मैं नाराज हूँ तुमसे.....
मैं नाराज हूँ रुखी बयारों से
ऊँची दीवारों से
खेत से
खलियानों से
बड़े पहलवानों से,
हिंदू के मीत से
मुस्लिम की रीत से
मैं नाराज हूँ तुमसे.....
मैं नाराज हूँ किसी के आने से
फिर चले जाने से
बाद में समझाने से,
बातों से
रातों से
इन मुलाकातों से
मैं नाराज हूँ तुमसे.....
मैं नाराज हूँ कलियों से
गलियों से
और उन परियों से
हाँ से
न से
फिर चुप चुप से,
कल से
आज से
आते हुए कल से
मैं नाराज हूँ तुमसे.....
मैं नाराज हूँ गरीबों की रोटी से
अमीरों की 'बोटी' से
आईने से
असली माइने से,
कभी शायद खुदा से
तो अपनी अदा जुदा से
मैं नाराज हूँ तुमसे.....
मैं नाराज हूँ मन्दिर से
मस्जिद से
और अपनी 'इज्जत' से,
नीचाई से
ऊंचाई से
"उनकी" सच्चाई से
मैं नाराज हूँ तुमसे.....
मैं नाराज हूँ अमीरों से
गरीबों से
'दिलकश' मरीजों से
शहादत से
आफताब से
एक खुली किताब से,
दिल से
दान से
और पुण्य 'काम' से,
लाभ से
हानि से
हर बेईमानी से
मैं नाराज हूँ तुमसे.....
हाँ , मैं नाराज हूँ.......... 'तुमसे'.....