भारत में नवाचार प्रसरण को पढ़ाया तो जाता है लेकिन बच्चों को ऐसा करने के लिए संलग्न नहीं किया जाता. सिर्फ पढ़ना और उस पढाई में संलग्न होने में फर्क है.
फोटो दिए लिंक से ली गयी है. |
भारत में नवाचार प्रसरण को पढ़ाया तो जाता है लेकिन बच्चों को ऐसा करने के लिए संलग्न नहीं किया जाता. सिर्फ पढ़ना और उस पढाई में संलग्न होने में फर्क है.
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बहुत जरूरी है कि लोग पहले आज़ादी को समझें, उस संघर्ष को समझें, जो 1947 से पहले पूर्वजों ने झेला है, सहन किया है.
उस मार को, उस भय को, उस दंड को समझें, जो उन्हें बेवजह दिया गया,
उन्हीं के देश में.
इसके बाद ये समझें कि आजादी मिली कैसे.
आज़ादी मनाना और आज़ादी समझना, दोनों में फर्क है. यदि आपने आज़ादी को ठीक से समझा तो आप आज़ादी का जश्न भी हर्ष और उल्लास से मनाते हैं और आज़ादी का लाभ भी ले पाते हैं.
पूर्वजों को मिली बेवजह मार की समाप्ति है आज़ादी
पूर्वजों को दिया गया दण्ड की समाप्ति है आज़ादी
हर आँख से निकले आंसू की कीमत है आज़ादी
अपनी मर्जी से फसल उगाने का अधिकार है आज़ादी
एक जगह से दूसरी जगह जाने की अनुमति है आज़ादी
सर उठाकर प्रश्न करने का अधिकार है आज़ादी
कलम उठाकर कोरे कागज पर शब्द उकेरना है आज़ादी
सच तो ये है
आज़ादी को समझना ही है आज़ादी.
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