क्या सच में "social distancing" शब्द होना चाहिए या "physical distancing" covid-19 वायरस ने लोगों के बीच दूरी बना दी है, जिन्दा रहना है तो दूर रहना ही पड़ेगा, सामाजिकता तो वो प्यार मोहब्ब्बत है जो भारत में न कभी खत्म हुयीं न होगी.
हजारों सालों से मनुष्य ने दुनिया पर राज किया और ऐतिहासिक विकास किया है. मनुष्य ने इतना विकास कर लिया है कि कई वैज्ञानिकों ने तो अब ये ढूँढना शुरू कर दिया है की मनुष्य ने अपना विकास आखिर कहाँ से शुरू किया था. खेर ये तो बातें बाद में करेंगे. अब वापस आते हैं टॉपिक पर. किसी भी राष्ट्र में मीडिया के खासी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. और इसका गंभीरता को समझना पड़ेगा.
शुरू में अमेरिका भी कोरोना को मजाक में ले रहा था और चीन पर मजाकिया टिप्पणियां कर रहा था, आज अमेरिका कोरोना से विश्व में सबसे अधिक प्रभावित है.
इस बीच भारत में "सामाजिक दूरी" पर जोर दिया जा रहा है, भारत हजारो वर्षों से बहुत ही सोम्य रहा है, इसका फायदा अक्सर विदेशियों ने उठाया और कई बार भारत को गुलाम बनाने का प्रयास किया. असल में भारत की यही सोम्यता और सहजता उसके लिए शक्ति भी साबित होती है. तमाम कोशिशों के बावजूद लोगों ने समाज से दूरी नहीं बनायी, हाँ शारीरिक दूरी बनायी हुई है क्योंकि कोरोना वायरस 19 को हराना है. हमारे वरिष्ठ चिंतकों को सोचना होगा और अपील भी करनी होगी कि शरीरिक दूरी बनानी है न कि सामाजिक दूरी. सामाजिकता तो मनुष्य के रहन सहन, खान पान, पहनावा, बोल चाल, व्यवहारिक जुड़ाव, विभिन्न परम्पराओं के अनुसार तय होती है, जो फ़िलहाल कोरोना से प्रभावित नहीं है, प्रभावित है तो वो है स्वास्थ्य.
आज भी लोगों का व्यवहार वैसा ही है जैसा कोरोना के फैलने से पहले था... जहर फैलाने वाले कोरोना से पहले भी किसी न किसी विषय को लेकर जहर फैला रहे थे सो आज भी फैला रहे हैं.
अपना ध्यान रखें. सुरक्षित रहें. दूसरों को भी सुरक्षित रखें.
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