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मंगलवार, दिसंबर 02, 2008

(मोमबत्ती 1) लो हो गई श्रऋधांजलि पूरी : ऐसे हैं हमारे कदम


ये साधारण सी बात है , जब पता लगे की श्रऋधांजलि उन लोगों ने दी जो असहाय है और कमजोर हैं। जो कुछ कर भी नहीं सकते आतंक के खिलाफ, वो जिन्होंने अपनी शक्तियों से देश चलाने का दारोमदार उन्हें दे दिया जो बुढापे के मारे ख़ुद नही चल सकते।
लेकिन तब कैसा लगेगा, जब ये बात सामने आए की कुछ इसे लोग , जो समाज को एक दिशा देते है, जो जनता का प्रतिनिधित्व करतें हैं उनके सवालों, आशाओं, मांगों को सरकार के सामने रखते हैं साथ ही सरकार को उसका आयना दिखाते हैं , ने भी सिर्फ़ मोमबत्ती जलाकर उनकी शहादत को सलाम कर दिया, और पल्ला झाड़ लिया...... बस बाकि कुछ नही............

मानता हूँ की पत्रकारों को भी इसका बेहद दुःख है। यहाँ तक की द टाईम्स ऑफ़ इंडिया की महिला पत्रकार भी इस हमले का शिकार हो गयीं। अगर पत्रकारों को भी इतना दुःख है तो उनके पास तो लेखनी की सबसे बड़ी ताकत है तो क्यों नही उसका इस्तेमाल करते? और सिस्टम के गलियारों की गंदगी को सामने लाते ? उनको जनता जरूर जवाब देगी चुनाव तो चल ही रहे हैं , लेकिन असल बात तो यह है की पत्रकारों को दुःख ही नहीं।

शायद सब चाहते हैं की सब लोग मोमबत्ती जलाकर शोक प्रकट कर रहे हैं तो क्यों न रूपये-दो रूपये की मोमबत्ती जलाओ और शोक प्रकट कर दो। कल फिर अगर कोई शहीद होगा तो असहाए समाज की तरह फिर कुछ मोमबत्तियां वे "हाथ" जला देंगे जो समाज का आईना अपने पास रखते हैं, जो रखते हैं होंसला समाज बदलने का।

एक बात मेरी बिल्कुल समझ में नही आई कि अगर मेरे हिंद के लोग इतने दुखी हैं तो वो मोमबत्ती जलाकर कैमरे कि तरफ़ मुह किए हुए क्यों थे ? क्या वे अपना दुःख जमाने को दिखना चाहते थे या फिर उन शहीदों के परिवार वालों को? कि ये देखो हमने भी..........
कम से कम कोई एक व्यक्ति तो इधर-उधर खड़ा होता ! रही बात कैमरामैन कि तो वह तो ख़ुद-ब-ख़ुद सबको कवर कर लेता।

मैं सच कहूं तो उनके दुःख को समझ नहीं पाया लोगों कि मोमबत्तियां तेज़ हवा मैं बुझ रही थी, लेकिन उनका उस दुःख माध्यम कि तरफ़ ध्यान न होकर दुःख को कैमरे में दिखाने के प्रति ज्यादा था। मुह कैमरे कि तरफ़ करे खड़े हुए थे ? अगर हेंडसम और ब्यूटीफुल चेहरे आ भी गए तो बुझी मोमबत्ती से क्या दुःख खाक नजर आयेगा ?

शहीदों को मोमबत्ती जलाकर शान्ति नही मिलेगी। वो शदीद ही इसलिए हुए हैं की समाज समझ सके की "दोस्तों हमने अपनी जान दी तुम्हारे लिए , और अब तुम वोट दो 'हमारे 'लिए ........
"। कोई शहीद नही कहता कि उसकी शहादत में मोमबत्तियां जलाई जायें , वो सिर्फ़ इतना चाहता है कि मेरे साथ हुए शहीदों के शहीद होने के कारण को ही जड़ से उखाड़ फैका जाए ताकि अगली बार कोई सिपाही शहीद न हों , माँओं कि गोद सूनी न हों, बच्चे यतीम न हों, कोई विधवा न होने पाए........

शायद मैं ही ग़लत हूँ । ये भी तो हो सकता है, कि मोमबत्ती के साथ दांत बातें हुए दिख जाए बस...... बाद मैं मोमबत्ती जलाकर दुःख प्रकट करते रहेंगे ।

क्या मोमबती पकड़े और अपना चेहरा टीवी पर दिखाना जरूरी है? जिसे दुःख होगा वो अपने को tv पर कभी नही दिखना चाहेगा क्योंकि वो नही चाहेगा कि मेरे दुखी चहरे को देख कर लोग और दुखी हो जायें .......

अभी-अभी मेरा एक दोस्त आया और ऊपर की लाइन पढ़कर मुझे बोलता चला गया, कि अबे ये सब करना भी जरूरी है ताकि आतंकियों को लगे कि वो देश को दुखी करना चाह रहे थे तो सचमुच देश दुखी हो गया है......
अगर हमने ये दिखावा नही किया या हम दुखी नही दिखे , वो फिर से आतंकी हमला कर देंगे ......तू तो जनता ही है अपनी सरकार को चाहे गृह मंत्री नया हो चाहे नही उन्हें जब हमला करना होता है कर देते हैं .......

9 टिप्‍पणियां:

युवा हिन्दुस्तानी ने कहा…

mere dost hamla keval mimbikar per nahi balki hindustan ke seene par hai jise aay din ye dehshatgard chlli kr rahe shahidon ki shahdad jaruri hai lekin ab jarurat hai har hindustani ke dil me lagi aag se atankwad ko khak karne ki.........to fir lo sankalp aur mita do atank ko.......to uthao koi KADAM.........

Ganesh Kumar Mishra ने कहा…

bahut badhiya likha hai...brijendra bhai....aur tumhari wo baat ki "agar patrakar wakai mein dukhi hain to phir unhe camere ki or dekhne ki kya jaroorat hai....kya yahan par bhi wo tv mein dikhne ko utsuk hain...ya wakai saheedon ke prati dil se shraddhanjali de rahe hain...

very good....keep it up... main tumhara samman karta hoon..

विवेक राय ने कहा…

wah wah bhai kya likha hai ...
bilkul mere dil ki bat aapne likhi ..mai bhi waha pe maujood taha ....

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

:)

shivam ने कहा…

bahut achchhe bhai.........
rasm-adayagi ke baad ki baat achchhi likhi hai, jo poori tarah sach hai.
lage raho badhai...khoob likhe....

Chaturesh kumar tiwari ने कहा…

absloutely right, u have written Brijendra bhai. Lago Raho Munna Bhai

PRAVIN ने कहा…

dukhi sab hai, ab samay dukh ko ek karke(in chingaariyon ko) jwalamukhi bana diya jay yah dikhana bhi jaroori tha .taki pidit yah na samjhe ham akele hain..aur jab patrakaao kaa dayitv samaaj ke saamane rakhana bataaya to wah aakrosh jo is samay janata me hai wah is karyakram ke madyam se janbhaavnaao ki abhivyakti thi jo yah bata den achahti thi e naukar shao netao sudhar jao nahi to parivartan ki yah chingaari aandhi bani to tumhaare takht badal jaayenge taaj badal jaayenge ,sudhar jaaye nahi to jurm karane walo ke nishaan mit jaayenge.

sandhyagupta ने कहा…

Dukhad sachchai bayan ki hai aapne.

Ashok Gangrade ने कहा…

tumhari bhavna ko mera slam.
is vaicharik abhivyati ke liya ....................................................