सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

मंगलवार, अगस्त 20, 2024

तो करता भी क्या

 मुफलिसी में अपनी जुबां दबा कर आया हूँ,

लौटकर आऊंगा नहीं, ये भी बता के आया हूँ 


मैंने मोहब्बत में हारी हैं कई बाजियाँ,

हाल ही में एक डोली उठा कर आया हूँ 


वो रात अलग थी, ये रात अलग,

दंगों में बच्चों का खून बचा कर आया हूँ


अच्छे अच्छों को रोटी तक नसीब नहीं,

मैं तो ईमानदारी मिट्टी में दबा कर आया हूँ.


 वो तो उसकी यादें हैं, तो दिन गुजर भी जाता है,

वरना कई बार खुद की अर्थी सजा कर आया हूँ.


फहरिस्त से बाहर निकाल दिया उन्हीं फरामोशों ने,

जिनको सियासत सिखा कर आया हूँ. 


गम ये नहीं, खुद कर लिया बर्बाद 

ख़ुशी ये है, यही कहानी उसे सुना कर आया हूँ. 


घर से न निकलता, तो करता भी क्या 

मैं अपने घर वालों बहुत सता कर आया हूँ. 


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