सीखने के लिए मैंने हर जख्म सींचे हैं, पढ़ना है दर्द मेरा तो सब लिंक नीचे हैं

मंगलवार, मार्च 12, 2019

अनुभव


बड़ी अजीब बात है इस जिन्दगी की भी.... जो ईमानदार है वही दुखी भी ज्यादा रहता है और बीमार भी. इससे एक बात समझ आती है कि जब आप समाज, दुनिया, लोगो के अच्छे बुरे की चिंता करने लगते हैं और सोचने लगते हैं तो प्रकृति आपके शरीर में परिवर्तन लाने लगती है, शरीर कमजोर, बीमार होने लगता है उम्र से पहले ही बूढ़े दिखने लगते हैं और मानसिक दबाव बढ़ने लगता है. इधर सामाजिक रूप से आप अलग थलग पड़ने लगते हैं क्यूंकि आपकी विचारधारा अपना अपना सोचने वालों से बहुत अलग होती है, एक फड आपका विरोधी भी होने लगता है. कोई उस पर हंसने लगता है तो कोई उसे पागल कहने लगता है. मानसिक संतुलन की बातें कही जाने लगती हैं. लेकिन.... जब वही व्यक्ति अपने उद्देश्य में सफल होने लगता है, लोगों को उसकी बातें समझ आने लगती है, तो वही व्यक्ति समाज के लिए विशेष बनने लगता है. धीरे धीरे एक समय ऐसा आता है कि लोग उसका उदाहरण देने लगते हैं. लेकिन फिर वही बात आती है, प्रकृति उसे शारीरिक रूप से बहुत तोड़ चुकी होती है. लोग एक तरफ उस व्यक्ति से आस रखने लगते हैं और दूसरी तरफ वो शारीरिक रूप से कमजोर होने लगता है. बस यही वो प्रक्रिया है जब फिर से वो असहाय बन जाता है. विरोधाभास यहाँ भी है, जो समाज का मार्गदर्शक बन कर उभरने वाला हो गया हो, वो असहाय कैसे? इस प्रक्रिया को समझना ही जिन्दगी कहते हैं और दूसरे को समझाना जिदगी का अनुभव.

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