(फैंटेसी कहानी)
ओह मेरे प्रिय टाटा डोकोमो, मुझे माफ़ करना. आज वक़्त आ गया है कि तुमसे अपने दिल की बात कह दूं.
ऐसा नहीं कि तुमने मेरी सेवा नहीं की या अब करना बंद कर दी. मैं ये भी नहीं भूल सकता कि जब मैं घर से बाहर था तब सिर्फ तुम ही थे जो मुझे मेरी मम्मी और पापा से जोड़े रखता था. मैं ये भी नहीं भूलूंगा कि जब मेरा सिलेक्शन का कॉल आया तब तुम्हारे जरिये ही ये खुशखबरी सुनी. मैं जब स्नातकोतर उपाधि में प्रथम श्रेणी में पास हुआ तो तुम्हारे जरिये ही मुझे ये खबरें मिलीं. प्रतियोगिता परीक्षा पास करने की सूचना भी तुमने ही मेरे कानो में पहुचाई, तब तो फ़ोन भी मटक मटक कर नाच रहा था. वो तमाम खुशियों के पल तुम्हारे जरिये ही सुनने को मिले जिन्हें में कभी भूल नहीं सकता. प्रिय टाटा डोकोमो वो तुम ही तो थे जिसने मुझे हर पल "उसकी" खूबसूरत आवाज से जोड़े रखा. उसके पास भी तुम थे और मेरे पास भी. तुमने ही तो मुझे एक स्पेशल रिचार्ज से पूरे महीने "उससे" मुफ्त दिन-रात बातें करने का मौका दिया. उफ़! कैसे भूल सकता हूँ उन दिनों को.
मैं तो तुमसे ये शिकायत भी नहीं कर सकता कि तुम्हारी वजह से ही मेरा दिल चोरी हो गया और तुम्हारी ही वजह से मेरे दिल पर "उसने" हुकूमत कर ली और मैं कुछ न कर सका. पर जो मेरे साथ नींद, चैन, प्यार, दिल की लूट हुयी उसका भी जीवन में एक आनंद था. उस लूट ने ही तो कंगाल होने पर मुझे मेहनत करने के लिए प्रेरित किया. आज उसी लूट का ही तो नतीजा है जिस जगह में पंहुचा हूँ. पर इसका पूरा श्रेय मैं उस लूट को नहीं दे सकता, इसका कुछ श्रेय तुम्हें भी जाता है.
पर, टाटा डोकोमो तुम बहुत निर्दयी भी हो. मैं उस दर्द को कैसे भूल जाऊं जब तुम तेजी से सुबह सुबह ही चीखने लगे, इतना तो तय था खबर मनहूस ही होगी तभी तो फ़ोन भी पहले से ही कांपने लगा था. मैं सुनने को मजबूर था, जैसे ही तुम्हे अपने दिल से हटाकर कान पर लगाया तो सच मानो टाटा डोकोमो दुःख का पहाड़ टूट पड़ा. काश उस दिन तुम छुट्टी पर चले जाते. या "उसे" कह देते कि मैं अभी पहुँच से बाहर हूँ तो शायद वो मनहूस खबर तो नहीं सुनता. पर तुम्हें भी क्या दोष दूं, तुम तो अपना काम नि:स्वार्थ भाव से कर रहे थे.
जानते हो टाटा डोकोमो उस दिन हुआ क्या? "उस" बेचारी को भी क्या दोष हूँ मैं, वो तो समाज के ठेकेदारों से हारी है. समाज से बाहर शादी करने को मना कर दिया तो उसने वही मुझसे कह दिया. बस! लेकिन यहाँ सब कुछ ख़तम नहीं हो जाता. काश! मैं इंसान न होकर तुम्हारी तरह ही एक माध्यम होता. जैसे तुम आईडिया, एयरटेल, बीएसएनएल अन्य माधयमों से चाहने भर से तुरंत और बिना इजाजत जुड़ जाते हो, काश समाज भी बिना इजाजत और मुक्त स्वभाव से किसी से भी जुड़ सकता तो दुनिया बेहद खूबसूरत होती.
खैर, गड़े मुर्दे क्या उखाड़ना. जब जब तुम मेरे दिल के करीब होते हो तो सिर्फ तुम ही दिल के करीब नहीं होते. पुरानी यादें भी करीब होती हैं. इसलिए मैंने एक कठोर और असहनीय निर्णय लिया है. जैसे राम ने लक्ष्मण के साथ रहकर सीता जी की देखभाल की, वैसे ही तुमने मेरे साथ रहकर हमेशा उसकी खैर-खबर बनाए रखी. लेकिन, एक वक़्त राम ने ही न चाहते हुए भी लक्ष्मण को मजबूरी और वचन में बंधने के कारण त्याग दिया था. वैसे ही आज मैं भी तुम्हें त्यागने के लिए मजबूर हूँ. ताकि पुरानी यादें ताजा न हों.
मुझे माफ़ कर देना टाटा डोकोमो. और हो सके तो मुझे संवेदनहीन मालिक न कहना.
तुम्हारा- समाज से लड़ता "संघर्ष"
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