सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

मंगलवार, अगस्त 20, 2024

ये साल भी कितना मगरूर है.

 वो शख्श, जो अभी दूर है,

तुम्हें पता ही नहीं कितना मजबूर है.


अब वो रात में बस तारे गिनता है 

जिस पर किताबों का फितूर है.


डरता है, कहीं बदनाम न हो जाए 

उसके पिता को उसपर गुरूर है 


वो चली गयी तो क्या हुआ 

उसकी आँखों में तो मेरा ही नूर है 


चली थी हवा कि सब गुजर जायेगा,

उफ़ | ये साल भी कितना मगरूर है. 


कोई टिप्पणी नहीं: