मोसम ठंडा था तो दीना अपने बच्चे को स्वेटर पहना कर तैयार कर रहा था. छोटू के सर पर टोपा भी लगा दिया. दीना जानता था की ट्रेन में सफ़र करते समय ठंडी हवा लगेगी इसलिए पहले से ही तैयारी कर रहा था.
घर से निकल लिया. छोटू बहुत खुश था. घर से बहार जाकर तो हर बच्चा खुश ही रहता है. आज तो नये कपडे भी पहने हैं पापा कहीं ले जा रहा हैं. ये तो पता नहीं कहाँ ले जा रहे हैं. पर हाँ कहीं जा रहे हैं.
छोटू को बोलना नहीं आता. अभी छोटा है. स्टेशन पर पहुँच कर टिकट ले लिया और प्लेटफार्म पर ट्रेन का इन्तजार . छोटू खुश है. खेलने को जो मिल रहा है.
आस पास के राहगीर भी छोटू की अटखेलियों से मुस्कुरा रहे थे. जो छोटू से बात करना चाहता उनसे वो बात नहीं करता और तुरंत पापा से लिपट जाता. बहरहाल इन्तेजार ख़त्म हो गया. ट्रेन आ गयी.
दीना छोटू के साथ ट्रेन के जनरल डब्बे में चढ़ गया. ट्रेन चल दी. दीं को एकल सीट मिली तो वहीँ बैठ गया. छोटू पापा की गोद में था. ट्रेन चलती रही. लोगो चढ़ते और उतरते रहे.
अचानक सब कुछ बदल गया. छोटू का रोने लगा. ट्रेन खाली हो गयी. छोटू पापा को जगाने लगा. पापा जग नहीं रहे थे. कुछ बोल भी नहीं रहे थे. छोटू घबराने लगा.. ट्रेन के डिब्बे में कोई नहीं था. छोटू रोने लगा. रोने से शरीन में गर्मी भी आई.. स्वेटर पहना था. सर पर टोपी गर्मी से नाक बहने लगी... रोना बंद नहीं किया... कुछ लोग प्लेटफोर्म से गुजर रहे थे. उन्होंने देखना डब्बा खाली है और उसमें एक बच्चा रो रहा है.. एक आदमी सीट पर बैठा है. लोगों ने पता किया और हैरान रह गये. दीना की मौत हो चुकी थी. किसी को कुछ नहीं पता कैसे दीना मर गया. लोगो ने पता लगाने की कोशिश की क्या नाम है इसका कुछ नहीं पता. बच्चे को चुपाने की कोशिश की लेकिन छोटू अनजान से कुछ नहीं बोलता था... जाके पापा से चिपक गया. एक दो लोगो को दया आ गयी, जो गरीब थे.. क्योंकि अमीरों को दया आने के लिए टाइम नहीं था.. वो सीधे तन तनाते चले जा रहे थे.... और वैसे भी अमीरों का जेनेरल डब्बे से क्या लेना देना.
छोटू का बुरा हाल था.. कुछ गरीब लोगों ने बच्चे को पानी पिलाया. सर से टोपा हटाया ताकि उसकी घबराहट कम हो सके. छोटू से बहुत पूछने की कोशिश की कि कुछ तो सूचना मिल जाय... बहरहाल नहीं मिल सकी. गोदी से उतर कर वापस पापा से चिपक गया. बार बार हिलाकर पापा को उठाने की कोशिश कर रहा था. लेकिन पापा नहीं उठे.
अब क्या करेगा छोटू. वो भूखा है. घंटो से सिर्फ रोये जा रहा है. उसे सिर्फ पापा चाहिए कोई और नहीं. पेंट में ही पिसाब हो गया. आंसू गालों पर सूख गये. गाल रूखे हो गये. नाक बह रही है. रो रो कर अब तो डकारें भी आने लगी. और पापा हैं की उठने का नाम नहीं ले रहे. घर वाला भी कोई नहीं जिसकी गोदी में चला जाय. पापा के पास घंटो से खड़ा है.
आखिर दीना उठ क्यों नहीं रहा था. जब लोगों का भरोसा उठ सकता है. इतिहास से पर्दा उठ सकता है.. यहाँ तक की इंसानियत तक उठ सकती है तो दीना क्यों नहीं उठ सकता. वो भी तब जब बेटा रो रोकर जगा रहा हो... आसुओं से स्वेटर तक भीग गया. कमाल तो ये है की भगवान् का मन तक नहीं पसीजा. कहाँ चला जाता है भगवान् जब लोग अपने फायदे के लिए लोगों का कत्लेआम कर देते हैं. भ्रष्टाचार करते हैं. छोटू की स्थिति देखकर लग रहा था, कि कोई भगवान् नहीं होते.
क्या किसी ने जहर दे दिया. या कोई दुःख था दीना को जिससे उसकी मौत हो गयी..अब छोटू का क्या होगा... क्या होता है उनका जिनका कोई नहीं होता.
बात देश की नहीं, समाज की नहीं, धर्म सम्प्रदाय की नहीं, बात है ऐसे बच्चे की. छोटू जैसे बच्चों का भी अधिकार है जीना. उनका भी अधिकार है कि उनके पास माता पिता का साया हो. जब भी ऐसी तसवीरें देखने को मिलती है.. तो दिल से आवाज आती है या तो कुछ करो या डूब मरो. कोई बोलने लगता है, कोई लिखने लगता है.
क्या कोई है जो छोटू को गोद लेकर उसे चुपा सके. उसका रोना बंद कर सके. उसे प्यार से खाना खिला सके.
मेरी तो शायद हैसियत भी नहीं की इस कहानी का अंत लिख सकूं. इसलिए यही पर इस कहानी का अंत कर रहा हूँ.
फेसबुक पर देखी एक फोटो (लिंक नीचे है) से प्रेरित कहानी
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