"गेस्ट फेकल्टी" "कॉन्टेक्ट बेसिस" "संविदा" ये स्थाई नौकरी नहीं होती। क्योंकि
सरकार जानती है स्थाई शिक्षक वो परफॉर्मेंस नहीं दे पा रहे जो ये वर्ग दे रहा है। सरकार ये भी जानती है कि यदि इन्हें स्थाई कर दिया तो वही परफॉर्मेंस मिलेगा जो स्थाई से मिल रहा है, ऐसे में इस तरह के अस्थाई शिक्षण व्यवस्था से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कायम है।
सरकार से ये मांग है कि इन वर्ग के अस्थाई शिक्षकों को भी पूरी सैलरी दी जाय। ताकि इनके परफॉर्मेंस के अनुसार कुछ तो आमदनी हो।
हालांकि कुछ स्थाई शिक्षक भी बेहद सराहनीय काम कर रहे हैं पर ये गिनती बहुत कम है। इसीलिए सरकार ने एक नया तरीका अपनाया। वो है अस्थायी नौकरी की नीति का। शिक्षक मेहनत से इसीलिए पढ़ाते हैं कि अगली बार भी उन्हें पढ़ाने के लिए रख लिया जाय।
मतलब लालच में मेहनत है। अगर स्थाई हो गए और नौकरी जाने का खतरा ही न रहे तो पढ़ाने के प्रति रुचि कम या फिर आना कानी। ऐसे में सरकार पुरानों को तो हटा नहीं सकती तो क्या किया जाय?
बस यहीं से ये अवधारणा आयी कि "गेस्ट फेकल्टी" "कॉन्टेक्ट बेसिस" "संविदा" पर अस्थाई शिक्षक रखो और अच्छी शिक्षा की संभावना पैदा की जाय।
हालांकि ये भी 100% धनात्मक नहीं है क्योंकि भ्रष्टाचार ने इस अवधारणा को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया है। अब सरकार को कुछ और सोचना होगा।
सरकार जानती है स्थाई शिक्षक वो परफॉर्मेंस नहीं दे पा रहे जो ये वर्ग दे रहा है। सरकार ये भी जानती है कि यदि इन्हें स्थाई कर दिया तो वही परफॉर्मेंस मिलेगा जो स्थाई से मिल रहा है, ऐसे में इस तरह के अस्थाई शिक्षण व्यवस्था से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कायम है।
सरकार से ये मांग है कि इन वर्ग के अस्थाई शिक्षकों को भी पूरी सैलरी दी जाय। ताकि इनके परफॉर्मेंस के अनुसार कुछ तो आमदनी हो।
हालांकि कुछ स्थाई शिक्षक भी बेहद सराहनीय काम कर रहे हैं पर ये गिनती बहुत कम है। इसीलिए सरकार ने एक नया तरीका अपनाया। वो है अस्थायी नौकरी की नीति का। शिक्षक मेहनत से इसीलिए पढ़ाते हैं कि अगली बार भी उन्हें पढ़ाने के लिए रख लिया जाय।
मतलब लालच में मेहनत है। अगर स्थाई हो गए और नौकरी जाने का खतरा ही न रहे तो पढ़ाने के प्रति रुचि कम या फिर आना कानी। ऐसे में सरकार पुरानों को तो हटा नहीं सकती तो क्या किया जाय?
बस यहीं से ये अवधारणा आयी कि "गेस्ट फेकल्टी" "कॉन्टेक्ट बेसिस" "संविदा" पर अस्थाई शिक्षक रखो और अच्छी शिक्षा की संभावना पैदा की जाय।
हालांकि ये भी 100% धनात्मक नहीं है क्योंकि भ्रष्टाचार ने इस अवधारणा को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया है। अब सरकार को कुछ और सोचना होगा।
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