संविधान के चार स्तम्भ हैं और माध्यमिक और उच्च माध्यमिक में सिर्फ 3 स्तंभों (न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका) बारे में कुछ न कुछ पढ़ाया ही जाता है, लेकिन जब बात आती है चौथे स्तम्भ पत्रकारिता की तो इसकी तरफ कोई ध्यान नहीं जाता, जबकि चौथा स्तम्भ असीम संभावनाओं का भण्डार है.
जबकि होना ये चाहिए कि देश में सबसे अधिक पढाई और सजगता इस स्तम्भ के प्रति होनी चाहिए. प्रेस को फ्री कर देने से इसका नाजायज फायदा भी उठाया जाता है जो आजादी के बाद से होता आ रहा है. सर्वाधिक विविधता प्रेस के पाठ्यक्रम को लेकर होनी चाहिए. प्रेस की पढाई माध्यमिक से जरूर शुरू कर देनी चाहिए. उच्च माध्यमिक में और विविधता के साथ पढ़ाया जाना चाहिए, विषय के रूप में पढ़ाये तो और अच्छे निष्कर्ष आयेंगे.
चूँकि, प्रेस की पढ़ाई स्नातक से होती है तो ऐसे में प्रेस के पाठ्यक्रम से जुड़ाव जल्दी नहीं होता, प्रेस का पाठ्यक्रम भी बहुत छोटा और दूसरे विषयों से लिए उधार पर टिका होता है, ऐसे में प्रेस की जो गंभीरता आनी चाहिए वह आ नहीं पाती.
करोड़ों की जनसँख्या वाले भारत देश में प्रेस/मीडिया में अन्धविश्वास या आध्यात्म ज्यादा दिखाई देता है और विज्ञानं की कमी देखी जाती है. आज भी भारत में तमाम न्यूज़ चैनल ऐसे हैं जो भविष्य फल, धार्मिक स्थलों का रहस्य, धार्मिक प्रवचन आदि दिखाते हैं, जबकि उतनी मात्रा में संविधान या क़ानून की जानकारी या विज्ञान या तकनीकी की जानकारी वाली सामग्री नहीं होती.
करोड़ों की जनसँख्या वाले भारत देश में प्रेस/मीडिया में अन्धविश्वास या आध्यात्म ज्यादा दिखाई देता है और विज्ञानं की कमी देखी जाती है. आज भी भारत में तमाम न्यूज़ चैनल ऐसे हैं जो भविष्य फल, धार्मिक स्थलों का रहस्य, धार्मिक प्रवचन आदि दिखाते हैं, जबकि उतनी मात्रा में संविधान या क़ानून की जानकारी या विज्ञान या तकनीकी की जानकारी वाली सामग्री नहीं होती.
असल में इस तरह की कमी उनकी सोच और नजरिये की वजह से है, उनकी पत्रकारिता की पढाई या फिर प्रेस के प्रति जिम्मेदारी का अहसास उनके पाठ्यक्रम में कराया ही नहीं गया. प्रेस को बहुत ही छोटा मान लिया गया. देश के किसी पाठ्यक्रम को इस तरह नहीं बनाया गया जिससे प्रेस और संचार क्षमता की गंभीरता और उसके प्रतिफल को समझा सके.
लगभग सभी संस्थानों को सिर्फ और सिर्फ अपना पाठ्यक्रम पूरा करके नौकरी दिलवानी है ताकि "कैम्पस प्लेसमेंट" दिखाकर और बच्चों को प्रवेश के लिए ललचा सकें.
पत्रकारिता किसी भी देश की रीढ़ होती है. यदि संचार गलत किया गया, तो देश की विचारधारा भी वैसी ही बनेगी. किसी राष्ट्र का विकास वहां मौजूद पत्रकारिता (प्रेस/मीडिया) की कार्पयप्ररणाली पर निर्भर करता है.
गंभीरता से लिया जाए तो प्रेस की पढ़ाई माध्यमिक स्तर से ही शुरू कर देनी चाहिए. छात्र जितना जागरूक होंगे, उतना ही प्रेस को निखारा जा सकेगा. जुझारू छात्र इस ओर आएंगे और प्रेस की भी यही मांग होती है.
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