12 सितम्बर 2015
हाल ही में हिंदी के सम्बन्ध में एक पुरानी पुस्तक पढने का मौका मिला.
इस पुस्तक में उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से की एक भाषा को लेकर एक अजीब बात लिखी है.
लेखक के अनुसार, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खड़ीबोली से वर्तमान हिंदी और उर्दू कि उत्पत्ति हुई. और दूसरी बोली ब्रज भाषा, पूर्वी हिंदी की बोली अवधी के साथ कुछ काल पूर्व तक साहित्य के क्षेत्र में वर्तमान खड़ीबोली हिंदी का स्थान लिए हुए थी. आगे लिखा उन्होंने, "इन दो बोलियों के अतिरिक्त पश्चिमी हिंदी में और भी कई बोलियाँ सम्मिलित हैं, किन्तु साहित्य की दृष्टि से ये विशेष ध्यान देने योग्य नहीं हैं....."
क्यों साहब, क्यों ध्यान देने योग्य नहीं है???
ब्रज भाषा ने हिंदी साहित्य को बहुत कुछ दिया है. इसे कोई भी अनदेखा नहीं कर सकता.
मैं बड़े सम्मान के साथ विरोध करता हूँ लेख का और ये बड़े आदर के साथ बता देना चाहता हूँ, कि वर्तमान में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में केवल खड़ी बोली या अवधी ही नहीं, बल्कि ब्रज ने भी अपनी जड़ें जमाई है. आगरा, मथुरा, फर्रुक्खाबाद, एटा, इटावा, औरैया, कन्नौज, मैनपुरी, फिरोजाबाद और हाथरस जैसे जिलों के आस पास के क्षेत्र में बड़े स्तर पर ब्रज बोली जाती है.
हिंदी विद्वानों ने ब्रज भाषा को सबसे अधिक कोमल भाषा मानी है.
सूरदास, नरोत्तमदास ने इस भाषा में अपनी रचनाओं को लोगों के सामने रखा.
अब बुंदेलखंड में भी बुन्देलखंडी भाषा का बोलबाला बढ़ रहा है, इस क्षेत्र को हम बिल्कुल नकार नहीं सकते. अब तो बुंदेलखंड अपनी अलग पहचान बना चुका है.
इस पुस्तक में बहुत सी जानकारी है जो अध्ययनकर्ता के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है, परन्तु मुझे इसमें कुछ कमी लगी तो मैंने इस पुस्तक का सन्दर्भ लेकर इसके बारे में अपनी राय दी.
मैंने आलोचना नहीं की है.
मैंने अपना विचार प्रस्तुत किया है. हो सकता है, लेखक का मंतव्य वो न हो जैसा मैं सोच रहा हूँ. हो सकता हो, लेखन कुछ और अपनी बात कहना चाहता हो... पर मुझे लगा तो मैंने अपनी राय लिखी.
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