जब भी जन्मदिन आता है तो लोग बड़े ही विशेष रूप से मनाते हैं.
मैं जन्मदिन की खुशियाँ नहीं मनाता मेरी विचारधारा थोड़ी अलग हैं.
मैं मानता हूँ कि ये दिन खुशियों का नहीं बल्कि जिम्मेदारी याद दिलाने का दिन है.
ये दिन बताता है कि तुम मौत के कितने करीब आ रहे हो. हालाँकि ये बच्चों पर लागू इसलिए नहीं होगा, क्योंकि उन्हें जीवन की समझ नहीं होती.
जन्मदिन मुझे ये याद दिलाता है कि समाज के लिए अच्छे काम करने हैं, इस दुनिया ने बहुत कुछ दिया, लेकिन मेरी जुम्मेदारी है कि मैं अपने समाज को अच्छा दूं. उन लोगों की मदद करूं जिन्हें सच में मदद की जरूरत है. तमाम लोग मेरी तरह सोचते हैं और अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए समाज में कुछ अच्छा करने की कोशिश करते रहते हैं.
लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो लोगों को अच्छा करने नहीं देते क्योंकि कुछ लोगों के अच्छा करने से कुछ लोगों की कुर्सियां हिलने लगती हैं, जिसे वे नहीं छोड़ना चाहते. ऐसे में कुछ लोगो के अच्छा करने से कुछ लोगों की हिलने वाली कुर्सी को बचाने के लिए वे अच्छा करने वाले को गलती से भी अच्छा नहीं करने देते या फिर ऐसा अडंगा लगा देते हैं, कि जिसके अन्दर अच्छा करने की चुलग रहती भी है, वो स्वतः ही समाप्त हो जाती है.
इसके अलावा कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जो कुछ अच्छा करने वाले लोगों को बचाते रहते हैं, तब, जब वे खतरे में होते हैं या परेशान होते हैं, कुछ लोग ऐसा इसलिए भी करते हैं, कि समाज से ऐसे लोगो की कमी न हो जाए जो अच्छा करने की सोचते हैं. अच्छा करने की सोच रखने वालो को, ऐसे लोग, जिनकी अच्छा हो जाने से कुर्सियां हिलने लगती हैं, परेशान करते हैं, ताकि अच्छा करने वाले अच्छा करने की जिद छोड़ दे. लेकिन ऐसे ही समय के लिए कुछ ऐसे लोग बने हैं, जो अच्छा करने वालों को किसी भी हाल में बचाने की कोशिश करते है.
अब कुछ लोग ये सोच रहे होंगे की बात तो शुरू की थी जन्मदिन की, जो कि मौत के करीब आने का अहसास कराता है तो इसमें अच्छा करने और बुरा करने की चर्चा का क्या लेना देना. क्यूंकि जन्मदिन वो भी मनाते हैं जो अच्छा करना चाह रहे हैं और जन्मदिन वे भी मनाते हैं जो अच्छा करने वालों को गलती से भी अच्छा नहीं करने देते.
सबसे ज्यादा दिक्कत की बात ये पता लगाना है कि जो लोग अच्छा करना चाह रहे हैं वो असल में अच्छा है भी या नहीं, और जो उनके द्वारा किया जा रहा है वो कैसे और किसके लिए अच्छा है. क्यूंकि जो कुछ लोगों के द्वारा अच्छा किया जाने का प्रयास किया जाता है, उन्हें रोकने का प्रयास करने वालो के कार्य को भी तो अच्छा घोषित किया जा सकता है. क्यूंकि अच्छा करने वालों को रोककर वे अपनी हिलती हुयी कुर्सी को तो बचाते ही हैं साथ ही अन्य हिलने वाली कुर्सियों पर बैठे अपने संगठित साथियों की भी मदद करते हैं. ऐसे में अपने साथियों की किसी भी तरह की मदद जो उनके आने वाले भविष्य को संजोय रखती है आखिरकार यह भी तो अच्छा काम गिना जाना चाहिए ?
