अन्य देशों की तुलना में भारत में संचार प्रक्रिया पर ध्यानाकर्षण अन्य देशों की तुलना में देर से जरूर गया, लेकिन आज स्थिति देश में बहुत अलग है. हमारा देश विविधताओं का देश हैं. बीस से अधिक भाषायें और न जाने कितनी बोलियाँ प्रचलित हैं. ऐसे में देश में संचार प्रक्रिया को समझना बहुत जटिल हो जाता है. आधारित तौर पर तो संचार प्रक्रिया सामान्य है. अन्य देशों की तरह भारत में भी सामान्य संचार प्रक्रिया के तहत हम संचार कर सकते हैं. लेकिन जब बात भारत देश की हो तो थोड़ा सोचना पड़ता है.
प्रेषक - सन्देश - माध्यम - प्राप्त कर्ता ..... यह तो सामान्य प्रक्रिया है. लेकिन भारत में बहुत अधिक बोलिया हैं.. कई भाषाएँ हैं. ऐसे में हम चाहे कि एक ही बार में एक ही भाषा में सभी भारतियों को सन्देश भेज दिया जाए तो शायद ये मेरे अनुसार संभव नहीं है.
एक कहावत तो सुनी होगी आपने, "कोस-कोस पर पानी बदले तीन कोस पर बानी" ये यूं ही प्रसिद्ध युक्ति नहीं है. असल में यह बहुत गंभीर कथन है संचार शास्त्रियों के लिए.
चाहे सरकार चाहे या कोई विज्ञापन जारी करने वाली कंपनी या कोई भी बड़ा आदमी, एक सन्देश को भारत में एक ही भाषा में जारी नहीं कर पाते. इसे चाहे समस्या कहा जाए या मजबूरी, होता तो ऐसा ही है. ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि एक क्षेत्र का व्यक्ति दुसरे क्षेत्र के व्यक्ति की भाषा नहीं समझ पाता.
21वीं शताब्दी के 15 वर्ष बीत जाने के बाद भी, जबकि लाखों लोग एक प्रदेश से दुसरे प्रदेश में रहते हैं, फिर भी एक क्षेत्र का रहवासी दुसरे क्षेत्र के रहवासी की भाषा नहीं समझ पाता.
अब बात आती है कि संचार कैसे किया जाए कि भारत में एक प्रेषक एक ही बार में अधिक से अधिक संख्या में भारतियों से जुड़ सके???
ये सवाल ज्यादातर बहु-राष्ट्रीय उद्योगों के होते हैं, जैसे वाहन निर्माता, बिल्डर्स, मार्केटिंग कंपनी, सॉफ्टवेयर कंपनी, मोबाइल फ़ोन, कंप्यूटर या इसके अलावा और भी.
दोष- भारत में वर्चस्व की भी लड़ाई है, चाहे वह धर्म की हो या भाषा या धन की. हर कोई अपनी चीज से लोगों को जोड़कर अपने को मजबूत साबित करना चाहता है. पूरे देश में हिंदी बोले जाने को लेकर बहस चल रही है कि देश में एक भाषा हिंदी को संचार की प्रमुख भाषा के तौर पर होना चाहिए. वही दूसरी और राजनीति करते हुए हिंदी को दक्षिण क्षेत्र में फैलने नहीं दिया जाता है. दक्षिण भारत में तो यह स्थिति है कि हिंदी भाषा को न फैलने देने पर राजनीति होती है, दक्षिण अपनी भाषा को पूरे देश में फैलाना चाहते हैं, और हिंदी भाषी हिंदी को देश में प्रमुख भाषा बनाना चाहते हैं. भाषाओँ के प्रसार के लिए फिल्म, गानों के एल्बम, नाटक, अखबार, समाचार चैनल जैसे माध्यमों का सहारा लिया जाता है. इस तरह के प्रयासों में हिंदी, उर्दू, तमिल, पंजाबी, बंगाली, मराठी, कन्नड़, मलयालम, आसामी, गुजराती आदि भाषाएँ शामिल हैं.
