सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

सोमवार, जून 23, 2025

अधूरी मोहब्बत

(-डॉ0 बृजेन्द्र कुमार वर्मा)

मोहब्बत की किताब का, एक पन्ना मोड़ आए हम।

कहानी पूरी न हुई, और क़लम तोड़ आए हम।।


कुछ ख़्वाब थे मुकम्मल, कुछ आँखों में ही सो गए।

थे वादे भी तो प्यारे, जो रूहों से जुदा हो गए।।

किनारों पर ही आकर, मौजों से बिछड़ आए हम।

कहानी पूरी न हुई, और क़लम तोड़ आए हम।।



वो रातें चाँदनी सी थीं, वो बातें रूह में बस गईं।

तस्वीरें ज़ेहन से निकलीं, पर यादें दिल में धंस गईं।।

उन्हीं यादों के साए में, ज़िंदगी छोड़ आए हम।

कहानी पूरी न हुई, और क़लम तोड़ आए हम।।

रविवार, जून 22, 2025

ग्रामीण विकास की पुनर्कल्पना: परंपरा, नवाचार और न्याय

- डॉ0 बृजेन्द्र कुमार वर्मा 


 भूमिका

ग्रामीण भारत केवल खेत, खलिहान और मिट्टी का नाम नहीं है, यह एक समृद्ध सांस्कृतिक जीवनधारा है, जहाँ परंपरा और आधुनिकता, श्रम और आत्मा, सामूहिकता और विविधता का अद्भुत समन्वय है। जब हम ग्रामीण विकास की बात करते हैं, तो यह केवल बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता भर नहीं है, बल्कि एक ऐसे सामाजिक ढांचे की रचना है, जो समावेशी हो, न्यायपूर्ण हो, टिकाऊ हो और आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करे। हम विकास प्रक्रिया की गहराइयों में जाकर उसकी परिभाषा, चुनौतियों, संभावनाओं और नीतिगत सुधारों की विवेचना कर सकते हैं।

1. ग्रामीण विकास की पारंपरिक अवधारणाएँ और सीमाएँ

ग्रामीण विकास को प्रारंभ में मुख्यतः कृषि उत्पादन, भूमि सुधार, सिंचाई, ग्रामीण बैंकिंग, और प्राथमिक शिक्षा जैसी प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति के रूप में देखा गया। भारत के पहले पंचवर्षीय योजना (1951-56) में 'कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम' की शुरुआत हुई, जिसने ग्रामीण भारत को योजनाबद्ध विकास से जोड़ने का प्रयास किया। हालांकि, इन योजनाओं में स्थानीय सामाजिक संरचनाओं, जाति व्यवस्था, और महिला सहभागिता जैसे पहलुओं की उपेक्षा रही।

वर्षों तक विकास की यह दृष्टि 'टॉप-डाउन' रही — यानी निर्णय और योजनाएँ दिल्ली या राज्य मुख्यालय से बनती थीं, और उन्हें गाँवों पर थोप दिया जाता था। इससे स्थानीय समस्याओं की जटिलता को समझने और समाधान प्रदान करने में असफलता हुई।

2. 'बॉटम-अप' विकास और स्थानीय नवाचार

डॉ. अनिल गुप्ता अपनी पुस्तक में बताते हैं कि गाँवों में केवल 'समस्या' नहीं, समाधान भी विद्यमान हैं। हनी बी नेटवर्क और राष्ट्रीय नवप्रवर्तन फाउंडेशन (NIF) ने हजारों ग्रामीण नवाचारों को संकलित कर यह दिखाया कि सीमित संसाधनों में भी कैसे रचनात्मकता फलती-फूलती है।

Digital Green, e-Choupal, और mKisan जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स ने सूचना, कृषि, और विपणन को डिजिटली जोड़कर गाँवों को वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ा, परंतु यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि इन नवाचारों की सफलता तब ही संभव है, जब स्थानीय साक्षरता, डिजिटल साक्षरता और बुनियादी अवसंरचना मजबूत हो।

3. सामाजिक न्याय के अभाव में अधूरा विकास

भारत का ग्रामीण समाज जाति, वर्ग, लिंग और भू-अधिकार जैसे असमानताओं से व्याप्त है। दलित, आदिवासी, और महिलाएँ अधिकांश योजनाओं में परिधीय भूमिका में रहती हैं। भूमि सुधार अधिनियमों के बावजूद ज़्यादातर भूमि अब भी कुछ ऊँची जातियों के नियंत्रण में है। 

