अब कोई शादी में जाएगा तो शेयरधारी अपनी बीवी को शेयर का सर्तिफिकैत तो गले में पहनायेगा नहीं। इसके लिए तो सोने का हार है। पर एक तरफ़ माँ बिजनेस के पुजारी प. पुराणिक जी कहते हैं की साब सोने में इन्वेस्ट करना बेवकूफी है। अब बेवकूफी नही की तो अर्धांगनी अपनी जेधानी से हार जायेगी । बेचारे पति को तो पंडित जी ने दोनों तरफ़ से फंसा दिया। अर्धांगनी हार न जाए इसलिए "हार" चाहिए। पंडित कहते हैं की सोने की वेल्यु वेसे की वेसे ही बनी हुए है। सोने में इन्वेस्ट बेकार। अर्धांगनी जेधानी से पीछे नहीं रहना चाहती। करें क्या ?? खरीदा क्या जाए ? शेयर या सोना ? पैसे सीमित हैं। सोने की वेल्यू बढ़ नहीं रही। शेयर खरीदा तो बीवी गुलाबी गाल फुला लेगी।
मैंने सुझाव दिया क्यों न बिजनेस मैया का चालीसा पढ़ा जाए। उन्होंने पढ़ा भी, लाभ भी हुआ। जनाब ने हार जेधानी को हराने के लिए तो नहीं लेकिन पूरी-पूरी टक्कर लेने के लिए खरीदवा दिया। बाकि पैसे इन्वेस्ट.....
लेकिन कहते हैं इनवेस्टमेंट इज दा सब्जेक्ट ऑफ़ मार्केट रिस्क , बिचारे क्या करते.... जेसे-तेसे जेधानी को जलाने के लिए लिया गया वो हार गरबा करते समय गिर गया।
उनका किया गया इन्वेस्ट "इन-वेस्ट " हो गया ।
खेर आज में आपको उन पति महोदय के यहाँ निमंत्रित करता हूँ। आज साम उनका हर्ट अटैक से .........
अब उनके कदम ईश्वर की तरफ़ जा रहे हैं.........
1 टिप्पणी:
good but likhane ka matlab kuch samajh nahi ata hai.
thodi clearity hini chaihya
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