यही कारण है कि देश में एक भाषा में संचार करना मुश्किल हो जाता है. हर कोई उद्यमी या सरकार किसी योजना या उत्पात को लोगों तक पहुचाने के लिए एक भाषा का उपयोग न करके क्षेत्र विशेष कि भाषा को अपनाता है. कई विद्यामानो ने तो प्रभावी संचार के लिए क्षेत्रीय भाषा को मत्वपूर्ण माना है. यही कारण है कि विभिन्न टीवी चैनलों ने अपने अपने क्षेत्रीय चैनल शुरू किये. इससे उन्हें न केवल ज्यादा मुनाफा हुआ, बल्कि क्षेत्रीय भाषा होने के कारण लोग जुड़ने भी लगे.
हमारे देश में प्रभावी संचार में भाषा बहुत बड़ा अवरोधक रही है. तमाम संचार शास्त्री इस बात से सहमत हैं.
नुकसान - भारत में सभी भारतियों के लिए एक संचार भाषा न हो पाने के कारण. विदेशी भाषा अंग्रेजी नें देश में आपने पैर जमा लिए. ऐसा नहीं कि भारत में अँगरेज़ आये तभी अंग्रेजी ने जोर पकड़ा. एक तर्क से आप समझ सकते हैं. जब 1947 में भारत आज़ादी के बाद अँगरेज़ भारत छोड़ कर गये तो तब अंग्रेजी भाषा से ज्यादा हिंदी और अन्य भाषा बोलने वाले लोग मौजूद थे, अर्थात उस समय अंग्रेजी से ज्यादा हिंदी, तमिल, मराठी, उर्दू, कन्नड़, बंगाली और अन्य भाषाएँ बोलने वालों की संख्या थी.
फिर भी पिछले 50 सालों में अपनी अपनी भाषा को प्रमुख बनाने कि लड़ाई ने विदेशी भाषा अंग्रेजी को आसानी से प्रमुख बना दिया. अंग्रेजी को प्रमुखता देने वालों में बहु राष्ट्रीय कम्पनियाँ, सेवा क्षेत्र, विदेश से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े संस्थान हैं.
आज देश में संचार की प्रमुख भाषा अंग्रेजी हो चली है. हिंदी दुसरे स्थान पर है. अंग्रेजी का प्रसार इस पर से किया जा रहा है कि अगर आप अंग्रेजी बोलते हैं तो आप आधुनिक हैं और हिंदी बोलते हैं तो आप आधुनिक नहीं है. दिखावे कि दुनिया ने न चाहकर भी अंग्रेजी बोलने पर विवश कर दिया लोगों को. ऐसे में हिंदी और दबती चली गई. हिंदी को सींचने वाले ही अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाने लगे. आज ये आलम है कि व्हाट्स एप, फेसबुक, हाइक, ट्विटर, स्कूल, कॉलेज, होटल, केफे, पार्क आदि हर जगह हिंदी कम अंग्रेजी बोलने वाले ज्यादा मिलेंगे.
अंत में - सवाल फिर वही पैदा होता है, कि संचार किस भाषा में किया जाए कि एक ही भाषा में सभी भारतियों से बात की जाए? अंग्रेजी का बोल बाला हर जगह है पर फिर भी इस देश में आधी आबादी को भी अंग्रेजी बोलनी नहीं आती. अंततः आप अंग्रेजी बोलकर भी आधी आबादी से नहीं जुड़ सकते.
अगर देश एक भाषा को प्रमुख बनाने में सहयोग कर दे, और हर भारतीय किसी एक भाषा को स्वीकार कर ले तो समझ लीजिये अंग्रेजी को देश छोड़ने में देर नहीं लगेगी. चीन इसका एक बहुत बड़ा और गंभीर उदहारण है.
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