4 फ़रवरी 2016
बृजेन्द्र कुमार वर्मा।
देश बडे़ उतार चढ़ाव से गुजर रहा है। हर विषय पर राजनीतिक पहलु उस विषय को और अधिक संवेदनशील बना देते हैं। एक वक्त था जहां आप किसी धर्म की कमी पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी कर जागरूकता ला सकते थे, आज धर्म पर बोलने मात्र से या फिर नकल करने मात्र से केस दर्ज हो जाता है। हाल ही में एक और संवेदनशील चर्चा हो रही है। भ्रूण लिंग की जांच की जाए या न की जाए। सोचने वाली बात है कि जो देश विकसित सिर्फ जनसंख्या वृद्धि और लिंगानुपात की बढ़ती दर की वजह से नहीं हो पा रहा हो, वहां भ्रूण लिंग की जांच कराने का पक्ष रखना विद्रोह पूर्ण है।
आज देश में लड़कियों से छेड़छाड़, बालात्कार जैसी घटनाएं तेजी से जन्म ले रही हैं। इसे समझने की कोशिश करें तो आसानी से पता चल जाएगा कि आखिर इसका कारण लिंगानुपात है। 1000 पुरूष पर 933 महिलाएं। ऐसे में बाकी पुरुष जिन्हें महिलाएं उपलब्ध नहीं हैं, वे असामाजिक कार्यों में लिप्त हो जाते हैं और इस तरह की घटनाएं होने लगती है। अगर भ्रूण लिंग जांच को इजाजत मिल जाए तो निडर हो लोग जांच करा अपने अनुसार बच्चों की चाहत पूरी की जा सकेगी, जो प्रकृति के साथ बड़ा खिलवाड़ होगा।
सरकार हर हालत में प्रति हजार पुरुष पर महिलाओं को बराबर लाना चाहती है ताकि हर पुरुष की शादी एक महिला से हो सके ओर छेड़छाड़ या बालात्कार जैसी घटनाओं पर लगाम लगा सके। लेकिन जांच को इजाजत मिल जाने से लिंगानुपात बराबर लाना और अधिक कठिन हो जाएगा। इतना ही नहीं भ्रूण लिंग जांच का धंधा खुलेआम चलना शुरू हो जाएगा।
सोचने वाली बात है जब इस भ्रूण जांच करने के लिखाफ कठोर दण्ड देने का प्रावधान है, उसके बावजूद यह कार्य धड़ल्ले से फल फूल रहा है तो जांच को लागू कर देने के बाद क्या स्थिति होगी।
पुत्र की चाह रखने वाले इस समाज में कोई भी पुत्री की चाह नहीं रखेगा। पुत्री सीधे तौर पर दहेज से जुड़ी होती है। और पुत्र सीधे तौर पर वंश से। ऐसे में, एक तरफ लोगों की मानसिकता को बदलना कठिन हो रहा है और दूसरी ओर भ्रूण जांच को इजाजत मिलने से इस मानसिकता को बदल पाना असंभव हो जाएगा।
देश में जरूरी ये नहीं कि लोगों छूट दी जाए, जरूरी ये है कि लिंगानुपात दूर किया जा सके। अंत में यही कहना सही होगा कि भ्रूण की जांच तभी ठीक है जब तक देश में लिंगानुपात बराबर हो।
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