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शुक्रवार, अगस्त 14, 2009

राखी पर भारी पड़ी फ्रेंडशिप डे बेल्ट

मेरे पास टीवी भी है। डेली लोकल (मध्य प्रदेश) और डेल्ही के अखबार भी पढता हूँ। और जहाँ तक थोड़ा बहुत याद है तो मैं एक आध पत्रिकएँ भी मंगाता हूँ ।
कमाल की बात ये है कि सभी में राखी के त्यौहार का उतना कवरेज नही हो सका जितना की पाश्चात्य के फ्रेंडशिप डे का कवरेज हुआ। मैं इसपर पहले से ही नजरे जमाये बता था और मन ही मन ये सोच रहा था की क्या भाई -बहन का प्यार फ्रेंडशिप डे पर भारी पड़ जाएगा ? वो भी इसी देश में…… जवाब मुझे ६ अगस्त राखी के त्यौहार के बाद मिल गया।
सचमुच २१वी सदी में राखी पर फ्रेंडशिप डे आखिरकार भारी पड़ ही गया। अखबारों में पत्रकारों को सिर्फ़ फ्रेंडशिप डे की खरीददारी करते हुए ही लोग दिखाई दिए। क्योंकि ये पाठक देखन भी चाहता है। लेकिन पत्रकारों को राखी खरीदते हुए लगभग-लगभग कोई दिखाई नही दिया।
टीवी तो कवरेज के मामले में और भी सुभान अल्लाह निकले। इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारों को तो राखी की दुकाने ही नही दिखाई दी। और जो एक आधी दुकाने दिखाई भी दी तो वो भी सिर्फ़ राखी के त्यौहार से मात्र एक दिन पहले।
लेकिन कमला देखिये कि इन्ही महँ पत्रकारों को फ्रेंडशिप डे पर बंधी जाने वाली बेल्ट और अन्य उपहारों की दुकाने ३६ दिन पहले ही साफ़ नजर आने लगी थी ।
आखिर कब तक हम ये झूठ का पल्लो pakadkar चलते रहेंगे जबकि सच ये है की अब भारतीय कल्चर को नै जेनरेशन अपनाना ही नही चाहती।
इसका उदाहरण वेलेनटाइन डे , फ्रेंडशिप डे, रोसे डे, में देखने को मिलता ही रहता है। अब तो बिना सदी के महारास्त्र में लोग रह बी ही सकते हैं। सी प्रावधान को कर्णाटक, upee , गुजरात, डेल्ही आदि में भी लेन की बात विचाराधीन है। और अब ये 377…
कहाँ है भारतीय कल्चर। डेल्ही में अब एक पति अपनी पत्नी को सरेआम किस कर सकता है।
हमें भारतीय कल्चर को अपने साथ घसीटना नही चाहिए या तो विदेशी कल्चर को अपनाए लेकिन उसे अपनी छाती पर नही चढाना ठीक नही। लेकिन ऐसा होगा नही क्योंकि इस देश में सबसे ज्यादा युवा रह रहे हैं और युवा फिलहाल भारतीय कल्चर को अपनाएं के मूड में नही …………

1 टिप्पणी:

Ganesh Kumar Mishra ने कहा…

wakai...hum western culture ko adopt karne ke chakkar mein apni sanskriti bhulte hi jaa rahe hain. aur ye bhi nahin hai ki hum poori tarah western hi ho gaye hon....balki beech mein hi phanse huye hain...