महिलाओं की सहभागिता ग्राम पंचायतों में आरक्षण के माध्यम से बढ़ी है, लेकिन निर्णय-निर्माण की वास्तविक शक्ति अभी भी सीमित है। आत्मनिर्भर गाँव की कल्पना तभी साकार होगी जब सामाजिक न्याय उसकी रीढ़ बने।

4. ग्राम सभा और लोकतांत्रिक सशक्तिकरण

पंचायती राज व्यवस्था को 73वें संविधान संशोधन (1992) के माध्यम से संवैधानिक दर्जा मिला। ग्राम सभा को गाँव की सबसे महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक इकाई माना गया, परंतु व्यवहार में यह सशक्त संस्था नहीं बन पाई है। इसके पीछे भ्रष्टाचार, राजनीतिक हस्तक्षेप, और जन-जागरूकता की कमी जैसी अनेक समस्याएँ हैं।

जहाँ ग्राम सभाओं को सक्रिय और निर्णयात्मक इकाई बनाया गया, जैसे केरल का कुदुम्बश्री मॉडल, वहाँ ठोस परिवर्तन देखने को मिले हैं। कुदुम्बश्री (जिसका स्थानीय मलयालम भाषा में अर्थ है "परिवार की समृद्धि") केरल सरकार का चल रहा सहभागी "गरीबी उन्मूलन और महिला सशक्तिकरण" मिशन है, जो 1998 में शुरू हुआ था, और महिलाओं के तीन-स्तरीय सामुदायिक नेटवर्क के माध्यम से काम करता है।

5. पर्यावरणीय संतुलन और सतत विकास

गाँवों की अर्थव्यवस्था मुख्यतः प्रकृति पर आधारित होती है — वर्षा, भूमि, जंगल और जलस्रोत। परंतु वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन, और औद्योगिक प्रदूषण ने इस संतुलन को बिगाड़ दिया है। राजस्थान के जल योद्धा राजेन्द्र सिंह ने जल संरक्षण के पारंपरिक तरीकों का पुनरुद्धार करके यह दिखाया कि पर्यावरणीय न्याय से ही टिकाऊ विकास संभव है। महाराष्ट्र के हिवरे बाजार गाँव ने सामूहिक भागीदारी से वर्षा जल संचयन, वृक्षारोपण, और आजीविका के विविधीकरण का ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया है जो देशभर के लिए उदाहरण बन गया है। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित हिवरे बाजार गाँव, सूखे की मार झेलने के बाद वर्षा जल संचयन और जल प्रबंधन के क्षेत्र में एक प्रेरणादायक मॉडल बन गया है। कभी यह गाँव अत्यधिक गरीबी और पलायन का शिकार था, लेकिन आज यह महाराष्ट्र के सबसे समृद्ध गांवों में से एक माना जाता है, जहाँ कई परिवार करोड़पति हैं। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, हिवरे बाजार का भूजल स्तर नाटकीय रूप से बढ़ा। जहाँ पहले पानी की गंभीर कमी थी, वहीं आज गाँव में 350 कुएं और एक तालाब है, और पानी की आपूर्ति आसपास के गाँवों को भी की जाती है। इस सफलता ने कृषि उत्पादन में वृद्धि की, पशुधन को बढ़ावा दिया, और ग्रामीणों की आय में भारी वृद्धि हुई, जिससे यह गाँव देश के लिए एक आदर्श बन गया है।

6. जलवायु परिवर्तन और ग्रामों की अनुकूलन क्षमता

ग्रामीण क्षेत्रों पर जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रभाव पड़ रहा है — बेमौसम वर्षा, सूखा, फसलों की विफलता, और जल संकट इसके प्रमुख लक्षण हैं। इन चुनौतियों के उत्तर में ग्राम समुदायों को पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के मेल से समाधान खोजना होगा। जैविक खेती, मिश्रित कृषि प्रणाली, और सामूहिक जल प्रबंधन ऐसे कुछ विकल्प हैं। 

7. ग्राम स्वराज की नई कल्पना: 'ग्राम स्वराज 2.0'

महात्मा गाँधी का 'ग्राम स्वराज' केवल ग्राम स्वशासन नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता, न्याय, और नैतिकता का आदर्श था। आज की डिजिटल और वैश्वीकृत दुनिया में गाँधी के इस विचार को फिर से पढ़ने और लागू करने की आवश्यकता है — लेकिन आधुनिक संदर्भ में।