अच्छे काम की परिभाषा उस होने वाले काम से मिलने वाले भविष्य के लाभ पर निर्भर करता है. यदि उससे लोगों को लाभ मिलता है तो वह अच्छा काम बन जाता है, वरना वही काम अच्छा काम नहीं होता. दरअसल एक ही काम एक समाज के लिए अच्छा होता है और वही काम दूसरे समाज के लिए अच्छा नहीं होता. औसतन एक कार्य अच्छा है या नहीं, ये उस कार्य को अच्छा मानने वाली जनसँख्या पर निर्भर करता है. देश में 126 करोड़ की जनसँख्या में 80 करोड़ किसी किये गये काम को अच्छा बता दें तो फिर वो अच्छा बन जाता है, फिर चाहे उस काम से कई कत्लेआम क्यूं न हो गये हों. समाज में लोगों द्वारा किये गये काम की स्वीकार्यता ही काम के अच्छे या अच्छे न होने का प्रमाण होता है.
ऐसे में कुछ लोग यह चाहते हैं कि वे जीवन में अच्छा करें, इसके लिए वे काम में जुट जाते हैं और ऐसा कर जाते हैं कि प्रशंसा होने लगती है, और कुछ लोगों की कुर्सियां हिलने लगती हैं. लेकिन इसी समय कुछ लोग, जिनकी कुर्सियां हिल रही हैं, वे अपने द्वारा किये जाने वाले कार्य को लोगों तक इस प्रकार पहुंचाते हैं कि लोगों द्वारा उसे बड़ी आसानी से स्वीकार्य कर लिया जाए. आसानी से स्वीकार करने के लिए वे कार्य को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं. अंततः जिन लोगों ने अच्छा किया था वो अच्छा सिद्ध नहीं हो पाता क्यूंकि लोगों द्वारा स्वीकार्यता नहीं मिल पाती.
इस प्रकार उम्र बढ़ने लगती है और कई जन्मदिन आकर चले जाते हैं. आपने देखा होगा कि युवाओं के द्वारा मनाये जाने वाले जन्मदिन और अधेड़ावस्था में मनाये जाने वाले जन्मदिन के उत्साह में बेहद अंतर होता है. क्यूंकि युवा को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एह्साह नहीं होता, इसलिए खूब नाचता गाता है और अधेड़ में आते आते मायूस हो जाता है कि किया तो बहुत कुछ लेकिन सिद्ध कुछ नहीं हो पाया.
लेकिन यहाँ भी फर्क करना होना. अधेड़ में दोनों वर्ग हैं. एक वे लोग, जो अच्छा करने के प्रयास में लगे रहे लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा. और दूसरा वर्ग वो जिसने अच्छा काम करने वालों को अच्छा काम करने नहीं दिया.
मायूसी के अलग अलग प्रकार हैं. जो लोग अच्छा काम करना चाहते रहे वे इसलिए मायूस हैं क्यूंकि उनके द्वारा अच्छा काम किये जाने के बावजूद अच्छा काम स्वीकार नहीं किया गया. और जिन लोगों ने अपनी कुर्सियां बचाने के कारण अच्छा काम नहीं करने दिया, वे इसलिए मायूस हैं क्यूंकि वे सिर्फ हिलती कुर्सी ही बचाते रहे और कुछ कर ही न पाय. अब एक दिन तो इस कुर्सी से क्या दुनिया से उठाना पड़ेगा. तो फिर अच्छा काम करने वालों को रोकना या परेशान करना बेकार रहा.
बात आखिर घूम कर वहीं आ जाती है, की इस दुनिया ने हमें बहुत कुछ दिया. इसलिए ये हमारी जिम्मेदारी होनी चाहिए कि हम भी इस दुनिया को कुछ अच्छा दें. जन्मदिन यही याद दिलाने आता है, कि समय कम है और काम ज्यादा. व्यक्ति हर जन्मदिन में मौत के करीब पहुँच रहा है. जीवन का आनंद जरूर लेना चाहिए और इसी आनंद के बीच कुछ अच्छा करने की सदैव सोच बनी रहनी चाहिए. यही जीवन है.
आप भी समझने की कोशिश कीजिये कि आप किस तरह से कुछ अच्छा कर सकते हैं.
- बृजेन्द्र कुमार वर्मा