि बात पुरानी .........." । ऐसे में हम उन्हें भूल गए तो क्या। शायद यही कारण है कि हमें आए दिन बम धमाकों से जूझना पड़ता है। खुदीराम बॉस ने किसी स्वतंत्रता सेनानी से कम काम नही किया। जवानी कि प्रथम अवस्था में फांसी पर चढ़ जाना सबके बस की बात नही। इनका जन्म ३ दिसम्बर १८८९ बंगाल के मेदिनीपुर जिले के म्होबानी गाँव में हुआ था। खुदीराम १६ अक्टूबर १९०५ में बंगाल विभाजन हुआ तब ये अरविन्द घोस , बारिन घोष के क्रांतिकारी संघठन "युगांतर" में शामिल हो गया। १६ साल की काछी उम्र में ही बेखोफ होकर अंग्रेजों के खिलाफ देश प्रेम के लिए पर्चे बाटने में कोई उनका सानी नही था। फरवरी १९०६ की घटना है. मेदनीपुर में अंग्रेजों ने प्रदर्शनी लगाई। ताकि लोग समझे की ये अंग्रेज हम लोगों के लिए कितना काम कर रहे हैं। यहाँ शेड कपडों में गुप्तचर भी मोजूद थे। भीड़ होने के बावजूद खुदीराम वहां पहुच गए और कुछ पर्चेडी "सोनार बांग्ला" शीर्षक से बाटने लगे इसमे अंत में लिखा था - "वंदे मातरम ..."। इससे अंग्रेजों की हिप्पी-सिप्पी गुल हो गई। ये वहां से तुंरत नो दो ग्यारह हो गए। कलकत्ता प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किन्ग्फोर्ड उन दिनों काफी कुख्यात था। उसने क्रांतिकारियों के खिलाफ कई कड़े फेसले दिए। यहाँ तक की एक युवक सुशील सेन को तो अदालत की अवमानना का आरोप लगाकर कोड मरने की सजा भी दे दी। इस पर युगांतर ने किंग्स्फोर्ड को मृत्यु दंड तय कर दिया। तभी औंग्रेजों ने उसे मुजफ्फरपुर का मजिस्ट्रेट बनाकर बिहार भेज दिया। युगांतर के फेसले पर अमल की जिम्मेदारी खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी को सोपी गई। दोनों तुंरत बम को बिहार ले गए। बोस और चाकी ने मुजफ्फरपुर में कुछ दिनों तक किंग्सफोर्ड की दिनचर्या जानी। फिर क्या ३० अप्रेल १९०८ को यूनियन क्लब के गेट पर वे एक ख़ास वाहन का इंतजार कर रहे थे। वह वाहन नजर आते ही उन्होंने उस पर बम फेके। किंग्सफोर्ड की तकदीर अच्छी थी की उस गाड़ी में वह नही था। उसमे बेरिस्टर प्रिंगल केनेडी की पत्नी ,देती और नोकर थे। तीनो मरे गए। पुलिस का व्यापक बंदोबस्त तो ऐसे स्थानों पर रहता ही त५ह। तुरत वे बोस और चाकी को पकड़ने दोड । समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर घिर जाने से चाकी ने स्वयं जान न्योछावर कर दी। खुदीराम पकड़े गए। दो महीने सुनवाई चली और उन्हें सजा-ऐ-मौत सुना दी गई। आख़िर ११ अगस्त १९०८ का वह दिन भी आया, जब १८ वर्ष १८ महीने और १८ दिन की उम्र में खुदीराम फांसी के फंदे पर चढ़ गए।

2 टिप्‍पणियां:

sudha ने कहा…

Is varsh k liye kshama karen dost....agle varsh se ye din zarur yad rakha jayega........

Unknown ने कहा…

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