'ग्राम स्वराज 2.0' का अर्थ होगा:

  • सूचना और तकनीक आधारित स्थानीय अर्थव्यवस्था

  • लिंग और जाति आधारित असमानताओं का सक्रिय उन्मूलन

  • प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व की जीवन पद्धति

  • नीति निर्माण में वास्तविक ग्राम सहभागिता

निष्कर्ष

ग्रामीण विकास एक बहुस्तरीय और बहुपरिमाणीय प्रक्रिया है जिसमें केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आयाम भी शामिल हैं। यह अध्याय इस बात पर बल देता है कि ग्रामीण भारत को केवल 'पिछड़ेपन' के प्रतीक के रूप में नहीं, बल्कि नवाचार, आत्मनिर्भरता और टिकाऊ जीवन पद्धति की प्रयोगशाला के रूप में देखा जाए।

भारत का भविष्य उसके गाँवों में बसता है, और जब तक गाँवों में न्याय, नवाचार और आत्मबल का आलोक नहीं फैलेगा, तब तक कोई भी विकास अधूरा ही रहेगा।


संदर्भ सूची

  1. Planning Commission (1952), First Five-Year Plan, Govt. of India

  2. Dreze, Jean and Amartya Sen (2013), An Uncertain Glory: India and its Contradictions

  3. Gupta, Anil K. (2016), Grassroots Innovation: Minds on the Margin are not Marginal Minds

  4. ITC e-Choupal Case Study, Harvard Business Review (2003)

  5. Rawal, Vikas (2008), Ownership Holdings of Land in Rural India, EPW

  6. Kabeer, Naila (1999), Resources, Agency, Achievements: Reflections on the Measurement of Women's Empowerment

  7. Mathew, George (1994), Panchayati Raj: From Legislation to Movement, ISS

  8. Kudumbashree Mission Reports, Government of Kerala

  9. Singh, Rajendra (2010), Water Warriors: People's Movement for Water in India

  10. Sinha, D. (2006), Hivre Bazar: A Model Village, Ministry of Rural Development

  11. IPCC Report (2022), Impacts, Adaptation and Vulnerability

  12. TERI (2020), Climate Resilience in Indian Villages

  13. Gandhi, M.K. (1946), Hind Swaraj

  14. Jodhka, Surinder S. (2002), Nation and Village: Images of Rural India in Gandhi, Nehru and Ambedkar

साया भी शरमाया


मैंने तुझसे जुदा होकर खुद को ही ग़ैर पाया,
तू गया तो जैसे मेरा साया भी मुझसे शरमाया।


आईनों ने भी पूछा, ये अजनबी है कौन?
हर अक्स ने मेरी आँखों को कुछ और दिखलाया।


लब खामोश थे, मगर दिल चीख-चीख कर बोला,
जिससे वफ़ा की उम्मीद थी, उसी ने ज़हर सुलगाया।


तेरे बाद किसी मोड़ पे ख़ुशियाँ मिली भी तो,
हाथ थामते ही हर ख़ुशी ने दर्द सा क्यों बरसाया?


अब तन्हाई ही मेरा शहर है, और यादें मेरा क़ाफ़िला,
इश्क़ के इस वीराने में, बस मैं हूँ और मेरा साया।


(-डॉ0 बृजेन्द्र कुमार वर्मा)

मंगलवार, अगस्त 20, 2024

ये कविता काम आयेगी याद दिलाने में

माँ का दुपट्बटा जो बदबू से भरा है, 

वही पसीना जिम्मेदार है तुम्हें काबिल बनाने में.


सड़ गया जिस्म माँ का घर में,

क्या शेष रह गया जीवन बिता में.


आज चुप है माँ, बेटे के अफसर बनने पर,

जिसने कभी एलान किया था जमाने में.


चली गयी माँ कुछ शेष न रहा,

अब क्या मिलेगा मुस्कराने में.


औलादों, अपनी माँ की गोद को याद रखना,

उसका भी हिस्सा है, मंजिल दिलाने में.


प्यार, दुलार, समर्पण इसे अपने पास रखना,

काम आएगी नफरत की आग बुझाने में.


मैं वक़्त को रोक तो नहीं सकता लेकिन 

ये कविता काम आयेगी याद दिलाने में 


दोस्तों ऐसा कोई काम न करना 

जो शर्म आये माँ को माँ कहलाने में 


ये साल भी कितना मगरूर है.

