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शनिवार, अगस्त 15, 2009

ट्रक और ऑटो में घमासान



देश में लोग मुर्गा मुर्गी की तरह कट रहे हैं लेकिन प्रशासन को इसकी जरा भी फिक्र नही। मैं तब सन्न रह गया जब लगातार दो दिन एक जैसे घटनाएं घटी। एक 5 अगस्त और एक 6 को।
5 अगस्त को जबलपुर में एक ट्रक ने ऑटो को टक्कर मर दी। भिधंत इतनी जबरदस्त थी की ऑटो में सवार 10 लोगो को चोटें आई जिसमे 8 गंभीर थे। इसी तरह अगले दिन 6 अगस्त को रखी के एक दिन बाद ही कटनी में एक ट्रक ने ऑटो को सामने से ऐसी ठोकर मारी की दो लोगो में एक की मौके पर ही मौत हो गई एक की अस्पताल में। घटना में करीब डेढ़ दर्जन लोग घायल हो गए। ये पेज मैंने ही लगाया था।
आखिर क्या कारण है की आए दिन ट्रक ऑटो को खिलोने की तरह कुचल कर चले जाते है और कोई खास कार्यवाही नही होती। बस मरने पर मुआवजा दे दिया जाता है। बाद में सरकार या प्रशासन पल्ला झाड़ लेती है लेकिन ऐसा कोई मौका नही आता जब इन ट्रक वालों पर ठोस नकेल कसी जा सके।
मृतको के परिवा को मुआवजा देना ही काफी नही होता। जरूरी ये है की जो एक परिवार के साथ ही हादसा हुआ वो किसी और के साथ न हो सके। इसके लिए कदम उठाना चाहिए लेकिन, ऐसा नही हो पता। दिन गुजरते रहते हैं और दिन-प्रतिदिन ट्रक-ऑटो की टक्कर होती रहती है और फिर आर्थिक साहयता राशि……………।
एक पहलु और बताना चाहता हूँ। जब भी कोई दुर्घटना होती है सब-एडिटर के जुबा का पहला प्रश्न यही होता है "देख देख देख इसमे मरे कितने?" जितने मरेंगे उतना ही शानदार ले-आउट तैयार किया जाएगा….
जब एक-आध ही मरता है तो "अरे यार एक ही मरा …. कोई बात नही (ओप्रटर से) ऐसा करो इसे डी सी (दो कोलम) बना दो। ज्यादा तो मरे नही वरना लीड बना देते…….

1 टिप्पणी:

Ganesh Kumar Mishra ने कहा…

आदरणीय सब-एडिटर महोदय,

पहले ये तो निच्चित करो की ट्रक ने ऑटो को ठोकर कब, क्यों, कहाँ, कैसे और किसलिए मारी। क्योंकि आपकी पोस्ट में तारीख कन्फ़म नहीं हो रही है। इससे हम जैसे पाठकों के मन में कई प्रकार के कोच्चन खड़े हो रहे हैं।

सुझाव - इसके लिए अपनी ही डेस्क के सहयोगी उप सम्पादक माननीय सूर्यवंशी जी से कन्फ़म करें। बाकी ये तो आप जानते ही हैं, की ख़बर का प्लेसमेंट उसके प्रभाव पर निर्भर करता है, उसी के अनुसार उसे लीड या डीसी बनाया जाता है।