सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

गुरुवार, अक्तूबर 02, 2008

वो गजल का कदम

आज एक अखबर में क्या खूब गजल आई जिससे मैं बहुत प्रभावित हुआ।

हर सिम्त से आती सदा - ईद मुबारक
चलती हुए कहती है हवा - ईद मुबारक।

मन्दिर के कलश ने कहा हंसकर मीनार से
कौन करे हमको जुदा - ईद मुबारक।

आज सुबह आरती अजान से मिली
परमात्मा कहता है खुदा से - ईद मुबारक।

रमजान की पाकीजगी सावन से कम नही
लीजिये सावन की दुआ - ईद मुबारक ।

दीपावली पे खान ने दी मुझको बधाई
"mohan" ने कहा शीश झुका - ईद मुबारक।।

2 टिप्‍पणियां:

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

woh gazal to likhiye
thanx for visit keep visiting regularly

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

सुंदर ग़ज़ल श्रीमान मज़ा गया मुझे यह बताते हुए हर्ष है की इतावाह में मेरा बचपन ka बहुत समय बीता है कारन मेरी ननिहाल इटावा में ही है