 वो शख्श, जो अभी दूर है,

तुम्हें पता ही नहीं कितना मजबूर है.


अब वो रात में बस तारे गिनता है 

जिस पर किताबों का फितूर है.


डरता है, कहीं बदनाम न हो जाए 

उसके पिता को उसपर गुरूर है 


वो चली गयी तो क्या हुआ 

उसकी आँखों में तो मेरा ही नूर है 


चली थी हवा कि सब गुजर जायेगा,

उफ़ | ये साल भी कितना मगरूर है. 


तो करता भी क्या

 मुफलिसी में अपनी जुबां दबा कर आया हूँ,

लौटकर आऊंगा नहीं, ये भी बता के आया हूँ 


मैंने मोहब्बत में हारी हैं कई बाजियाँ,

हाल ही में एक डोली उठा कर आया हूँ 


वो रात अलग थी, ये रात अलग,

दंगों में बच्चों का खून बचा कर आया हूँ


अच्छे अच्छों को रोटी तक नसीब नहीं,

मैं तो ईमानदारी मिट्टी में दबा कर आया हूँ.


 वो तो उसकी यादें हैं, तो दिन गुजर भी जाता है,

वरना कई बार खुद की अर्थी सजा कर आया हूँ.


उन्हीं हरामखोरों ने निकाल दिया बाहर,

जिनको सियासत सिखा कर आया हूँ. 


गम ये नहीं, खुद कर लिया बर्बाद 

ख़ुशी ये है, यही कहानी उसे सुना कर आया हूँ. 


घर से न निकलता, तो करता भी क्या 

मैं अपने घर वालों बहुत सता कर आया हूँ. 


बुधवार, अक्टूबर 19, 2022

वो आएगा तू देखना

 

तू मेहनत कर, कई रिश्ते भी आयेंगे तू देखना,

जो लोग छोड़ चुके हैं, वो मुड़कर भी आयेंगे तू देखना ||

अभी कामयाबी नहीं मिली, कोई बात नहीं,

जिस दिन मिली, उस दिन फ़रिश्ते भी आयेंगे तू देखना ||

अभी मोहब्बत है तो मिल लिया करो,

अगर नाराज हुए, तो मैय्यत पे भी नहीं आयेंगे तू देखना ||

परिंदों की चिंता छोड़, पर आ गये उनके,

चार दिन की बात है, उड़ जायेंगे तू देखना ||

जानता हूँ, शायरी आती नहीं मुझको,

लेकिन आई, तो वो चाँद भी सुनने आएगा तू देखना ||

सबने कहा भूल जा उसे, वो दगाबाज़ निकला

और दिल कहता है, वो आएगा तू देखना ||


(-बृजेन्द्र कुमार वर्मा)

शनिवार, सितंबर 24, 2022

ग्रामीण विकास में प्रत्यक्ष अवरोध है लंपी वायरस

बृजेन्द्र कुमार वर्मा,

(लेखक- ग्रामीण विकास संचारक हैं)

.................................................................................................................................................

