माँ का दुपट्बटा जो बदबू से भरा है,
वही पसीना जिम्मेदार है तुम्हें काबिल बनाने में.
सड़ गया जिस्म माँ का घर में,
क्या शेष रह गया जीवन बिता में.
आज चुप है माँ, बेटे के अफसर बनने पर,
जिसने कभी एलान किया था जमाने में.
चली गयी माँ कुछ शेष न रहा,
अब क्या मिलेगा मुस्कराने में.
औलादों, अपनी माँ की गोद को याद रखना,
उसका भी हिस्सा है, मंजिल दिलाने में.
प्यार, दुलार, समर्पण इसे अपने पास रखना,
काम आएगी नफरत की आग बुझाने में.
मैं वक़्त को रोक तो नहीं सकता लेकिन
ये कविता काम आयेगी याद दिलाने में
दोस्तों ऐसा कोई काम न करना
जो शर्म आये माँ को माँ कहलाने में