गाँव की लड़कियां ब्याह दी जाती हैं किसी और गाँव
किसी और गाँव की लड़कियां ब्याह दी जाती हैं किसी और गाँव
वक़्त बदल जाने पर गाँव में
पुरुषों के चेहरे वही रहते हैं
बस स्त्रियों के चेहरे बदल जाते हैं ।
(-डॉ0 बी0के0 वर्मा)
गाँव की लड़कियां ब्याह दी जाती हैं किसी और गाँव
किसी और गाँव की लड़कियां ब्याह दी जाती हैं किसी और गाँव
वक़्त बदल जाने पर गाँव में
पुरुषों के चेहरे वही रहते हैं
बस स्त्रियों के चेहरे बदल जाते हैं ।
(-डॉ0 बी0के0 वर्मा)
वो विदाई के समय रोता हुआ शख्स,
उसके आँसू दूर जाने से नहीं, किसी के खोने से बहे हैं,
तुम देखना लौट आने पर गुमसुम सी रहेगी,
फिर से निकलेंगे वही आँसू, जो खोने से बहे हैं।
(- डॉ0 बी0 के0 वर्मा)
डॉ0 बृजेन्द्र कुमार वर्मा
प्लास्टिक प्रदूषण आज दुनिया के सबसे गंभीर पर्यावरणीय खतरों में से एक है। हर साल लाखों टन प्लास्टिक कचरा हमारे महासागरों, नदियों और ज़मीन पर जमा हो रहा है, जो सदियों तक अपघटित नहीं होगा। यह न केवल वन्यजीवों को नुकसान पहुँचा रहा है, बल्कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन रहा है। इस विशाल चुनौती के बीच, वैज्ञानिक समुदाय ने एक अप्रत्याशित, लेकिन शक्तिशाली सहयोगी की खोज की है, जो है “प्लास्टिक खाने वाले फंगस”। इस सूक्ष्मजीव ने अपनी अप्रत्याशित और अनूठी क्षमताओं से पूरी दुनिया को चौंका दिया है, क्योंकि ये प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने की हमारी लड़ाई में एक नई आशा लेकर आए हैं। और इसमें प्रेस को भी पीछे नहीं रहना है, जबकि पूरी दुनिया जानती है कि प्रेस की ताकत क्या है।
इन फंगस की गुप्त शक्ति उनके द्वारा
उत्पादित एंजाइमों में निहित है। ये सूक्ष्म प्रोटीन फंगस की कोशिकाओं से बाहर
निकलते हैं और प्लास्टिक बहुलक की लंबी, स्थिर शृंखलाओं पर रासायनिक रूप से हमला
करते हैं। वे इन शृंखलाओं को छोटे, घुलनशील अणुओं में तोड़
देते हैं। एक बार जब प्लास्टिक के टुकड़े छोटे हो जाते हैं, तो
फंगस उन्हें अपनी कोशिकाओं में अवशोषित कर लेते हैं और उन्हें अपनी वृद्धि और
ऊर्जा के लिए उपयोग करते हैं। इस प्रक्रिया को जैव-अपघटन (Biodegradation) कहा जाता है। यह एक प्राकृतिक और पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ तरीका है, जिससे
प्लास्टिक को उसके मूल घटकों में तोड़ा जा सकता है, जिससे
हानिकारक सह-उत्पाद (By-products) का उत्पादन नहीं होता।
प्लास्टिक खाने वाले फंगस की खोज ने
प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए एक नया और रोमांचक मार्ग खोल दिया है। क्योंकि
यह पारंपरिक तरीकों की तुलना में कम ऊर्जा और हानिकारक रसायनों का उपयोग करता है। अलग-अलग
फंगस विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक को तोड़ सकते हैं, जिससे एक व्यापक समाधान संभव है। इसके
अलावा बहुत ही कम लागत में बड़े पैमाने पर औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए यह प्रभावी
विकल्प साबित हो सकता है। उन क्षेत्रों में, जहाँ प्लास्टिक कचरा जमा होता है और
पहुँच कठिन है, वहाँ इसका उपयोग किया जा सकता है। प्रेस को
चाहिए कि इस पर खूब लिखे। सरकार, उद्योगपतियों, उद्यमियों आदि को इस और आकर्षित
करे। जनता को जागरूक करे ताकि जनता सरकारों पर दबाव बना सके और इस तरह हम
प्लास्टिक कचड़े के अंत के लिए एक नए आंदोलन को जन्म दे सकें। हालांकि अभी भी कुछ चुनौतियाँ
सामने हैं, जैसे वर्तमान में, प्लास्टिक का जैव-अपघटन एक
अपेक्षाकृत धीमी प्रक्रिया है। औद्योगिक पैमाने पर इसे तेज़ करने के लिए अधिक शोध
की आवश्यकता है। इसके अलावा कुछ फंगस को प्लास्टिक को प्रभावी ढंग से तोड़ने के
लिए विशिष्ट तापमान, आर्द्रता और पोषक तत्वों की स्थिति की
आवश्यकता होती है। हालांकि वैज्ञानिक इन प्लास्टिक के जैव-अपघटन के अंतिम उत्पादों
और पर्यावरण पर उनके संभावित दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में पूरी समझ विकसित
नहीं कर पाएँ हैं, ऐसे में इसे भी जानना जरूरी है। वैज्ञानिक अब एंजाइम
इंजीनियरिंग के माध्यम से इन फंगस की क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे
हैं, ताकि वे अधिक तेज़ी से और कुशलता से प्लास्टिक को तोड़
सकें।
प्लास्टिक खाने वाला फंगस एक वैज्ञानिक
चमत्कार हैं, जो हमें हमारे ग्रह को बचाने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण प्रदान कर
सकते हैं। हालाँकि यह एक अंतिम समाधान नहीं है और प्लास्टिक के उत्पादन और खपत को
कम करना अभी भी महत्वपूर्ण है। ये सूक्ष्मजीव हमें एक स्थायी भविष्य की ओर बढ़ने
में मदद करने की अपार क्षमता रखते हैं। यह एक रोमांचक क्षेत्र है, जहाँ नवाचार
हमें प्लास्टिक-मुक्त दुनिया के करीब ला सकता है और इन सब में प्रेस को हर बार की
तरह अहम भूमिका निभानी है।
(लेखक जनसंचार के व्याख्याता हैं।)
फिजाओं में उड़ती पतंगें सिखाती हैं,
हवा के न होने पर भी उड़ना कितना जरूरी है,
अमीरों के ये लहजे सबको सिखाते हैं
जमाने में मजबूत
होना कितना जरूरी है।
(डॉ0 बी0 के0 वर्मा)