सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

मंगलवार, अगस्त 20, 2024

ये कविता काम आयेगी याद दिलाने में

माँ का दुपट्बटा जो बदबू से भरा है, 

वही पसीना जिम्मेदार है तुम्हें काबिल बनाने में.


सड़ गया जिस्म माँ का घर में,

क्या शेष रह गया जीवन बिता में.


आज चुप है माँ, बेटे के अफसर बनने पर,

जिसने कभी एलान किया था जमाने में.


चली गयी माँ कुछ शेष न रहा,

अब क्या मिलेगा मुस्कराने में.


औलादों, अपनी माँ की गोद को याद रखना,

उसका भी हिस्सा है, मंजिल दिलाने में.


प्यार, दुलार, समर्पण इसे अपने पास रखना,

काम आएगी नफरत की आग बुझाने में.


मैं वक़्त को रोक तो नहीं सकता लेकिन 

ये कविता काम आयेगी याद दिलाने में 


दोस्तों ऐसा कोई काम न करना 

जो शर्म आये माँ को माँ कहलाने में 


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