लंपी वायरस ने यह स्थिति ला दी है कि समाज वैज्ञानिकों का ध्यान ग्रामण विकास और लगातार प्रभावित हो रहे दुग्ध उत्पादन की ओर जाने लगा है। ग्रामीण अपने विकास के लिए लगातार संघर्षरत रहा है, लेकिन लम्पी वायरस ने ग्रामीण विकास के विभिन्न अवरोधों में एक अवरोध को और बढ़ा दिया है, जो भारत के विभिन्न राज्यों के लिए चिंता का विषय बन चुका है, वह है मवेशियों में फैला लंपी त्वचा रोग। जल्द ही कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो बहुत जल्द पशुधन उत्पादन महंगा होने लगेगा, क्योंकि हजारों दुधारू गायों की मृत्यु हो चुकी है, और अब भी लगातार मर रही हैं। मीडिया कवरेज में ड्रॉन की मदद से ऊंचाई से लिए कई फुटेज देखने के बाद ऐसा लगता है कि लंपी से मरने वाले मवेशियों की संख्या राष्ट्र स्तर पर लाख से ऊपर भी हो सकती है। समाचार पत्रों की माने तो कई राज्यों में 10-10 हजार से ज्यादा गायों की मौत हो चुकी है। राहत की बात यह है कि ये रोग पशुओं से इंसानों में नहीं फैलता है, लेकिन फिर अप्रत्यक्ष रूप से वे इंसान प्रभावित हुए हैं, जो पशुधन रखते हैं, और जिनके मवेशी लंपी वायरस की चपेट में आ गए हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन होता है, जिसे विभिन्न संसाधनों द्वारा शहरों में पहुँचाया जाता है। गाँव के मवेशी पालक अपने मवेशियों का दूध निकालकर नजदीकी डेयरी को बेच देते हैं अथवा स्वयं दुग्ध उत्पाद बनाते हैं, जैसे दही, मट्ठा, मक्खन, घी, पनीर और उसे नजदीकी बाजार अथवा ठेकेदारों को बेच देते हैं। बात आती है उनके लाभ की। दुग्ध उत्पादों की बिक्री से मिलने वाले पैसों से ये मवेशी पालक अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। वर्तमान में भारत में हजारों मवेशी पालक इस समय सदमें में जी रहे हैं, उनका घर चलाने वाली गाय लंपी वायरस से ग्रसित है। गाय तो ग्रसित है ही, उनके पालक भी चिंता में समय काट रहे हैं, क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति भी खतरे में है। ऐसे में यदि दुधारू मवेशियों की लंपी वायरस से जाने जाएंगी अथवा बीमारी से ग्रसित होती जाएंगी तो दुग्ध उत्पादन पर सीधा प्रभाव पडे़गा। इससे पालकों को आर्थिक नुकसान तो होगा ही, साथ ही राष्ट्र का पशुधन भी प्रभावित होगा।

बीमारी की बात करें तो विशेषज्ञ बताते है कि यह गांठदार त्वचा रोग है, जिसे अंग्रेजी में लंपी स्कीन डिजीजकहते हैं, यह मवेशियों में होने वाला एक संक्रामक रोग है, जो पॉक्सविरिड परिवार के एक वायरस के कारण होता है। इसे नीथलिंग वायरस भी कहा जाता है। इस रोग के कारण पशुओं की त्वचा पर गांठें बन जाती हैं, मुंह से, नाक से स्त्राव होने लगता है। यह रोग त्वचा, श्लेष्मा झिल्ली और श्वसन मार्ग को प्रभावित करता है। साथ ही दो से तीन सेंटीमीटर बड़ी गांठें पड़ जाती हैं, बुखार आता है, शरीर में सूजन आने लगती है, कुछ समय बाद चलने में, खड़े होने में दिक्कत होने लगती है। यह रोग मच्छर, मक्खी और परजीवी से एक दूसरे में तेजी से फैलता है। यह बीमारी इतनी घातक होती है कि यदि समय पर इलाज न हो तो गायों की मृत्यु तक हो जाती है, और गाय ठीक भी हो जाए तो भविष्य में दूध कम उत्पादित करती हैं, बांझपन तक आ जाता है। साधारण शब्दों में कहें तो गाय पालने वाले (पालक) को आर्थिक नुकसान होता है।

उत्तर प्रदेश में आंकड़ों के अनुसार लगभग साढ़े पाँच लाख से अधिक मवेशियों का टीकाकरण किया जा चुका है। अभी पश्चिमी क्षेत्र में लंपी वायरस फैला हुआ है, जो पूर्व की ओर बढ़ रहा है। हाल ही में 8 सितंबर 2022 को उत्तर प्रदेश पशुधन विभाग के विशेष सचिव ने पूर्वी क्षेत्र को सुरक्षित करने व वायरस के प्रसार को रोकने के लिए एक मास्टर प्लान की बात कही है। विभाग के अनुसार मलेशिया देश की तर्ज़ पर पीलीभीत से लेकर इटावा तक लगभग 300 कि0मी0 की दूरी को 10 कि0मी0 चौड़े इम्यून बेल्ट से कवर करने का मास्टर प्लान तैयार किया है। यह बेल्ट एक तरह से बॉर्डर का काम करेगी और लंपी वायरस इसे पार कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश से पूर्वी उत्तर प्रदेश की तरफ नहीं जा सकेगा।

