सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

गुरुवार, दिसंबर 18, 2008

(मोमबत्ती 3) इन्हे भी आखिर सिखा ही दिया......


इस तस्वीर को पहले जी भर के देख लीजिये, में इससे बहुत प्रभावित हुआ हूँ।
ये वो फोटो है जो एक प्रतिष्ठित रास्ट्रीय अखबार के सप्लिमेंटरी में गत ९ दिसम्बर,2008 को छपी।

ये बच्चे किसे श्रृन्धांजलि दे रहे हैं शायद ये जानते भी हों , लेकिन तारीफ उस फोटो ग्राफेर की जिसने ये फोटो अपने कैमरे में उतारी होगी । क्या बात है , बच्चे बड़ी खुशी के साथ श्रृन्धांजलि दे रहे हैं ...... और फोटोग्राफ़र ने उस मौके को अपने कैमरे में कैद कर लिया ।

समझ मेरे ये नहीं आ रहा कि बच्चो को श्रृन्धांजलि देने के लिए कहा गया है या फोटो लेने के लिए उन्हें जबरन वहां बैठा दिया गया और जैसे कह दिया हो कि .... बच्चो लो ये मोमबत्ती और इसे पकड़कर वहाँ बैठ जाओ और मैं एक झूठी फोटो ले लेता हूँ...... वो भी मुस्कराते हुए , ताकि उसमे ये दिखे कि बच्चे भी खासा दुखी हैं....... बढ़िया ... खूब ... शानदार कदम ....

लेकिन अब ये देश के छोने (बच्चे) भी सिख गए कि हाँ अब से हमें दिखावा करना होगा तो हम कैसे करेंगे........


इस फोटो को देखने से इतना तो साफ़ जाहिर होता है कि शायद ये फोटो किसी भी शहीद की शहादत में नही होगी।

5 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

sahi kaha aapne,bahut dhyan se dekha aur samjha hai aapne

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut sahi nazariyaa likha hai aapne.......

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

सिखा दिया सही कहा है भाई यहाँ फोटो की कीमत है अखवारों की कीमत है चेनल सरकार की कीमत है लेकिन भावनाओं की कीमत नही वो....
उसे कोई भी अपने क़दमों के निचे रोंद सकता है.....


अक्षय-मन

KK Yadav ने कहा…

समझ मेरे ये नहीं आ रहा कि बच्चो को श्रृन्धांजलि देने के लिए कहा गया है या फोटो लेने के लिए उन्हें जबरन वहां बैठा दिया गया....kya bat hai !! कभी हमारे शब्द-सृजन (www.kkyadav.blogspot.com) पर भी आयें.

Ganesh Kumar Mishra ने कहा…

bahut sahi baat kahi hai, aapne...aajkal photographer photo kheenchte nahin balki create karte hain. ye to sirf ek photo ki baat hai, aise kai example milenge.