(-डॉ0 बृजेन्द्र कुमार वर्मा)
मोहब्बत की किताब का, एक पन्ना मोड़ आए हम।
कहानी पूरी न हुई, और क़लम तोड़ आए हम।।
कुछ ख़्वाब थे मुकम्मल, कुछ आँखों में ही सो गए।
थे वादे भी तो प्यारे, जो रूहों से जुदा हो गए।।
किनारों पर ही आकर, मौजों से बिछड़ आए हम।
कहानी पूरी न हुई, और क़लम तोड़ आए हम।।
वो रातें चाँदनी सी थीं, वो बातें रूह में बस गईं।
तस्वीरें ज़ेहन से निकलीं, पर यादें दिल में धंस गईं।।
उन्हीं यादों के साए में, ज़िंदगी छोड़ आए हम।
कहानी पूरी न हुई, और क़लम तोड़ आए हम।।
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