पशुपालन विभाग के अनुसार वैक्सीनेशन के ज़रिये इम्यून बेल्ट बनाने की तैयारियाँ पूरी की जा चुकी हैं। विभाग की माने तो इस पूरी बेल्ट में पशुओं में शत-प्रतिशत टीकाकरण की बात कही गयी है। निगरानी के लिये विशेष टास्क फोर्स होगी, जो लंपी वायरस से संक्रमित पशुओं की ट्रैकिंग और ट्रीटमेंट का ज़िम्मा संभालेगी। 2020 में ऐसा प्रयास मलेशिया में किया गया था, वहाँ की सरकार ने इसके सकारात्मक परिणाम बताए थे। यदि उत्तर प्रदेश ऐसा करने में सफलता प्राप्त कर लेता है तो पूर्वी क्षेत्र में लाखों मवेशियों को प्रभावित होने से रोका जा सकता है, यह उत्तर प्रदेश के लिए किसी विशेष उपलब्धि से कम नहीं होगी।

मृत्यु दर के बारे में बताया जा रहा है कि लंपी स्किन डिजीज से पीड़ित पशुओं में मृत्यु दर 1 से 5 प्रतिशत तक है, हालांकि संकर नस्ल के गौवंश में मृत्यु दर अधिक देखी गयी है। यूरोप, रूस, कजाकिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, चीन, भूटान, नेपाल और भारत में अलग-अलग समय में इसके मामले पाए गए हैं। इस समय गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तर प्रदेश, आदि कई प्रदेशों के दुधारू मवेशियों में लंपी स्किन डिजीज फैली हुई है।

लंपी स्किन बीमारी मूल रूप से अफ्रीका में शुरू हुई और अफ्रीका के कई देशों में है. बताया जाता है कि 1929 में इस बीमारी की शुरुआत जाम्बिया देश में हुई थी, जहाँ से यह दक्षिण अफ्रीका में फैल गई। 21वीं सदी के दूसरे दशक की शुरूआत से ही यह बीमारी तेजी से फैल रही है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो 2019 में बांग्लादेश और चीन में तेजी से फैली, इसके बाद 2020 में नेपाल और भूटान में देखने को मिली और 2021 के अंतिम महीनों में भारत में लक्षण देखे जाने लगे और जुलाई 2022 से अब तक हजारों की संख्या में गाय मर चुकी हैं और लाखों प्रभावित हो चुकी हैं, हालांकि इनमें से हजारों की संख्या में ठीक भी हुई हैं।

पशुधन अधिकारी मवेशी पालकों को सलाह देते हैं कि वे मवेशियों के आसपास गंदगी न फैलने दें, मच्छर, मक्खियों, कीटों से मवेशियों को दूर रखें, कोई मवेशी जब लंपी वायरस से प्रभावित हो जाए तो उसे तुरंत अन्य मवेशियों से दूर कर दें और इलाज कराएं।

भारत के लिए पवित्र और करोड़ों ग्रामीणों का भरण-पोषण करने व दूध देने वाली गाय आज अपने जीवन के लिए इंसानों पर निर्भर हो चुकी हैं। ऐसे में भारत के पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम को तेजी लाते हुए बहुत जल्द ऐसे कदम उठाने होंगे, जिससे विभिन्न राज्यों में लम्पी वायरस से प्रभावित गायों का आसानी से, समय रहते और मुफ्त इलाज किया जा सके। हालांकि विभिन्न राज्य सरकारों ने टीकाकरण अभियान चलाया हुआ है। इसके अलावा पशु चिकित्सा विभाग ग्रसित मवेशियों का इलाज भी कर रही है, लेकिन सीमित संसाधनों और सीमित कर्मचारियों की संख्या के कारण ग्रसित मवेशियों तक पहुंच कम है, साथ ही कुछ सामज सेवी ऐसे भी हैं, जो ग्रसित मवेशियों के इलाज में हर तरह की मदद कर रहे हैं। कोविड-19 के आने पर जिस तरह से भारत ने मुस्तेदी से काम किया, उसी तरह से मवेशियों के लिए भी टीकाकरण में भी तेजी लानी होगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्र की मुख्य पहचानों में से एक पहचान पशुपालन भी है। कई परिवार गाय, भेंस, बकरी, ऊंट पालते हैं एवं उनसे मिलने वाले दूध को बेचकर घर चलाते हैं। कई परिवार अंडा एवं मांसाहार के लिए भेड़, बकरी, मछली, मुर्गी, बत्तख आदि का पालन करते हैं। कई जातियाँ परम्परागत रूप से इस कार्य से जुड़े हैं एवं परिवार का भरण-पोषण करते हैं। पशुधन ग्रामीण आर्थिक विकास में खासा महत्वपूर्ण स्थान रखता है। दक्षिण भारत में मछली पालन के लिए सरकार प्रोत्साहन देती है। उत्तर भारत में ऐसे ग्रामीण, जो मुर्गी अथवा मछली पालन करना चाहते हैं, उनके लिए सरकार ने कई प्रकार से प्रोत्साहन नीतियां बनाई हैं। ये सब कार्य इसलिए ही किए जा रहे हैं, क्योंकि सरकार ग्रामीण विकास के विभिन्न उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करती है। लंपी वायरस ने ग्रामीण विकास के लिए सरकार के सामने चुनौती प्रस्तुत की है। इस लंपी वायरस ने हजारों मवेशियों को निगल लिया है। लेकिन अब और नुकसान नहीं उठाया जा सकता। राज्य सरकारों को पशुधन अथवा पशु चिकित्सा विभाग के अलावा अन्य विभागों का साथ चाहिए हो तो देरी नहीं करनी चाहिए, ताकि आने वाले समय में लंपी वायरस को रोका ही न जाए अपितु, जड़ से खत्म कर दिया जाए। सरकार चाहे तो इसके लिए निजी संसाधनों का भी उपयोग कर सकती है, बस उद्देश्य लंपी स्किन रोग को खत्म करने का होना चाहिए।

