कभी किसी देश के राष्ट्रपति का कुत्ता गाँधी जी की समाधि को सूंघता है तो कभी कोई विदेशी निवेशक भारत की खिल्ली उड़ाता हुआ कहता है कि जब रतन टाटा भारतीय मूल के होने के बावजूद प. बंगाल में सफल नहीं हो सकते तो अमेरिकी निवेशक सफल होने कि कैसे उम्मीद कर सकतें हैं।
है तो आख़िर कमाल कि बात कि घर में घुस कर कोई कुत्ता अपने देश के प्रमुख कि रक्षा के लिए हमारे राष्ट्र पिता कि समाधि को सूंघता है और हम कुछ नहीं कर पाते। वो तो अच्छा हुआ कि उस कुत्ते को सुसु नहीं लगी नहीं तो जहाँ उन मानिये श्री कुत्ते जी ने सूंघा है उस जगह को टांग उठा कर गीला करने में देर भी नहीं लगती।
क्या हम उन्हें घूमने के लिए अपनी सुरक्षा के अंतर्गत उन्हें सिक्योरिटी नहीं दे सकते थे ? क्या हमारे सुरक्षा कर्मी उनकी सुरक्षा करने के लायक नहीं थे। कभी-कभी तो ये लगता है कि जैसे हम अमेरिका के पिछलग्गू हैं। इसीलिए तो हम असली हिन्दुस्तानी कहलाते हैं।
अब तो अमेरिकी निवेशक भी खिल्ली उड़ाकर कह देते हैं कि जब भारतीय मूल के निवेशक को इतना सताया जा रहा है तो हमें तो हम क्या सफल होंगे।
पहली बात तो हमे अच्छी तरह मालूम हैं कि उनके निवेश करने का यहाँ क्या प्रयोजन होता है। जितने ये लोग पैदा करे और हम अपने देश में ले जाए चाहे वो आर्थिक हो या फ़िर उत्पादित।
हम इतने ढीट क्यों होते जा रहे हैं। अब हमे इसके खिलाफ भी कदम उठाना होगा ताकि हमारे देश कि कोई युही हँसी न उड़ा पाए ।
2 टिप्पणियां:
अगली बार मन्नू को भी अपना कुत्ता अमेरिका ले जाना चाहिए | हिसाब बराबर |
Tum bolo to...Yudhisthir ke saath jaane wale kutte ko America bhej dete hain...
bhot acche bhaiyeee.....ese i likte rao.....
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