सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

रविवार, जून 22, 2025

साया भी शरमाया


मैंने तुझसे जुदा होकर खुद को ही ग़ैर पाया,
तू गया तो जैसे मेरा साया भी मुझसे शरमाया।


आईनों ने भी पूछा, ये अजनबी है कौन?
हर अक्स ने मेरी आँखों को कुछ और दिखलाया।


लब खामोश थे, मगर दिल चीख-चीख कर बोला,
जिससे वफ़ा की उम्मीद थी, उसी ने ज़हर सुलगाया।


तेरे बाद किसी मोड़ पे ख़ुशियाँ मिली भी तो,
हाथ थामते ही हर ख़ुशी ने दर्द सा क्यों बरसाया?


अब तन्हाई ही मेरा शहर है, और यादें मेरा क़ाफ़िला,
इश्क़ के इस वीराने में, बस मैं हूँ और मेरा साया।


(-डॉ0 बृजेन्द्र कुमार वर्मा)

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