मंगलवार, सितंबर 13, 2022

भारत में अमेज़न ऑनलाइन शौपिंग साईट क्यों है नंबर वन

भारत में अमेज़न ऑनलाइन शौपिंग साईट नंबर वन यूं ही नहीं बनी, बल्कि कुछ कारण हैं. 

हाल ही में मैंने अमेज़न से 8 पेन का सेट खरीदा । उसमें पेन के साथ एक रिफिल कंपनी फ्री दे रही थी. ऐसे में 8 पेन के साथ मुझे 8 रिफिल भी मिलनी चाहिए थी. लेकिन यहाँ सेलर ने कर दिया गड़बड़. 

जब ये सामान मेरे घर आया तो मैंने इसे खोला और देखा कि पेन वही है, लेकिन ये फ्री रिफिल वाला ऑफर  वाला सेट नहीं है । मुझे 8 रिफिल नहीं मिली, जोकि मिलनी चाहिए थी. बाज़ार में उस रिफिल कि कीमत 20 से 25 रूपए है, ऐसे में मुझे लगभग 160 से  200 रूपए के बीच का सीधा नुक्सान हुआ. 

मैंने अमेज़न पर इसे रिप्लेस/रिटर्न के लिए निवेदन (रिक्वेस्ट) कर दिया. 

अब बात आती है अमेज़न की. भारत में शायद ही ऐसी सर्विस होगी कि कम्पनी खुद ग्राहक को कॉल करे. लेकिन अमेज़न ऐसा ही करती है. "टोक टू अस" पर मैंने कॉल के लिए नंबर टाइप किया और क्लिक कर दिया, क्लिक करते हैं कॉल आ गया. 

मैंने 8 पेन के साथ 8 रिफिल न मिलने की बात कही. कस्टमर केयर एग्जीक्यूटिव ने तुरंत ही रिप्लेस किया और रिटर्न का आदेश कर दिया. 

इतना ही नहीं, मैंने शिकायत भी कर दी, कि इस पेन बेचने वाले सेलर के इस उत्पाद (प्रोडक्ट) को अमेज़न पर बेचने से रोक लगा दी जाए, ताकि कोई और ग्राहक को परेशानी न हो. मेरी इस शिकायत को आगे बढ़ाया (फॉरवर्ड) गया. 

फिर क्या था, कुछ दिन बाद अर्थात आज 12 सितम्बर को उस प्रोडक्ट को अमेज़न पर बेचने से रोक दिया गया. (फोटो में आप देख सकते हैं) ताकि और ग्राहकों को परेशानी का सामना न करना पड़े. 

अमेज़न का भारत में ऑनलाइन शौपिंग में नंबर 1 पर रहने का ऐसे ही कई कारण हैं. करोड़ों की खरीद यूं ही नहीं होती इस वेबसाइट से. 

भारत में भारतीय ऑनलाइन शौपिंग साईट भी हैं, जो टक्कर देना चाहती हैं, लेकिन अमेज़न को टक्कर देने के लिए उन्हें कड़े निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करना होगा. ग्राहक को सर आँखों पर बैठाना होगा, नहीं तो अमेज़न को टक्कर देना सपना ही रहेगा.