जिसने 16 साल, देखते ही गोली मारने के कानून को हटाने के लिए अनशन किया, जिसकी दुनिया में तारीफ होती है. जिसने दूसरों की जिंदगियां बचाने के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया. जिसने दूसरों पर अपनी सारी खुशियाँ लुटा दीं, आज कुछ नासमझ लोग उनकी आलोचना कर रहे हैं.
बहुत दुखी हूँ मैं. ये देख और सुनकर. यहाँ तक कि मीडिया भी चुटकी लेने से नहीं चूक रहा.
कहा जाता है कि 2 नवम्बर 2000 को मणिपुर के इंफाल के मालोम जगह पर असम रायफल की वजह से 10 बेगुनाह मर गये थे. इस पर "सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम 1958" को हटाने के लिए 4 नवम्बर को शर्मिला जी अनशन पर बैठ गयीं. नाक में नली के जरिये उन्हें खाना पहुँचाया जाता था. उन्हें आत्महत्या के प्रयास करने के लिए गिरफ्तार भी किया गया. एक अस्पताल में उनका कमरा जेल की तरह बन गया. पर वे जनता के लिए अनशन करती रही.
कर साल बीतने के बाद लोगों का ध्यान वह से हटने लगा. मीडिया ने भी अनदेखा किया. एक समय ये आया की मीडिया के पास पूर्वोतर के लिए स्थान ही नहीं रहता.
शर्मिला का दुःख- जो दिखता है वो बिकता है.
photo - from google images (link- static.independent.co.uk/ s3fs-public/thumbnails/image/2013/03/04/15/ Irom-Sharmila-ap.jpgion) |
यहाँ मन दुखी होने वाली बात भी है कि इस देश में जो टीवी पर दिखता है वो लोकप्रिय हो जाता है. और जिसने सच में अनशन किया. जिसने मीडिया को अपनी तरफ नहीं ललचाया. जिसने कभी खबर बनने की कोशिश नहीं की. जिसने कभी प्रसिद्धि का नहीं सोचा. आज लोगों ने भी उन पर ध्यान देना छोड़ दिया.
कितना अजीब है. लोगों की लड़ाई लड़ने वाली को ही लोगों ने भुला दिया. शर्मिला जी शायद इससे बहुत दुखी हो गयीं.
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अब आप समझ गये होंगे कि 200-300 साल पहले देश गुलाम क्यों बना था.
अनशन ख़त्म करते ही आलोचना शुरू.
कमाल की बात ये है, कि जिस महिला ने देश की जनता के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, जब उसने राजनीति में आकर सुधार करने का सोचा तो लोग उनकी बुराई करने लगे. अनशन ख़त्म न करने की बात कहने लगे.
अरे क्या अनशन करने का ठेका लिया है शर्मिला जी ने? क्यों अनशन पर बैठी रहे. अरे सब कुछ तो दे दिया. अब क्या रहा उनके पास? अब वो राजनीति में आकर कुछ सुधार करना चाहें तो क्या नहीं करना चाहिए? कोई आतंकवादी बनने जा रही है क्या?? और अनशन की ही बात है, तो भैया तुम करो न अनशन उन्होंने 16 साल किया तुम 16 महीने ही कर लो, तब उन पर टिप्पणी करना. अगर नहीं कर सकते तो बुराई भी मत करो.
समाज निकला धोखेबाज़
सच कहूं तो समाज ही धोखेबाज़ निकला.
इस सामाज का दोगलापन देखिये..... ये समाज गुंडों को, अपराधियों को, अनपढ़ों को, लालचियों को, भ्रष्टाचारियों को, मतलबियों को तो सरकार में मंत्री बना देती है,
पर,
ध्यान से सुनना,
इरोम चानू शर्मिला जैसी देश भक्त को, जो मानवता की रक्षा के लिए अपनी सारी खुशियाँ कुर्बान करके लोगों की, इस समाज की सेवा में लग गई, उसे सरकार में मंत्री बने नहीं देखना चाहती.
हाय रे दुर्भाग्य इस देश का.
और अंत में
गलती गुंडों, मवालियों, भ्रष्टाचारियों या अनपढ़ों की नहीं है जो सरकार में बैठ गये. असल में जनता खुद गुनाहगार है. कोई गुंडा नेता है तो असल में गुंडा वो नेता नहीं.. असली गुंडा समाज है जिसने वोट देकर उस गुंडे को सरकार के लिए चुना. भ्रष्ट कभी भी नेता नहीं होता दोस्तों, भ्रष्ट होता है समाज जो 100-500 के लिए अपना वोट बेचकर भ्रष्टों को सरकार बना देता है.
गलती समाज की होती है.
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